नई दिल्ली (तेज समाचार डेस्क). जब से फ्रांस के साथ राफेल डील हुई है, तभी से विपक्ष विशेष कर कांग्रेस भाजपा सरकार के पीछे इस डील में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए हाथ धो कर पीछे पड़ी हुई है. राहुल गांधी ने तो खुले मंच से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चोर तक कह दिया है. लेकिन अब शुक्रवार को देश के सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र की भाजपा सरकार को राफेल डील मामले में क्लीन चिट दे दी है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अदालत की निगरानी में राफेल डील की जांच की मांग से जुड़ी सभी याचिकाएं शुक्रवार को खारिज कर दीं. कोर्ट ने कहा कि राफेल की खरीद प्रक्रिया में कोई कमी नहीं है. इसमें कारोबारी पक्षपातों जैसी कोई बात सामने नहीं आई है. 14 नवंबर को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
– कोर्ट के फैसले की 3 अहम बातें
कोर्ट ने अपने फैसले में जो तीन अहम बातें बताई, उसमें से पहली बात यानी ऐसे मामले में न्यायिक समीक्षा का नियम तय नहीं है. राफेल सौदे की प्रक्रिया में कोई कमी नहीं है. 36 विमान खरीदने के फैसले पर सवाल उठाना गलत है. दूसरी बात कोर्ट ने कही कि रिलायंस को ऑफसेट पार्टनर चुनने में कमर्शियल फेवर के कोई सबूत नहीं. देश फाइटर एयरक्राफ्ट की तैयारियों में कमी को नहीं झेल सकता. तीसरी अहम बात कोर्ट ने कही कि कुछ लोगों की धारणा के आधार पर कोर्ट कोई आदेश नहीं दे सकता. इसलिए सभी याचिकाएं खारिज की जाती हैं.
– राफेल डील मामले में सभी आरोप राजनीति से प्रेरित : अनिल अंबानी
कोर्ट के फैसले पर रिलायंस डिफेंस के मालिक अनिल अंबानी ने कहा- हम राष्ट्र सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं. सुप्रीम कोर्ट ने राफेल पर अभी तक दाखिल सभी पीआईएल को खारिज कर दिया है और हम इसका स्वागत करते हैं. रिलायंस ग्रुप और मेरे खिलाफ जितने भी आरोप लगाए गए सभी आधारहीन और राजनीति से प्रेरित थे.
– प्रशांत भूषण ने कोर्ट के फैसले को गलत बताया
याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने कोर्ट के फैसले को गलत बताया. उन्होंने कहा कि एयरफोर्स ने कभी नहीं कहा कि 36 राफेल चाहिए. उससे पूछे बगैर मोदीजी ने फ्रांस जाकर समझौता कर लिया. तय कीमत से ज्यादा पैसा दिया गया. विमान की कीमतों पर सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी गई. इसकी हमें कोई जानकारी नहीं दी गई. कोर्ट ने ऑफसेट पार्टनर चुनने के तरीके को भी गलत नहीं माना. उसका कहना है कि ऑफसेट पार्टनर दैसो ने चुना जबकि रक्षा सौदे में बिना सरकार की सहमति के कोई फैसला नहीं लिया जा सकता है. उन्होंने कहा कि पुनर्विचार याचिका दायर करने के बारे में तय किया जाएगा. इस मामले में अधिवक्ता एमएल शर्मा, विनीत ढांडा ने याचिका दायर की थी. इसके बाद आप नेता संजय सिंह ने भी याचिका दायर की. तीन याचिकाएं दायर होने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने याचिकाएं दायर की थीं. इसमें कहा गया था कि अदालत सीबीआई को इस मामले में एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दे.
– कीमत पर सीलबंद दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट को सौंपा था
सरकार ने अदालत और याचिकाकर्ताओं को डील के संबंध में लिए गए फैसलों के दस्तावेज सौंपे थे. राफेल की कीमत को लेकर एक अलग सीलबंद दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट को सौंपा गया था.
सरकार ने कोर्ट को बताया था कि राफेल विमान खरीदने का फैसला सालभर में 74 बैठकों के बाद किया गया. सरकार ने बताया था कि 126 राफेल खरीदने के लिए जनवरी 2012 में ही फ्रांस की दैसो एविएशन को चुन लिया गया था. लेकिन, दैसो और एचएएल के बीच आपसी सहमति नहीं बन पाने से ये सौदा आगे नहीं बढ़ पाया. सरकार ने कहा कि एचएएल को राफेल बनाने के लिए दैसो से 2.7 गुना ज्यादा वक्त चाहिए था.