एक बात तय है, भविष्य में राहुल गांधी कांग्रेस के एक मात्र ऐसे अध्यक्ष के रूप में अवश्य याद किए जाएंगे जिनके ज्ञान, समझ, बुद्धि और मानसिक स्थिति को लेकर हर दूसरे या तीसरे दिन सवाल उठे। जर्मनी और ब्रिटेन में दिए राहुल गांधी के बयानों के बचाव में कांग्रेस, कांग्रेसी और नेहरू-गांधी परिवार के प्रति श्रद्धा रखने वाले लोग भले ही सफाई देते रहें लेकिन सच्चाई यह है कि उनके अनर्गल प्रलाप से विदेश में भारत की छवि खराब हुई है। कांग्रेस अध्यक्ष की तथ्यहीन और प्रमाणहीन बयानबाजी पर केन्द्रीय मंत्री उमा भारती का बयान सोचने पर विवश करता है। उन्होंने कहा है कि राहुल गांधी अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कांग्रेस अध्यक्ष की बुद्धि को लेकर सवाल उठाए हैं। भाजपा के ही सुधांशु त्रिवेदी ने राहुल गांधी को अपरिपक्व व्यक्ति करार दिया है। अकाली नेता सुखबीर सिंह बादल पर एक वीडियो यूट्यूब पर देखा गया, जिसमें बादल राहुल गांधी को अशिक्षित और अपरिपक्व व्यक्ति बता रहे हैं। राहुल की आलोचना पर उनके समर्थक कह सकते हैं कि इस तरह की टिप्पणी करने वाले सभी लोग भाजपा या उसके सहयोगी दलों या फिर कांग्रेस विरोधी खेमे से हैं। यह तर्क आंशिक रूप से ही सही है। मुख्य धारा और सोशल मीडिया में सक्रिय लोगों से सवाल कीजिए, जवाब मिल जाएगा। जर्मनी और ब्रिटेन में राहुल गांधी द्वारा कही गईं बातों पर किस तरह की और कितनी तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आईं हैं। लोग हैरान हंै कि भाजपा, आरएसएस और मोदी के प्रति कांग्रेसियों में इतना विरोध या ईष्र्या का असली कारण क्या है? स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष विदेश में भी जहर उगलने से नहीं हिचकते। उन्हें संकोच क्यों नहीं होता? इससे भारत के बारे में किस तरह का संदेश दुनिया में जाएगा? जर्मनी और ब्रिटेन यात्रा से पहले भी राहुल गांधी कम से कम तीन विदेश दौरों के समय अपनी भड़ास निकाल चुके हैं।
जर्मनी के हैम्बर्ग में राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तुलना अरब के आतंकवादी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड कर दी। खूंखार आतंकवादी संगठन आईएसआईएस के संबंध में राहुल गांधी ने अपने ज्ञान से समूचे विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया। उनका कहना है कि आईएसआईएस की जन्म की बड़ी वजह बेरोजगारी है। कांगे्रस अध्यक्ष दुनिया को बता रहे है कि भारत में संसद में कानून नहीं बनते। उनके अनुसार भारत में अब कानून पीएमओ में बनाया जाते हैं। राहुल गांधी बता रहे हैं कि भारत में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। यहां मुसलमानों, दलितों और अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्याचार बढ़ गए हैं। लोगों में मॉब लिंचिंग की घटनाओं के कारण आक्रोश है। अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यकों और किसानों की आवाज दबाई जा रही है। बकौल राहुल नोटबंदी के कारण देश की अर्थ व्यवस्था को काफी नुकसान हुआ है, बेरोजगारी बढ़ गई है। वह डोकलाम मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन यह कह कर खुद बेनकाब हो गए कि डोकलाम के बारे में उन्हें अधिक नहीं मालूम नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष का बिलकुल ताजा आरोप है कि भारत में न्यायपालिका और चुनाव आयोग को बांटा जा रहा है। ऐसे दुष्प्रचार की वजह क्या है? अतीत में झांके तो जवाब स्वत: मिल जाएगा। 2014 के लोकसभा चुनावों में मिली करारी पराजय के बाद से राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार के कामकाज और फैसलों को लेकर लगातार आक्रामक रुख दिखाते आ रहे हैं। ऐसा करते हुए वह कई बार सीमा का उल्लंघन उस हद तक कर बैठे जो उन्हीं के लिए घातक हो सकती हैं। जेएनयू में राष्ट्र विरोधी नारों को याद करें। सिर्फ मोदी विरोध की मानसिकता के चलते राहुल गांधी उन लोगों के कार्र्यक्रम में पहुंच गए जिन पर जेएनयू परिसर में भारत तेरे टुकड़े होंगे जैसे नारे लगाने का आरोप है। राहुल पर एक गंभीर आरोप लग चुका है। विकिलीक्स के एक केबल में कहा गया था कि उन्होंने अमेरिकी अधिकारियों से कथित रूप से कहा था कि खतरा आईएस से नहीं बल्कि हिन्दू आतंकवाद से है। क्या राहुल गांधी में हताशा घर कर गई है? उनमें हीनभावना की ग्रंथि पनप रही है। उन्हें भय सता रहा है कि सन 2019 में अगर मोदी एक बार फिर चमत्कार करने में सफल हो जाते हैं, ऐसी स्थिति उनका और कांग्रेस का भविष्य क्या होगा? वह मोदी विरोधी खेमे का नेता बनना चाहते हैं। समस्या यह है कि विपक्षी खेमा उन्हें अपना नेता मानने को तैयार नहीं दिख रहा।
संघ की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से किए जाने के मुद्दे पर एक खबरिया चैनल ने भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा और कांग्रेस की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी के बीच सीधे बहस का प्रसारण पिछले दिनों किया। बहस के दौरान चतुर्वेदी ने कहा कि कांग्रेस महात्मा गांधी के विचारों के अनुरूप काम करने और उनके बताए रास्ते पर चलने पर विश्वास करती है। सोशल मीडिया में इस पर एक सटीक टिप्पणी पढऩे को मिली। किसी ने कहा है कि राहुल गांधी जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं उससे जल्द ही उनकी पार्टी उस जगह पहुंच जाएगी जहां महात्मा इसे देखना चाहते थे। जर्मनी और ब्रिटेन में अपने बयानों से राहुल संकेत दे दिया है कि वह बापू की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए कटिबद्ध हैं। सारा देश जानता है कि महात्मा गांधी ने अपनी हत्या से तीन दिन पूर्व एक लेख लिखा था। यह लेख 2 फरवरी 1948 के हरिजन में प्रकाशित किया गया था। कुछ लोग इस लेख को बापू की अंतिम इच्छा मानते हैं। उनका कहना है कि अपने राजनीतिक स्वार्थों के चलते तत्कालीन कांगे्रसी नेतृत्व ने बापू की उस अंतिम इच्छा का सम्मान नहीं किया। इसके विपरीत कांग्रेसी आज तक महात्मा गांधी के नाम पर अपनी राजनीति की रोटियां सेंकते चले आ रहे हैं। लेख में महात्मा गांधी ने कहा था कि जिस उद्देश्य से कांगे्रस का गठन किया गया था वह पूरा हो चुका है अत: इसे अब भंग कर दिया जाना चाहिए और लोक सेवक संघ के नाम से एक नया संगठन बनाया जाए। कहा जाता है अपने इन विचारों से महात्मा गांधी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू को अवगत करा दिया था। इस दिशा में महात्मा गांधी कुछ कर पाते इससे पहले ही उनकी हत्या कर दी गई।
गत चार सालों के दौरान राहुल सैंकड़ों बार खबरों में बने। अपने विवादास्पद बयानों, विषयों की अपर्याप्त जानकारी, हरकतों(संसद में प्रधानमंत्री को झप्पी दे बैठना और संसद में आंख मारने) और कभी प्रधानमंत्री को घेरने की कोशिश में आधारहीन आरोप लगा कर वह स्वयं ही कांग्रेस को नुकसान पहुंचाते रहे हैं। नि:संदेह यह शोध का विषय हो सकता है कि इस तरह की बातों और व्यवहार के लिए उन्हें प्रेरणा कहां से मिलती है। उनके ज्ञान वृद्धि का स्रोत कहां है? उन कांग्रेसी गुरुजन की पहचान जरूरी है जिनसे राहुल गांधी ने राजनीति की यह विचित्र और आत्मघाती शैली सीखी है। अब तक होता यह रहा है कि राजनेता विदेश दौरों के दौरान अपने देश के अंदरुनी मामलों और राजनीति पर टिप्पणी करने से बचते रहे हैं। किसी ने कभी कटाक्ष किया भी तो उसमें मर्यादा का पालन किया जाता रहा। ओवैसी का ही उदाहरण लें। पाकिस्तान दौरे में जब उनसे भारत के मुसलमानों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने सवाल करने वाले को फटकार लगा दी। ओवैसी ने कहा कि आप को हमारे आंतरिक मामले पर चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। राहुल गांधी इस मामले में पूरी तरह से फेल हो गए। उनसे सवाल किया जाना चाहिए कि भारत के किसी संगठन और भारत सरकार की नीतियों, कार्यप्रणाली और यहां के हालातों को लेकर विदेश में रोना रो कर वह क्या हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। वह दुनिया को किस तरह का नजरिया दे रहे हैं। निश्चित रूप से राहुल गांधी देश और अपनी पार्टी दोनों के हितों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस तरह की राजनीति से उनकी पार्टी का जनाधार नहीं बढ़ सकेगा। ऐसी राजनीति से उन्हें यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि नरेन्द्र मोदी की छवि खराब कर वह देश-दुनिया में छा जाएंगे।
अनिल बिहारी श्रीवास्तव,
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