नई दिल्ली (तेज समाचार डेस्क). भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव के बीच कांग्रेस लगातार चीन और सीसीपी को बचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर तरह-तरह के आरोप लगा रही है. परंतु इसी बीच अब कांग्रेस का चीन के साथ गहरे संबंधों का खुलासा हो रहा है. हाल ही में एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ कि कांग्रेस चीन के साथ वित्तीय संबंध भी रखती है. रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2006 में चीनी दूतावास ने 10 लाख रुपये राजीव गांधी फाउंडेशन को दिया था.
– राजीव गांधी फाउंडेशन को फंडिंग करता है चीनी दूतावास
खबरों के अनुसार भारत स्थित चीनी दूतावास राजीव गांधी फाउंडेशन को फंडिंग करता रहा है. खबर के अनुसार चीन की सरकार वर्ष 2005, 2006, 2007 और 2008 में राजीव गांधी फाउंडेशन में डोनेशन दे चुकी है. बता दें कि इस फाउंडेशन की अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं, राहुल गांधी, डॉ मनमोहन सिंह, प्रियंका वाड्रा और पी. चिदंबरम इसके ट्रस्टी हैं.
– 2005-06 में अज्ञात राशि भी दी गई थी
CCP द्वारा यह दान खासकर राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेंपरेरी स्टडीज, नई दिल्ली को दिये गए थे. यही नहीं वर्ष 2005-06 में सीसीपी ने RGICS को एक अज्ञात राशि भी दान की थी. राजीव गांधी फाउंडेशन की 2005-06 की वार्षिक रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि राजीव गांधी फाउंडेशन को People’s Republic of China के दूतावास से फंडिंग की गयी है. सीसीपी ने वर्ष 2006-07 में, राजीव गांधी फाउंडेशन को 90 लाख रुपये का दान दिया.
– मुक्त व्यापार समझौते की वकालत
चीन का रुपया प्राप्त करने के बाद राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेंपरेरी स्टडीज ने वर्ष 2009-2010 में एक अध्ययन किया था, जिसमें भारत और चीन के बीच एक तत्काल ‘मुक्त व्यापार समझौते’ की वकालत की गई थी और यह कहा गया था कि यह समझौता भारत के लिए बहुत अधिक लाभदायक होगा. उससे पहले के वर्षों में भी इस फाउंडेशन ने भारत और चीन के बीच व्यापार और निवेश के मौके ढूँढने वाली संगोष्ठियों का आयोजन किया था. उस दौरान RGICS ने चीन से संबंधित दो प्रमुख परियोजनाएं / अध्ययन शुरू किए थे.
– भारत का व्यापार घाटा बढ़ाने का षड़यंत्र
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इस अध्ययन की रिपोर्ट में कहा गया था कि बेहतर आर्थिक स्थिति के कारण चीन ज्यादा फायदे में रहेगा. अगले कुछ वर्षो तक इसी तरह के अध्ययन के बाद रिपोर्ट आती रही और उनमें एफटीए की तरफदारी की जाती रही थी. भारत और चीन के बीच एक free trade agreement का होना मतलब दोनों देशों के बीच की सीमाएं आयात और निर्यात के लिए अनिवार्य रूप से खोली जाएंगी, जिसमें न तो सरकार का हस्तक्षेप होता है और न ही कोई टैरिफ लगता. यानी आसान शब्दों में इस एग्रीमेंट के लागू होने पर भारत घटिया चीनी वस्तुओं के लिए एक डंपिंग ग्राउंड बन जाएगा, यही नहीं इसके साथ-साथ चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा भी बढ़ेगा. यानी कांग्रेस देश को चीन के हाथों बेचने का पूरा प्रबंध कर रही थी.
– 36 अरब डॉलर तक पहुंच चुका था घाटा
इस तरह से चीन की तरफदारी करने और इस संगठन का चीन से रूपया प्राप्त करना कोई संयोग नहीं है. एक तरफ भारत चीन के बीच व्यापार असंतुलन बढ़ता रहा वहीं, फाउंडेशन का थिंक टैंक एफटीए के पक्ष में दलीलें देता रहा. 2003-04 के मुकाबले 2013-14 में व्यापार असंतुलन 33 गुना बढ़ चुका था. जब जब यूपीए 1 सत्ता में आई थी, तब चीन के साथ व्यापार घाटा 1.1 से 1.5 बिलियन अमरीकी डॉलर था. 2014 में जब वे सत्ता से बाहर हुए तब तक घाटा 36 अरब डॉलर के बराबर था. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि UPA 2 में ही RGICS ने एक मुक्त व्यापार समझौते की वकालत शुरू की थी. यही नहीं एक और घटना है जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है. जब कांग्रेस और चीन के बीच वर्ष 2008 में MOU पर हस्ताक्षर हुआ था उसके बाद से ही भारत और चीन का व्यापार घाटा आसमान छूने लगा था.