रविश जैसे दोगले पत्रकार की औकात पता चले ?
अपने बेबाक लेखन व ज्वलंत मुद्दों पर टिपण्णी करने वाली डॉ. सुजाता मिश्रा की फेसबुक वाल से “तेजसमाचार.कॉम“ के लिए साभार !
“यह आज़ाद भारत के इतिहास की सबसे शर्मनाक दीवाली रही।” कहने वाले रवीश कुमार दरअसल ये शब्द पर्यावरण के प्रति तुम्हारी चिंता नहीं बल्कि हिंदुओं के भीतर बढ़ते आत्मसम्मान और साहस देख खिसियाया हुआ तुम्हारा भय बोल रहा है! मैं खुद दीपावली या किसी भी अन्य पर्व पर आतिशबाजी का समर्थन नहीं करती, न मैं खुद कभी पटाख़े जलाती, साथ ही मैं मज़हब के नाम पर निरीह पशुओं की हत्या की भी उतनी ही विरोधी हूँ।
पर्यावरण बचाओं की ढफली पीटने वाले तुम जैसे तुच्छ मानसिकता के लोग यदि पारिस्थितिकी तंत्र(Ecology system) की रत्ती भर भी जानकारी रखते तो कम से कम पर्यावरण का “मज़हबीकरण” नही करते… पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले हर व्यक्ति, हर कार्य की निंदा करते, विरोध करते… जिसमें दीवाली के पटाखों के साथ स्वाद और आस्था के नाम पर की जाने वाली जीव हत्या भी शामिल होती और रियल एस्टेट के नाम पर बेतरतीब रूप से फैलते कंक्रीट के जगंलों पर भी विमर्श होता।
बिल्कुल सही कहा तुमने रवीश कुमार कि “दीवाली की रात सुप्रीम कोर्ट अल्पसंख्यक की तरह सहमा – दुबका नज़र आने लगा”… बिल्कुल सही कहा जिस तरह आज़ादी के बाद से ही इस देश में खुद को अल्पसंख्यक कहने वाला एक तबका ( जो कि वास्तव आबादी के हिसाब से भारत में दूसरा बहुसंख्यक है ) सदा खुद को कमजोर – लाचार दिखाकर बहुसंख्यक हिंदुओं के धार्मिक और राष्ट्रीय अधिकारों और इच्छाओं का दमन करता रहा है, ठीक उसी तरह से आज़ादी के बाद से ही माननीय सुप्रीम कोर्ट भी बहुसंख्यक हिंदुओं का उन कानूनों की आड़ में दमन करता रहा है जो अंग्रेजो द्वारा या उनसे प्रेरित भारतीयों द्वारा बनाये गए है!जिन कानूनों में भारतीय संस्कृति , इतिहास और समाज का सीधे तौर पर कोई जुड़ाव ही नहीं है..
यही वजह है कि अपने ही देश में आज हिन्दू समाज अपने आराध्य भगवान राम की जन्मस्थली के बचाव का वर्षों से इंतज़ार कर रहा है! बात – बात पर संविधान की दुहाई देने वाले तुम जैसे लोग क्या बता सकते है कि क्या भारतीय संविधान बहुसंख्यको के हितों की रक्षा की भी वैसी ही कोई गारंटी देता है जैसे अल्पसंख्यको को सैकड़ों प्रावधान बना के दी गयी है? क्यों न हो अवमानना ऐसे नियमों की जो बार -बार हिंदुओं की आस्थाओं ,परम्पराओं और स्वाभिमान पर चोट करते है? सही है तुम्हारा भय रवीश कुमार … हिंदुओं की धार्मिक आस्थाओं पर किसी तरह के अदालती फरमान अब नहीं टिकेंगे, कैसे भूल जाये न्यायिक इतिहास का वो काला दिन जब वर्तमान चीफ जस्टिस अपने तीन अन्य मित्रों के साथ अघोषित आपातकाल की घोषणा कर रहे थे?
क्या भरोसा किया जाए ऐसी न्यायपालिका पर, क्यों न माना जाए कि न्यायपालिका में बैठे लोग भी “विचारधारा विशेष” के मुताबिक चलते है? …. इसी संविधान की आड़ लेकर तुम जैसे क्रांतिकारी पत्रकार हिंदुओं के ख़िलाफ़ , भारतीयता के ख़िलाफ़ विषवमन करते रहे है …. डरो तुम और अपनी लेखनी से डराओं सबको क्योंकि अब हिंदुओं के धार्मिक हितों पर किसी भी प्रकार की कानूनी , वैचारिक या फ़ेसबुकिया तलवारबाजी पर इसी प्रकार “सविनय अवज्ञा” देखने को मिलेगी…….मन्दिर भी बनेगा…ये जनता ही बनाएगी… तुम जैसे डर और नफरतों के पैग़म्बरों की छाती पर चढ कर बनाएगी… अल्लाह तुम्हें वो दिन दिखाने के लिए सलामत रखें यही दुआ है… रवीश कुमार आज दीपावली के विरुद्ध तुमने जिस तरह का विषवमन किया है उसका यही जवाब होगा…. हम देखेंगे…लाज़िम है कि हम भी देखेंगे….
जय श्री राम।