जंगल के पांच हिस्सों में चुनावी उत्सव धूमधाम से संपन्न हो गया. लोकतंत्र की बीन पर नाचते-डोलते ‘नागनाथ’ अपनी-अपनी ‘बांबियों’ से बाहर आ कर फुफ़कारने लगे. क्योंकि इस बार चुनाव में उन्होंने ‘सांपनाथों’ को हराया है. पिछली दफा यही ‘सांपनाथ’ जीते थे. तब उन्होंने इन्हीं ‘नागनाथों’ को हराया था. जंगल के लोकतंत्र का उसूल यही है. यहां कभी पानी पर नाव चलती है, तो कभी नाव में पानी घुस जाता है. अपनी करारी हार से अब सांपनाथ पानी-पानी हो चुके हैं, लेकिन वे पक्के बेशर्म हैं, इसलिए उन्होंने चुल्लू भर पानी में डूबने से इनकार कर दिया है. वे अब अपने फन की भोथरी हो चुकी धार को और तेज करने में जुट गए हैं, ताकि 2019 की जंग पूरे जोशोखरोश से लड़ सकें.
इस बीच जनता रूपी कोयल, लोकतंत्र के पेड़ पर बैठकर अपनी आदत के अनुसार मधुर गीत गाने लगी है. उसके लिए चुनाव, खत्म क्या? शुरू क्या? उसे रोजमर्रा के काम तो करने ही हैं. हालांकि इन कोयलों के आसपास कार्यकर्ता रूपी कौए भी कांव-कांव कर सांपनाथों की हार और नागनाथों की जीत का मातम और जश्न मनाने लगे हैं. कोयल का गान जारी है और कौओं की कांव-कांव भी! यह सिलसिला बदस्तूर जारी ही रहेगा, चाहे नागनाथ जीते या सांपनाथ! कौओं और कोयलों की स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. लोकतंत्र में जीते कोई भी, जनता का भला कहां होता है? राजा तो राज करने के लिए पैदा होते हैं और प्रजा उनकी आज्ञा का पालन करने के लिए.
लेकिन इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि जब बाजी जीतने वाले घोड़ों में से किसी एक को उनका ‘मुखिया’ बनाने का निर्णय किसी ‘गधे’ द्वारा किया जाता है. वह गधा है, इसलिए अपने दरबारियों के साथ मिलकर भी विजेता घोड़ों का ‘मुखिया’ तय करने में दो-दो, तीन-तीन दिन लगा देता है. वाकई वह ‘शेर’ होता, तो इन मगराये घोड़ों को अपने इशारों पर नचा देता. हालांकि लोग इस चुनावी उत्सव के समापन पर कह कह रहे हैं, “पप्पू पास हो गया, और फेंकू फेल हो गया!” जबकि हमारी धारणा है कि न तो पप्पू पास हुआ है, न फेंकू फेल हुआ है. सिर्फ ‘सांपनाथों’ की सत्ता ‘नागनाथों’ के हाथ आयी है. सिर्फ सत्ता परिवर्तन हुआ है, व्यवस्था परिवर्तन नहीं. जिस दिन वाकई व्यवस्था में परिवर्तन होगा, जंगल में मंगल जरूर आएगा. तब तक कोयल मधुर गीत गाती रहेगी …और कौए कांव-कांव कर बेसुरी तान देते रहेंगे. नागनाथ और सांपनाथ मौके पर चौका मारकर इन कोयलों और कौओं का शिकार करते रहेंगे!
कोयल (जनता) का कहना है कि चाहे नागनाथ जीते, या सांपनाथ, …वह अपना गाना (काम) बंद नहीं करेगी. इस दौरान नागनाथ के समर्थक ‘बिच्छूनाथ’ का कहना है कि इन कोयलों को अपने गीतों (कामों) में मगन रहने दो भाई, जिस दिन यह अपने हत्थे चढ़ जाएगी, उसी दिन मिल-बांट कर इसे हजम कर जाएंगे! तभी सांपनाथों ने शंका जताई कि उन कबूतरों का क्या करें, जो खुले आसमान में उड़ रहे हैं. क्या उन्हें हम सांपनाथों या नागनाथों से भय नहीं लगता? अरे, हमारा तो मुख्य हथियार ही भय है. हम लोग जाति, वर्ग, धर्म और संप्रदाय का डर ही तो एक-दूसरे को दिखाते हैं, …तभी तो सत्ता पाते या गंवाते हैं!
यह सच है कि रोजी-रोटी, महंगाई, बेरोजगारी और खेत-खलिहानों की समस्या मुख्य मुद्दा बन जाती, तो इन सारे सांपनाथों-नागनाथों की अक्ल ठिकाने पर आ जाती. लेकिन ‘परिवार’ के ‘रिमोट कंट्रोल’ से संचालित होने वाले इन दोनों ‘विषधरों’ को कोयल-कबूतर-कौए जैसी जनता की समस्या से कोई सरोकार नहीं है. इनको तो अपने वोट बैंक का फन फैलाकर फुफकारते हुए सिर्फ सत्ता हासिल करनी है. इसी सत्ता के अंडे और मलाई, बारी-बारी से ये सांपनाथ और नागनाथ खा रहे हैं …और हम सब मिलकर इन ‘विषधरों’ का तमाशा देख रहे हैं. क्योंकि हम सब सिर्फ तमाशबीन हैं. इससे ज्यादा क्या औकात है हमारी?
(सुदर्शन चक्रधर – संपर्क : 96899 26102)