नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को तीन तलाक पर फैसला सुना सकता है। इस मुद्दे पर नौ और पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठों ने सुनवाई करके अपना फैसला सुरक्षित रखा हुआ है।
इस खंड पीठ में सभी धर्मों के जस्टिस शामिल हैं जिनमें चीफ जस्टिस जेएस खेहर (सिख), जस्टिस कुरियन जोसफ (क्रिश्चिएन), जस्टिस रोहिंग्टन एफ नरीमन (पारसी), जस्टिस यूयू ललित (हिंदू) और जस्टिस अब्दुल नजीर (मुस्लिम) शामिल हैं.
इस मामले पर शीर्ष अदालत में 11 से 18 मई तक सुनवाई चली थी और फैसले को सुरक्षित रख लिया गया था. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि ऐसे भी संगठन हैं, जो कहते हैं कि तीन तलाक वैध है, लेकिन मुस्लिम समुदाय में शादी तोड़ने के लिए यह सबसे खराब तरीका है और यह अनवांटेड है. कोर्ट ने सवाल किया कि क्या जो धर्म के मुताबिक ही घिनौना है वो कानून के तहत वैध ठहराया जा सकता है? जो ईश्वर की नजर में पाप है, क्या उसे शरियत में लिया जा सकता है.
-इसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने की थी।जस्टिस खेहर 27 अगस्त को सेवानिवृत हो रहे हैं। नियम के मुताबिक, जो पीठ सुनवाई करती है वही फैसला देती है। इसीलिए प्रत्येक न्यायाधीश सेवानिवृति से पहले उन सभी मामलों में फैसला दे देता है, जिनकी उसने सुनवाई की होती है।
अगर सुनवाई करने वाली पीठ का कोई भी न्यायाधीश फैसला देने से पहले सेवानिवृत हो गया तो उस मामले में दोबारा नये सिरे से सुनवाई होगी और तब फैसला दिया जाएगा। ऐसे में माना जा रहा है कि जस्टिस खेहर की सेवानिवृति से पहले इस मामले में फैसला आएगा।सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक की वैधानिकता पर छह दिन सुनवाई चली। गत 18 मई को फैसला सुरक्षित हुआ। शुरुआत में कोर्ट ने स्वयं संज्ञान लिया, लेकिन बाद में तीन तलाक पीडि़त महिलाओं ने भी याचिकाएं डालीं और इसे असंवैधानिक घोषित करने की मांग की।
याचिकाकर्ता
1- ये महिलाओं के साथ भेदभाव है।
2- महिलाओं को तलाक लेने के लिए कोर्ट जाना पड़ता है, जबकि पुरुषों को मनमाना हक है।
3- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है।
4- ये गैर कानूनी और असंवैधानिक है।
सरकार
1- ये महिलाओं को संविधान मे मिले बराबरी और गरिमा से जीवनजीने के हक का हनन है
2- ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है इसलिए इसे धार्मिक आजादी के तहत संरक्षण नहीं मिल सकता
3- पाकिस्तान सहित 22 मुस्लिम देश इसे खत्म कर चुके हैं
4- धार्मिक आजादी का अधिकार बराबरी और सम्मान से जीवन जीने के अधिकार के आधीन है
5- अगर कोर्ट ने हर तरह का तलाक खत्म कर दिया तो सरकार नया कानून लाएगी।
मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड
1- ये अवांछित है, लेकिन वैध
2- ये पर्सनल ला का हिस्सा है कोर्ट दखल नहीं दे सकता
3- 1400 साल से चल रही प्रथा है ये आस्था का विषय है संवैधानिक नैतिकता और बराबरी का सिद्धांत इस पर लागू नहीं होगा
4- पर्सनल ला को मौलिक अधिकारों की कसौटी पर नहीं परखा जा सकता