नई दिल्ली ( तेजसमाचार संवाददाता ) – अटलजी के प्रेरक जीवन के अविस्मरणीय प्रसंगों को विभिन्न पुस्तकों और स्रोतों से अटलनामा के जरिए एक मीडिया मित्र ने सुन्दर संकलित किया है. हिन्दुस्तान को परमाणु संपन्न कर विश्व पटल पर स्थान दिलाने वाले पूर्व प्रधानमन्त्री, राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक, पत्रकार, कवि, ओजस्वी वक्ता, करोड़ों भारतवासियों के आदर्श अटल बिहारी वाजपेयी का स्मरण करते हुए तेजसमाचार.कॉम की श्रध्दा सुमनों के साथ प्रस्तुति :- भाग 06
21-
जब दो लोगों से अटलजी ने माफ़ी मांगी थी –
इंदिरा गांधी के निरंकुश आपात्कालीन शासन का जब खात्मा हुआ तो तब संपन्न हुए 1977 के आम लोकसभा चुनावों में युग पुरुष लोकनायक जे.पी. के नेतृत्व में जनता पार्टी ने पूर्ण बहुमत हासिल किया. जे.पी. इस जीत को सत्य की जीत मानते थे . यही वजह थी की नयी सरकार ने अपना शपथ ग्रहण राष्ट्रपति भवन में ना ले कर के महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर लिया . जे.पी. की जनता पार्टी कई दलों का समूह थी जिसमे अलग अलग विचारधारा वाले लोग थे , उसमे कम्युनिस्ट भी थे,उसमे सोशलिस्ट भी थे और दक्षिण पंथी भी थे . जे.पी. जानते थे की इन विचारधाराओं को एक साथ संभल कर आगे बढ़ने में दिक्कत होगी,जे.पी. को डर था की कहीं ये पार्टी बिखर न जाए इसी लिए उन्होंने महात्मा गांधी की समाधि को साक्षी मान कर सरकार का गठन किया और सभी को शपथ दिलाई थी . पर वामपंथियों की भगवा जनसंघ से पटरी ना खा पायी और सरकार टूट गयी . जे.पी. ने अपनी आँखों के सामने जनता पार्टी का विघटन देखा . अटल जी तब उसी जनता पार्टी के सांसद थे (नयी दिल्ली सीट से,शशि भूषण को हराया था ) अटल जी जानते थे की जे.पी. के लिए ये सदमा वैसा ही है जैसा एक बाप के लिए उसके बेटे की मृत्यु ….पर अटल जी चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते थे . अटल जी को यही बात रह रह के खाती थी . इस बात ने अटल जी के दिल में वो घाव कर दिया था जो जेपी की मृत्यु के कारण और भी गहरा हो गया. इसी दुखद घटना को याद करते हुए अटल जी ने ये पंक्तियाँ लिखीं और बापू से और जे.पी. से क्षमा मांगी –
क्षमा करो बापू ! तुम हमको,
वचन भंग के हम अपराधी .
राजघाट को किया अपावन,
मंज़िल भूले, यात्रा आधी .
जयप्रकाशजी ! रखो भरोसा,
टूटे सपनो को जोड़ेंगे .
चिताभस्म की चिंगारी से,
अंधकार के गढ़ तोड़ेंगे .
22-
मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
गैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना.
– श्री अटल बिहारी वाजपेयी
23-
‘मेरी सबसे बड़ी भूल है राजनीति में आना. इच्छा थी कि कुछ पठन-पाठन करुंगा. अध्ययन और अध्यवसाय की पारिवारिक परंपरा को आगे बढ़ाऊंगा. अतीत से कुछ लूंगा और भविष्य को कुछ दे जाऊंगा, किंतु राजनीति की रपटीली राह में कमाना तो दूर रहा, गांठ की पूंजी भी गंवा बैठा. मन की शांति मर गई. संतोष समाप्त हो गया. एक विचित्र-सा खोखलापन जीवन में भर गया. ममता और करुणा के मानवीय मूल्य मुंह चुराने लगे हैं. क्षणिक स्थाई बनता जा रहा है. जड़ता को स्थायित्व मान कर चलने की प्रवृत्ति पनप रही है.’
– श्री अटल बिहारी वाजपेयी
24-
जो कल थे वे आज नहीं है
जो आज हैं वे कल नहीं होंगे
होने न होने का ये क्रम ऐसे ही चलता रहेगा….
हम हैं, हम रहेंगे ! ये भ्रम भी सदा पलता रहेगा….!!
– श्री अटल बिहारी वाजपेयी
25-
बाधायें आती हैं आयें
घिरें प्रलय की घोर घटायें,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालायें,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीघर हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढ़लना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
26-
संसद में अटल जी बोल रहे थे तो कलमाड़ीजी (कामनवेल्थ वाले) शोर मचा रहे थे ,उनको बोलने नहीं दे रहे थे, तब अटल जी ने उन्हें मराठी में समझाया. अटल जी ने कहा ‘पहली बार जब हम सदन में चुन कर आये तो हम सिर्फ 2 थे …इतना सुनते ही कलमाड़ी बोले ”आएगा वो दिन फिर आएगा.” तब अटल जी ने कहा -”आएगा तो हम सामना करेंगे ! पर आज तो हम इतनी बड़ी संख्या में बैठे है की आप के साथ तो कोई तुलना नहीं हो सकती. हम विजयी हुए हैं, फिर भी हममें विनम्रता हैं. पराजय पर (कलमाड़ी जी की तरफ हाथ करते हुए ) तो आत्म मंथन होना चाहिए या ये काम करना
भी हम ही बताएंगे. कम से कम अब तो बोलने दीजिए.
लेकिन अटल जी भली भांति जानते थे संसद सत्र की महत्ता इसलिए उन्होंने तुरंत कहा की ‘फ़िलहाल मै इस बहस में पड़ना नहीं चाहता’ …!!