फिल्म इंडस्ट्री एक आकाशगंगा है।जहां कई सितारे आते हैं चमकते हैं और फिर ख़त्म हो जाते हैं। लेकिन उनमें कुछ सितारे ऐसे भी होते हैं जो हमेशा चमकते रहते हैं। जैसे ‘शुक्र’।किशोर कुमार बॉलीवुड के वही शुक्र हैं। 4 अगस्त 1929 को आभास कुमार गांगुली के नाम से पैदा हुए किशोर कुमार का आज जन्मदिन है ।
गोधूली आती है, सूरज विदा लेने लगता है। थके हुओं को सुकून के लिये कुछ चीजों की दरकार होती है और किशोर कुमार की आवाज उनमें से एक है। किशोर कुमार का संगीत संसार भोर से लेकर दिन और रात के सारे पहरों को जाग्रत कर देता है। उनकी आवाज एक बालक से लेकर एक वृद्ध को उनका मनचाहा भाव दे देती है।
किशोर के गायन के बहुत सारे पहलू हैं पर एक बात जो बहुत ज्यादा आकार्षित करती है वह है उनका किसी किसी गाने को बहुत हल्के स्वर से शुरु करना और उसके उपरांत जैसे जैसे भाव हों बोलों के उनके अनुरुप ही अपनी आवाज को खोलते जाना और उसे यहाँ वहाँ आकर्षक विस्तार देना।
इस हल्के स्वर के जादू को चाहे उनकी आवाज की एक रोमांटिक अदा कह लें या किसी और विशेषण से इस प्रवृति को नवाज दें पर यह अदा इतनी दिलकश है कि इसका जादुई असर भुलाये नहीं भूलता, छुड़ाये नहीं छूटता। इसे गुनगुनाना भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि कितने ही गानों में उन्होने स्थापित और परिभाषित गुनगुनाने की कला को भी अपनाया है।
किशोर के दर्द भरे नग्मे, किताबों, कैसेट्स और सीडी के शीर्षक मात्र ही नहीं हैं बल्कि बहुत सारे गीत जैसे, “कोई होता जिसको अपना“, “बड़ी सूनी सूनी हैं“, “आये तुम याद मुझे” आदि इत्यादि का कहीं भी बजना उस जगह को दिन के विकट उजाले के समय भी घनघोर अंधकार से भर देता है और श्रोता के दिल को, उसके अस्तित्व को भारी और बोझिल बना देता है।
खुशी और ग़म में उनकी आवाज के असर को देखने का गवाह बनना हो तो सफर फिल्म को देखें और सुनें “जीवन से भरी तेरी आँखें” और “ज़िंदगी का सफर है ये कैसा सफर” के अंतर को। असित सेन ने कितनी ईमानदार बुद्धिमत्ता से फिल्म में शर्मिला टैगोर को एक संवाद भी दे दिया जब वे राजेश खन्ना से कहती हैं कि ‘कल तक यहाँ ज़िंदगी बसती थी और आज मौत का असर सा आ गया लगता है।’
उनकी आवाज इस जिम्मेदारी से अलग हटती प्रतीत नहीं होती। उनकी आवाज उदासी और रोमांटिक अंदाज दोनों को बखूबी सम्भालती हुयी हवा में गूँजती रहती है।
किशोर कुमार का गायन क्या कर सकता है इसे जानने के लिये अमिताभ बच्चन की फिल्मोग्राफी में उनकी फिल्मों में पार्श्व गायन के इतिहास का अध्ययन अत्यंत रोचक है। अस्सी के दशक में अमिताभ बच्चन ने किशोर कुमार की बहुत ऊँचे स्तर के गायकी आवाज का सहारा छोड़ कम स्तर के गायकों की गायकी का सहारा अपने गानों के पार्श्व गायन के लिये लिया था पर एक भी गाना उस ऊँचाई को नहीं पहुँच पाया जहाँ किशोर कुमार के गाये गाने बड़ी सहजता से पहुँच जाते थे। जब किशोर कुमार ने फिर से शराबी में उन्हे आवाज दी “मंजिलें अपनी जगह हैं” में तो उन्हे समझ में आ गया होगा कि क्यों सत्तर के दशक और अस्सी के दशक के शुरुआती सालों में अमिताभ पर फिल्माये गये गाने, जो किशोर कुमार ने गाये थे, इतने प्रसिद्ध थे।
हैप्पी बड्डे किशोर दा। विनम्र श्रद्धांजलि
सादर/साभार
Sudhanshu Tak