कहावत तो यही है कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है. लेकिन इस घोर कलियुग के सियासती तालाब में इतनी सारी गंदी मछलियां तैर रही हैं कि देश का सबसे बड़ा ‘स्वच्छता अभियान’ भी शुद्ध पानी ढूंढने लगा है. राजनीति में हमेशा प्रचार, दुष्प्रचार और कुप्रचार का अपना अलग स्थान रहा है, लेकिन इन दिनों उछाले जा रहे हो ओछे शब्दों ने राजनीतिक पतन के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. ऐसा नहीं है कि भाषा की शालीनता लांघने में सिर्फ कांग्रेस और भाजपा ही अव्वल हैं, शेष सभी दलों के नेता इसमें ‘महारथी’ हो चुके हैं. एक जमाने में बालासाहब ठाकरे, शरद पवार को ‘मैदे का बोरा’ कहते थे, तो पवार भी उन्हें पलटवार कर ‘मांद में छिपा शेर’ कह देते थे. फिर भी दोनों की भाषाओं में शालीन व्यंग्य होता था. किंतु आज व्यंग्य का स्थान गाली-गलौच ने ले लिया है.
बहुत पहले इंदिरा गांधी को हराने वाले विपक्षी दल के नेता राजनारायण को कई कांग्रेसी ‘जोकर’ कहा करते थे. लालू प्रसाद यादव को भी कई नेता पहले ‘विदूषक’ और बाद में ‘चारा चोर’ कहने लगे थे. मगर इन दिनों बात बहुत आगे बढ़ चुकी है. खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ‘चौकीदार चोर है’ का नारा अपनी रैलियों में लगवा रहे हैं. प्रधानमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर विराजे नेता के लिए ऐसा कहना क्या अशोभनीय नहीं है? राहुल की देखा-देखी अब कांग्रेस के अन्य नेता भी करने लगे हैं. जैसे उत्तरप्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर ने पीएम मोदी को हाल ही में ‘मनहूस’ कहते हुए रुपए की तुलना मोदी की मां से कर दी. सियासी फायदे के लिए प्रधानमंत्री की मां को घसीटना क्या उचित है? इससे पहले मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरुपम मोदी को ‘निकम्मा’ तक कह चुके हैं. गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने मोदी को ‘नीच आदमी’ कह डाला था. इसका विपरीत परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस वहां सत्ता में आने से चूक गयी.
फिजिक्स सीखो सरलता से –
यह सब जानते हुए भी पूर्व केंद्रीय मंत्री और राजस्थान के नाथद्वारा से कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. सीपी जोशी ने एक जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और साध्वी ऋतंभरा की जाति पूछ ली. उन्होंने कहा, “इन दोनों की जाति क्या है? ये हिंदू धर्म के बारे में कैसे बात करते हैं? धर्म के बारे में तो सिर्फ पंडित ही जानता है. उमा भारती तो लोधी समाज की हैं. वो कैसे हिंदू धर्म की बात कर रही हैं?” जोशी का यह बयान सामने आते ही बवाल मच गया. भाजपा बिफ़र गई. राहुल गांधी को जोशी की गलती का एहसास हुआ, तो उन्होंने ‘डैमेज कंट्रोल’ करने ट्वीट कर तुरंत इस पर ऐतराज जताया. कहा, “जोशी का बयान कांग्रेस के आदर्शों के विपरीत है.” झट से जोशी ने अपने बयान पर माफी मांग ली. लेकिन बात बढ़ गई और भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया. अब यही बयान कांग्रेस की संभावनाओं पर भारी पड़ता दिख रहा है.
सब कहते हैं कि ‘तीर कमान से और बात जुबान से’ निकल जाए, तो कभी वापस नहीं आती. फिर नेताओं की फिसलती जुबान और अपशब्दों के अंबार को कोई कैसे भूल सकता है? ऐसा नहीं है कि सिर्फ कांग्रेस नेता ही मोदी पर ओछे शब्दों से वार करते हैं. खुद मोदी भी ऐसे शब्दों से प्रहार करने में माहिर हैं. उन्होंने 2004 में सोनिया-राहुल को ‘जर्सी गाय और हाइब्रिड बछड़ा’ कहा था. 2014 में मोदी ने मनमोहन सिंह को ‘रात का चौकीदार’ कहा था. वे कई वर्षों तक राहुल गांधी को ‘पप्पू और शहजादा’ भी कहते रहे. आजकल वे राहुल को ‘नामदार’ कहने लगे हैं. उन्हीं की तर्ज पर राहुल को भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने ‘बुद्धू’, साक्षी महाराज ने ‘पागल’, स्मृति ईरानी ने ‘छोटा भीम’, अरुण जेटली ने ‘मसखरा’, संबित पात्रा ने ‘जूते मारो’, तरुण चुग ने ‘मंदबुद्धि’, अश्विनी चौबे ने ‘मनोरोगी’ और कैलाश विजयवर्गीय ने ‘रावण’ कहा था.
उसी प्रकार सोनिया गांधी ने 2007 के गुजरात चुनाव में नरेंद्र मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कहा था. यही नहीं, मोदी को कांग्रेस नेता रिजवान उस्मानी ने ‘बदतमीज’, बीके हरिप्रसाद ने ‘नाली का कीड़ा’, अर्जुन मोढवाडिया ने ‘पागल और बंदर’, गुलाम नबी आजाद ने ‘भस्मासुर’ दिग्विजय सिंह ने ‘रावण’ और सलमान खुर्शीद ने ‘नपुंसक’ कहा था. खुद राहुल गांधी भी मोदी को ‘खून की दलाली करने वाला गब्बर सिंह और चौकीदार-चोर’ कह ही चुके हैं. सवाल है कि क्या कांग्रेस अथवा भाजपा अपशब्दों का सहारा लेकर चुनाव जीतेगी? देश की जनता को ही अब यह सोचना चाहिए कि इन ‘गंदी मछलियों’ के भाषण सुनना चाहिए या नहीं?
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