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खानदेश के पदमालय तीर्थ में गणेशजी से जुडी है अलौकिक कथाएं

Tez Samachar by Tez Samachar
September 7, 2019
in Featured, खानदेश समाचार, प्रदेश, लाईफस्टाईल
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खानदेश के पदमालय तीर्थ में गणेशजी से जुडी है अलौकिक कथाएं

खानदेश के पदमालय तीर्थ में गणेशजी से जुडी है अलौकिक कथाएं

विराजमान है बाएं व दाएं सूंडवाले गणेशजी

महाराष्ट्र के अष्टविनायक की तरह मान्यता 

ढाई पीठ के आधे पीठ के रुप में पहचान   

पदमालय तालाब में वर्ष भर खिलते हैं कमल के फूल

      मंदिर में है ११ मन वजन के पंचधातु का घंटा    

( विपुल पंजाबी ) जलगांव शहर से लगभग ३० किलोमीटर की दूरी  एरंडोल तहसील में  स्थित पदमालय तीर्थ स्थल गणेशोत्सव के दौरान एक बडे श्रध्दा का केंद्र बना हुआ है. आमतौर पर वर्ष भर पदमालय तीर्थ स्थल पर श्रध्दालुओं का आगमन होता है. किंतु गणेशोत्सव के दौरान पदमालय में विराजमान बाएं व दाएं सूंडवाले गणेशजी की मूर्ति का दर्शन श्रध्दालुओं को एक वरदान समान प्राप्त होता है. पदमालय तीर्थ स्थल की कई अलौकिक बाते इसे और भी महत्वपूर्ण बना देती है. खान्देश के इस पुरातन मंदिर में चांदी के सिंहासन पर गणेशजी की बाएं व दाएं सूंडवाली  मूर्ति रत्नों से सजी विराजमान है. मंदिर संस्थान के विश्वस्तों का कहना है कि, महाराष्ट्र के अष्टविनायक की तरह मान्यता रखनेवाले इस तीर्थ को ढाई पीठ के आधे पीठ के रुप में जाना जाता है.

 गणेशजी की मूर्ति किसी के द्वारा भी तैयार न करते हुये स्वयं भू रुप में प्रकट हुई है. पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि, शेषनाग ने जब धरती को विराजमान कराया था उस समय गणेशजी से दाएं और दर्शन देने के लिए अनुनय विनय की थी. शेषनाग की इच्छा पूरी करने के लिए गणेशजी ने पदमालय क्षेत्र में स्वयं भू प्रवाल के रुप में दर्शन प्रदान किये. वही कालांतर में एक कृतवीर्य नामक राजा द्वारा अपने वंश को चलाने के लिए पुत्र रत्न प्राप्ती के लिए तपस्या की. राजा को तपस्या के प्रताप से बिना हांथ व बिना पैरवाला पुत्र प्राप्त हुआ. राजा ने पुत्र का नाम कार्तवीर्य रखा. कार्तवीर्य ने १२ वर्ष की आयु के बाद नमो हेरंब मंत्र का जाप करते हुये तपस्या प्रारंभ की. तब गणेशजी ने दाएं और मुंह करके प्रवाल के रुप में कार्तवीर्य को दर्शन दिये. गणेशजी के इन दोनों वरदानों के प्रभाव में ही पदमालय में अलौकिक छटा विराजमान है.

एक अन्य पौराणिक कथा में बताया जाता है कि, सिंधु राक्षस द्वारा शंकरजी की तपस्या करते हुये अमर होने का वरदान प्राप्त किया गया था. जिसके उपरान्त शक्तियों के मद में चुर सिंधु राक्षस द्वारा देवताओं को ही सताना प्रारंभ किया गया. सिंधु राक्षस को ललकारते हुये गणेशजी ने घनघोर युध्द किया. और सिंधु राक्षस के  शरीर के टुकडे-टुकडे कर दिये किंतु वरदान के प्रभाव से सिंधु राक्षस पुन: जीवित हो गया. तब गणेशजी की पत्नीयों रिध्दी-सिध्दी ने गणेशजी को राक्षस के तीन टुकडे करके अलग-अलग दिशा में फेकने की सलाह दी. जिसके आधार पर राक्षस का पैरभाग इस क्षेत्र में फेका गया. तब जाकर इस भाग का नाम पादभाग और बाद में पदमालय पडा. सिंधु राक्षस के वध के आधार पर पदमालय को आधे पीठ की संज्ञा दी जाती है.

 

पदमालय मंदिर का जीर्णउध्दार वर्ष १९०३ के बाद किये जाने की जानकारी है. एक बात और विशेष है कि, पदमालय के तालाब में वर्ष भर कमल के फू ल खिलते रहते है. तालाब सूखने की अवस्था में भी कमल का अस्तित्व बना रहता है.

 मंदिर में ११ मन वजन के पंचधातु का घंटा भी मौजूद है. इन सब के अलावा पौराणिक कथाओं में बताया जाता है कि, महाभारत काल में जब पांडव अज्ञात वास पर वन-वन भटक रहे थे.

तब भीम ने बकासुर राक्षस का वध भी पदमालय परिसर में किया था. इसके अवशेषों के रुप में आज भी एक उपरी चट्टान पर एक निशान को भीम के घुटने व पंजे के निशान बताकर आस्था व्यक्त की जाती है.

गणेशोत्सव के दौरान महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात  आदि राज्यों से गणेश उपासक बडे पैमाने पर एरंडोल परिसर के पदमालय में आते है. पदमालय के मुख्य मंदिर के चारों और छोटे-छोटे मंदिर इस परिसर को और भी धार्मिक बना देते है. गणेशोत्सव के दौरान  पदमालय में लोगों द्वारा अपनी मन्नत पूरी करने, पारिवारिक कार्यक्रम मसलन, मुंडन आदि के आयोजन भी किये जाते है.

Tags: Khandesh पद्मालय padmalay ganpati ganesh jalgaonnews dhulenews dhule shirpur erandol एरंडोल जलगाँव
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