– शिक्षा व अनुसंधान विश्वविद्यालय में वरिष्ठ नागरिकों का सम्मेलन
भुवनेश्वर (तेज समाचार डेस्क). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि लोगों को लगता है कि अंग्रेजों के आने से हमारी उन्नति हुई, लेकिन यह गलत बात है, क्योंकि अगर वे नहीं आते तो हम वर्गविहीन समाज की स्थापना वेदों के आधार पर कर सकते हैं. हमारी परंपरा क्या है? हमारी एकता का आधार क्या है? हमारा राष्ट्र कौन सा है? इस बारे में अवधारणा हमारे देश में पहले से विद्यमान थी. अंग्रेजों की राजनीति के निकट जो लोग गए या द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जो समीकरण बदले, उनमें जिनके स्वार्थ उभरकर आए, उनकी भाषा अलग हो गई. वर्ना सत्य यह है कि यह हिन्दुओं का देश है, यह हिन्दू राष्ट्र है और हिन्दू किसी पूजा का नाम नहीं, किसी भाषा का नाम नहीं, हिन्दू एक संस्कृति का नाम है जो भारत में रहने वाली जनता की विरासत है. यह संस्कृति तमाम वैश्विक विविधताओं को स्वीकार और सम्मान देने वाली है. इसलिए दुनिया का कोई भी देश जब भी भ्रमित हुआ या लड़खड़ाया तो इसी देश की धरती पर आया.
– भारत ने यहूदियों को आश्रय दिया
डॉ. भागवत शिक्षा व अनुसंधान विश्वविद्यालय में वरिष्ठ नागरिकों के सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि जब यहूदी लोग दुनिया में मारे-मारे फिरते थे, तब अकेला भारत ही देश था जहां उनको आश्रय मिला. पारसियों की पूजा पद्धति और उनका मूल धर्म सुरक्षित केवल भारत में है. विश्व में सर्वाधिक सुखी मुसलमान भारत में मिलेगा क्योंकि हम हिन्दू हैं. समाज में परिवर्तन होने पर ही देश के भाग्य बदलेगा. इस कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व्यक्ति निर्माण के माध्यम से समाज जागरण का कार्य कर रही है. जो भी संघ को जानना चाहते हैं वे संघ के करीब आएं और संघ को समझें.
– स्वार्थ भूलकर देश को आगे लाना चाहिए
डॉ. भागवत ने कहा कि देश का भाग्य बदलने के लिए महापुरुष, नेता व सरकार की भूमिका तो होती है, लेकिन मूल बात यह है कि बिना समाज के बदले यह संभव नहीं है. जब समाज के लोग अपने स्वार्थों को भूल कर देश को आगे लेने के लिए कार्य करेंगे तो देश आगे जाएगा. लोग समाज के श्रेष्ठ लोगों के आचरण का अनुसरण करते हैं. इस कारण हमें गांव, गली व शहर में चरित्रवान लोग खड़े करने पड़ेंगे. उन्होंने कहा कि भारत में विविधता में एकता नहीं बल्कि एकता में विविधता है. यहां विभिन्न मत पंथ संप्रदाय, अनेक भाषा, परिधान होने के बावजूद हम एक हैं हिन्दुत्व के कारण एक हैं. यहां पहले भी अनेक राज्य होते थे लेकिन सांस्कृतिक दृष्टि से भारत एक राष्ट्र था. इस बात को स्वतंत्रता तक अनेक नेता मानते थे.