जलगाँव ( कुणाल महाजन तेज समाचार ) – मात्र दो वर्ष की उम्र में ही उसे पोलियो हो गया था , और वह चलने में असमर्थ हो गई. आस पड़ोस के लोग, रिश्तेदार सब सहानभूति जतलाने लगे, लेकिन बचपन से जवानी के सफ़र में उसे प्रेरणा देने वाले कम ही मिले. जन्मदाती माँ ने उसकी प्रतिभा को पहचाना और आगे बदने के लिए प्रेरित किया. उसकी मां ने दिव्यांग बेटी का हौसला बढाते हुए कहा कि तुम बहुत आगे बढ़ सकती हो. मां की प्रेरणा से प्रेरित हो कर उसने बैसाखी के सहारे दौड़ना शुरू किया. इसी वर्ष 12 अक्टूबर को उसने ग्वालियर में संपन्न हुई मैराथन स्पर्धा में बैशाखियों के सहारे दौड़कर अपने दिव्यांग होने के भाव को झूठा साबित कर दिखाया.
मै जब मुंबई की दोनों पैरों से दिव्यांग 44 वर्षीय जय श्री शिंदे के आत्मविश्वास व हौसले की इस कहानी को पढ़ रहा था तब मुझे लगा कि मैं भी बैशाखियों के सहारे दौड़ सकता हूँ. बस फिर क्या था मेरी इस इच्छाशक्ति को मांगीलाल बाफना नेत्रपेढी के संचालक डॉ. रवि हिरानी, मेरे परिजनों व दोस्तों ने प्रेरित कर साकार करने में सहायता की. मुंबई की 44 वर्षीय जय श्री शिंदे 400 किमी दौड़ने का लक्ष हासिल करना चाहती हैं. ऐसे में मैं भला कैसे पीछे रह सकता हूँ. कम से कम 4 किमी दोड़ने की हिम्मत तो कर सकता था.
मुझे मौका मिला जलगाँव वासियों के स्वास्थ के लिए ” जलगाँव रनर्स ग्रुप ” द्वारा हाल ही में आयोजित मैराथन स्पर्धा में अपने हौसले को प्रस्तुत करने का. और मैंने बैशाखियों के सहारे तीन किमी दौड़कर ” दिव्यान्गों ” को सहानभूति नहीं प्रेरणा की आवश्यकता का सन्देश प्रस्तुत किया.
यह दिल खोलकर भावनाएं जलगाँव के रोहित कटारिया ने व्यक्त कीं. जलगाँव में एक फायनेंस कंपनी में प्रबंधक जैसे उच्च पद पर कार्यरत रोहित ने बताया कि विगत 2 दिसम्बर को जलगाँव में संपन्न हुई खानदेश मैराथन स्पर्धा में हिस्सा लेते हुए वह चाहते थे की एक आम प्रतियोगी की तरह ही उन्हें माना जाये. बैशाखियों के सहारे दोड़ता देखकर उनपर सहानभूति न दर्शाई जाये. परिणाम यह थे की जलगाँव वासियों , दोस्तों, परिजनों सभी ने उन्हें बेहद प्यार दिया.
रोहित ने बताया कि बचपन से ही उन्होंने दिव्यान्गता को अपने जीवन से दूर रखकर शिक्षा का दामन थामा. आज वह एक बड़ी फायनेंस कंपनी में क्रेडिट मेनेजर पद पर कार्यरत है. ” जलगाँव रनर्स ग्रुप ” द्वारा आयोजित मैराथन स्पर्धा में उन्होंने तीन किमी की दुरी तय की. इस प्रेरणा से वह अब अन्य शहरों व आगामी समय में होने वाली ऐसी मैराथन स्पर्धा में दौड़ने का मन बना चुके हैं.
रोहित बताते हैं कि वह जब निकोलस वुजिसिक को देखा करते थे तब सोचते थे की निकोलस के तो हाँथ व पैर दोनों नहीं हैं , फिर भी वह अपनी दिव्यान्गता से हटकर चपल , चंचल है. और आज विश्व में सर्वाधिक चर्चित दिव्यांग है. रोहित मानते हैं कि ऐसी घटनाएँ, सफल कहानियां दिव्यान्गों को प्रेरित करते हुए आगे बढ़ने के लिए मार्ग निर्माण करती हैं.
- रोहित कटारिया को शुभकामना सन्देश देने के लिए 9370060128 पर स्नेह व्यक्त करें.