दैनिक जागरण संवादी 2018 लखनऊ में तीन दिवसीय आयोजन था जिसमें साहित्य, कला, रंगमंच, सिनेमा और संस्कृति जैसे तमाम क्षेत्रों से जुड़े लेखक, विचारक चिंतक, साहित्यकार,कलाकार जैसे मुजफ्फर अली, सोनल मानसिंह, विलायक जाफरी,शैलेंद्र सागर, शाजिया इल्मी ,किश्वर देसाई ,यतींद्र मिश्रा ,अली फजल ,आशीष विद्यार्थी आदि ने भाग लिया ।
यह मीडिया जगत की एक महती जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने सामाजिक सरोकार निभाए l इसी दिशा में एक उदाहरण प्रस्तुत करता है जागरण संवादी।
लखनऊ की गुनगुनी धूप में 30 नवंबर से 1 और 2 दिसंबर तक चलने वाले तीन दिवसीय कार्यक्रम में लगभग 27 सत्र हुए. जिसमें संस्कार-संस्कृति से लेकर राजनैतिक मुद्दों जैसे ‘हम लड़ते क्यों हैं, नए राष्ट्रवाद और देशभक्ति का चक्रव्ह्यू पर बहस हुई. वहीं साहित्य के क्षेत्र में नए लेखकों की दम को भी सत्र में परखा गया। दूसरी तरफ समय के साथ संघ की कदम-ताल को जे.नन्दकुमार के साथ मापा गया।
किताबों के बिकने और छपने के बीच के सफर को बारीकी से विश्लेषित करने का प्रयास प्रतिष्ठित कंपनियों से जुड़े युवा प्रकाशक अलिंद माहेश्वरी व प्रणव जौहरी ने अच्छी बिक्री की संभावना, समृद्ध सामग्री और समाज के कोनों में मौजूद लोगों के मुद्दों को चयन का फार्मूला बतायाऔर नये प्रकाशक शैलेश भारतवासीकहा कि ऑडियो या डिजिटल बुक्स के अनुभव के बाद लोग प्रिंट भी खरीदते है यही नहीं ‘साहित्य में रिश्ते’ के सत्र में लब्ध प्रतिष्ठित लेखिका मैत्रेयी पुष्पा ने औरत की आर्थिक आत्मनिर्भरता की तरह आंतरिक रिश्तों पर भी निर्भरता को स्वीकारा गया।
वहीं वेब की दुनिया के ताने-बाने में कैसे आगे बढ़ा जाए इस पर भी कुछ अलग लिखने करने की बात बेव दुनियाँ के बादशाह कहे जाने वाले भरत नागपाल और प्रवाल शर्मा(शर्मा जी टेक्नीकल) ने की। जहां दलित साहित्य की चुनौतियों पर बात रखते वक्ताओं पर अतिशयोक्ति का आरोप लगाते श्रोता और वक्ता सीधे संवाद पर उतर आए. यह सिर्फ लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में ही संभव है। इस्लाम के द्वंद में अयोध्या मुद्दे पर कहीं ग़ुबार निकला तो कहीं समाधान की बात की गई।
संवादी के सत्र सभी इंद्रियों को तृप्त करने वाले थे। यह आयोजन आम दर्शकों के बीच एक पुल बनाने का काम कर गया। लोक संगीत की बात करती मालनी अवस्थी संगीत के गढ टूटने की बात भी करती हैं,वहीं बेगम अख्तर को पुनः जीवित करती विद्या शाह ने अपनी गायकी से पूरी शाम को ही अख़्तरी रंग में रंग डाला।
शोभा डे अपनी बेबाकी और साफ़गोई से मिली जुली हिंदी में लख़नऊ का दिल जीत ले गईं। अवध के स्वाद पंकज भदौरिया के साथ चखे साथ ही अवधी तहजीब, किस्सागोई और शायराना अंदाज ने हर तरह के श्रोताओं को अविस्मरणीय अनुभव दिये ।
देश के अलग अलग हिस्सों से आये दर्शकों के लिए इस आयोजन का एक मुख्य उद्देश्य था सबको एक साथ जोड़ना. जागरण संवादी समाज के लिए जवाबदेही का प्रतीक बना है. जो आज के बढ़ते हुए विद्वेषपूर्ण माहौल में देश के नागरिकों को संवाद स्थापित करके, जोड़ने की सार्थक पहल करता है ।
संवादी के मंच पर जहां एक ओर प्रतिष्ठित दिग्गज विराजमान थे वहीं नए लेखकों और कलाकारों को भी उतना ही सम्मान और स्थान मिला। कला-संस्कृति और साहित्य के पुरोधाओं और नए लोगों के विचारों को मिलाकर जो इंद्रधनुष जागरण संवादी नें ताना है उसकी धनक दूर तलक जाएगी और देश के वैचारिक मतभेद और शून्य को सार्थक संवाद से भर देगी।
- डॉ ऋतु दुबे तिवारी
कवियत्री एवं प्रिंसीपल
निस्कोर्ट मीडिया कॉलेज
ग़ाज़ियाबाद उत्तरप्रदेश