काशी पुराधिपति बाबा विश्वनाथ और मां अन्नपूर्णा की पूजा-अर्चना के लिए भक्तों की लगी लम्बी कतार
वाराणसी (तेज समाचार डेस्क): माघ मास के कृष्ण पक्ष की मौनी अमावस्या पर शुक्रवार को बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में लाखों श्रद्धालुओं ने दुर्लभ संयोग में पवित्र गंगा नदी में मौन रहकर पुण्य की डुबकी लगाई। गंगाघाटों पर दान-पुण्य के बाद काशी पुराधिपति बाबा विश्वनाथ और मां अन्नपूर्णा के दर्शन किए। इस बीच बाबा की पूजा-अर्चना के लिए भक्तों की लम्बी कतार देखी जा रही है।
महास्नान पर्व पर पवित्र गंगा में डुबकी लगाने के लिए सुदूरवर्ती जिलों के श्रद्धालुओं की भीड़ गुरुवार की शाम से ही गंगातट पर पहुंचने लगी। सर्द हवा और गलन के बीच गंगा तट, दशाश्वमेध स्थित पटरियों और चितरंजन पार्क में पूरी रात भजन-कीर्तन कर गुजारने के बाद ब्रह्म मुहुर्त में श्रद्धालुओं ने गंगा में आस्था की डुबकी लगाई। दिन चढ़ने के साथ गंगा स्नान करने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती गई। दुर्लभ संयोग सुबह 9.54 मिनट पर शनिदेव के मकर राशि में प्रवेश करते ही श्रद्धालुओं की भीड़ गंगा स्नान के लिए एकदम से उमड़ पड़ी। स्नान पर्व पर सबसे ज्यादा भीड़ प्राचीन दशाश्वमेध घाट, शीतला घाट, तुलसी घाट, पचगंगा घाट, रीवा घाट, अस्सी, गाय घाट, राजघाट, भैंसासुर घाट, खिड़किया घाट पर रही।
महास्नान पर्व को लेकर जिला प्रशासन ने सुरक्षा की व्यापक व्यवस्था कर रखी है। एनडीआरएफ और जल पुलिस के जवान जहां गंगा में किसी भी तरह की स्थिति से निपटने के लिए मुस्तैद हैं, वहीं दशाश्वमेध से लेकर बाबा विश्वनाथ दरबार तक आला अफसर फोर्स के साथ लगातार भ्रमण करते रहे। उधर, मौनी अमावस्या पर्व पर पश्चिम वाहिनी गंगा में स्नान की परंपरा के तहत जिले के चौबेपुर क्षेत्र के बलुआ और कैथी घाटों पर भी बड़ी संख्या में ग्रामीण अंचल के लोग गंगा स्नान के लिए पहुंचे। शहर एवं ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं ने गंगा स्नान के बाद पीपल वृक्ष की परिक्रमा की, तीर्थ पुरोहितों, भिखारियों को तिल, कंबल, वस्त्र, उड़द आदि अन्न का दान किया। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की गई।
उल्लेखनीय है कि धर्म नगरी काशी में स्नान, दान का अपना अलग ही महात्म्य है। खासकर मौनी अमावस्या पर मौन रह पुण्यकाल में मोक्ष दायिनी गंगा में आस्था की डुबकी लगाने से मान्यता है कि जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है। अमावस्या वैसे तो हर महीने में दो बार पड़ती है, लेकिन माघ मास की अमावस्या का सनातन धर्म में अपना खास महात्म्य है। माघ मास को भी कार्तिक के समान पुण्य मास कहा गया है। गंगा तट पर इस कारण श्रद्धालु खासकर प्रयागराज त्रिवेणी संगम के तट पर एक मास तक कुटी बनाकर मायावी दुनिया से विरक्त होकर रहते हैं और नियमित गंगा स्नान कर भजन-कीर्तन करते हैं। उसके बाद मौनी अमावस्या पर प्रयागराज त्रिवेणी संगम या फिर बाबा की नगरी काशी में दशाश्वमेध घाट पर गंगा स्नान कर अपने संकल्प के पूरा होने पर घर लौटते हैं।