पुणे (तेज समाचार डेस्क). लॉकडाउन के तीसरे और चौथे चरण में मजदूरों को उनके गांव भेजने का सिलसिला जारी है. अभी तक हजारों मजदूरों को उनके गांव पहुंचा दिया गया है. लेकिन इन मजदूरों के सामने गांव में रोजी रोटी का बडा सवाल है. ऐसे में अब जब राज्य सरकार ने अनेक उद्योगों को शुरू करने की इजाजत दे दी है, तो अब इन मजदूरों ने अपने गांव लाने का विचार त्याग कर काम पर लौटना पसंद किया है.
– उद्योगों के लिए दिशा निर्देश जारी
लॉकडाउन के बाद सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों की वजह से फिर से उत्पादन शुरू करने की जद्दोजहद में जुटी औद्योगिक कंपनियां मजदूरों की ज्यादा चिंता कर रही हैं. सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी हो रहा है. इसके अलावा कंपनी में कैंटीन की व्यवस्था भी मुफ्त में की गई है. मार्च महीने का पूरा वेतन दिया गया है इसके अलावा पीएफ का पैसा भी वेतन से नहीं कटने से मजदूरों का आर्थिक फायदा होने लगा है. इसके चलते अब कई ऐसे भी प्रवासी मजदूर हैं जो गांव वापस नहीं जाना चाहते.
– बढ़ा कर मिल रहा वेतन
पुणे-सोलापुर हाइवे पर 70 किलोमीटर दूर के पास दौंड तालुका स्थित कुरकुंभ इंडस्ट्रियल जोन में काम करने वाले सिडको के मजदूर वापस घर नहीं जाना चाहते हैं. इसकी वजह बताते हुए मध्यप्रदेश के रीवा जिले के रहने वाले ज्वाला प्रसाद केवट ने कहा कि, कोरोना की वजह से लोग बहुत डर गए हैं, इधर-उधर भाग रहे हैं. हमने ऐसे जाने की योजना नहीं बनाई. क्योंकि हमें यहां हर चीज की सुविधा दी जा रही है. पगार, पानी सब ठीक से मिल रहा है. यही नहीं हमें हर माह पगार के अलावा तीन हजार रुपये बढ़ाकर मिल रहे हैं यहां हम सुरक्षित हैं, इसलिए भीड़-भाड़ में जाने का तय नहीं किया है.
– बकाया पैसा भी दे रही कंपनियां
बिहार के गया जिले के महेंद्र ठाकुर ने कहा, कि मैं आर्गेनिक कंपनी में काम करता हूं और गत 15 साल से यहां रहता हूं. कोरोना की वजह से हम घर जाना नहीं चाहते हैं. वहां जाएंगे तो फंस जाएंगे कंपनी तो पगार दे रही है ऊपर से तीन हजार रुपये बढ़ा कर दिए हैं. चाकण और पिंपरी चिंचवड़ के औद्योगिक क्षेत्र में कुछ कंपनियों में काम करने वाले मजदूरों से व्यवस्था और पगार के बारे में बात की तो पता चला कि 11000 कंपनियों में से तकरीबन 6000 कंपनियां फिर से शुरू हो गई हैं. उत्पादन का काम भी शुरू हो गया है. मजदूरों के मुताबिक बकाया पैसा भी कंपनियां दे रही हैं. इसके अलावा पहले जो सुविधा नहीं मिलती थी, जैसे दोपहर का खाना, कैंटीन की व्यवस्था का इंतजाम इत्यादि भी अब कंपनियां कर रही हैं.