देहरादून (तेज समाचार प्रतिनिधि) योगी आदित्यनाथ की तरह ही उत्तराखंड में त्रिवेंद्र रावत सरकार को एक महीना पूरा हो चुका है. इस एक महीने में रावत ने योगी की तरह ही कई ताबडतोड़ निर्णय लिए. इनमें से कई फैसले जनता को रास आए, तो कुछ फैसलों से लोगों में नाराजगी भी देखी गई.
रावत सरकार ने भ्रष्टाचार को पहला मुद्दा बताते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग 74 में हुए घोटाले में 8 लोगों को निलंबित किया तो लगा कि जैसे सरकार ने आते ही तेज़ी पकड़ ली है. इसके बाद बिजली विभाग में ट्रांसफर, खरीद घोटाले में मुख्य अभियंता सहित 4 इंजीनियरों को भी सस्पेंड कर अपने इरादे सरकार ने ज़ाहिर किए.
लेकिन कुछ फैसलों ने रावत सरकार की किरकिरी कर दी. सरकार ने मृत्युंजय मिश्रा जैसे अफसर को सिर माथे बिठाना शुरू कर दिया है. ऐसे ही सरकार खनन के खेल में दागी अफसर को प्रमोशन देकर एक महीने में ही बैकफुट पर आती दिखाई दी.
वहीं, इस एक महीने के दौरान खनन और शराब बंदी को लेकर सरकार की काफी फजीहत भी हुई. शराब की दुकानों को बंद कराने के लिए जहां मातृशक्ति सड़कों पर उतर आई वहीं, नैनीताल हाई कोर्ट के खननबंदी के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाकर फैसले पर स्टे लेना भी सरकार को महंगा साबित हुआ. जहां पर्यावरण प्रेमियों और संतों ने सरकार को आड़े-हाथ लिया तो वहीं, विपक्ष को भी सरकार पर उंगली उठाने का मौका मिला.
– त्रिवेंद्र सरकार के बड़े फैसलों पर
- गौ रक्षक कानून.
- राष्ट्रीय राजमार्ग 74 घोटाले की सीबीआई जांच की सिफारिश.
- लोकायुक्त और ट्रांसफर बिल विधान सभा में पेश. प्रवर समिति परीक्षण कर रही है.
- आईटी विभाग के विवादित सचिव दीपक कुमार को कार्यमुक्त किया.
- उत्तराखण्ड आयुर्वेदिक विश्विद्यालय के विवादित कुलसचिव मृत्युंजय मिश्रा को कार्यमुक्त किया.
– इन फैसलों से हुआ विवाद
- वंदे मातरम पर विवाद.
- मृत्युंजय मिश्रा को सचिवालय में ऑफिस देना.
- शराब और खनन पर हंगामा.
- शराब के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राज्य की सड़कों को जिला सड़क घोषित करना.
- खनन पर हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती. सरकार को राहत.
– लगाम अपने हाथ में रखेगी भाजपा
- उत्तराखंड में बीजेपी संगठन सरकार को खुली छूट देने के मूड में नहीं है. सरकार की कमान भले ही त्रिवेंद्र रावत के हाथ में है लेकिन आरएसएस और बीजेपी सरकार पर नियंत्रण रखने की कोशिश में जुट गए हैं. हाल ही में संघ के बड़े नेताओं की मौजूदगी में मुख्यमंत्री के साथ एक बैठक हुई. इस बैठक का मकसद ही सरकार और संगठन के बीच बेहतर तालमेल बैठाना है.
- वास्तव में सरकार बनने के फौरन बाद ऐसी बैठक करने की ज़रूरत क्यों पड़ी इसका कारण भी स्पष्ट है. त्रिवेंद्र रावत के सामने बीजेपी के कई दिग्गजों को खुश रखने की चुनौती है. बीजेपी में रमेश पोखरियाल और भगत सिंह कोश्यारी गुट तो पहले से ही थे. अब विजय बहुगुणा और सतपाल महाराज गुट भी अपनी अपनी बात मनवाना चाहता है. बीजेपी के आला नेता इसे अच्छी तरह समझते हैं कि सबको संतुष्ट करना त्रिवेंद्र के लिए आसान नहीं है और सबको नाराज़ भी नहीं किया जा सकता. देखने वाली बात ये होगी की त्रिवेंद्र रावत आने वाले समय में किस तरह के फैसले लेते हैं.