दूध की गंगा बही, थी कभी हमारे यहां,
अमृत जैसे दूध को ना सड़कों पर बहाइए।
गौमाता संरक्षक, दिखे नहीं अब तक…
‘गौरस’ के ‘गोबर-गणेश’ ना धमकाइए।
भाव के अभाव में, जो कर रहे आप लोग,
हाव-भाव दिखा, भाव-ताव मत खाइए।
डोले सरकार बोले, “भाव भी दे रहे हम”,
दूध की मलाई को दलालों से बचाइए।।
–सुदर्शन चक्रधर
(संपर्क : 96899 26102)