सुदर्शन चक्रधर महाराष्ट्र के मराठी दैनिक देशोंनती व हिंदी दैनिक राष्ट्र प्रकाश के यूनिट हेड, कार्यकारी सम्पादक और प्रसिद्ध व्यंग्य कवि हैं. हाल ही में उन्हें जीवन साधना गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया. अपने बेबाक लेखन से सत्ता व विपक्ष के गलियारों में हलचल मचा देने वाले सुदर्शन चक्रधर अपनी सटीक बात के लिए पहचाने जाते हैं. तेजसमाचार . कॉम के पाठकों के लिए ख़ास
हम मानते हैं कि देश में इन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की लोकप्रियता काफी कम हुई है. हम यह भी मानते हैं कि न आतंकी काबू में हैं, न नक्सली! न महंगाई काबू में है, न बेरोजगारी! न पाकिस्तान काबू में है, न चीन! न कश्मीर काबू में है, ना पूर्वोत्तर राज्य! न किसान-आत्महत्या काबू में है, न अर्थव्यवस्था! न रुपया काबू में हैं, न डॉलर! न गोरक्षक काबू में है, न भक्त! न भाजपाई काबू में हैं, न कांग्रेसी! सब के सब बेलगाम हो गए हैं. वह भी उस ‘मोदीशाही’ में, जिसे देश के आधे लोग ‘तानाशाही, हुकुमशाही’ आदि की संज्ञा से विभूषित करते हैं. अगर इस देश में चार वर्ष से कुछ भी नियंत्रण में नहीं है, तो फिर तानाशाही कैसी? कहां है?
यह सच है कि हमारे राजनेताओं की जुबान हमेशा बेलगाम रहती है. भाजपा वाले तो पहले से भड़काऊ बयान देने के मामले में बदनाम हैं ही, अब सत्ता से वंचित, बौखलाए कांग्रेसी भी अनाप-शनाप बोलने से बाज नहीं आ रहे हैं. कुछ बड़बोले कांग्रेसी तो इन दिनों इतना जहर उगल रहे हैं, मानो उनके भीतर ‘हैदराबादी ओवैसी’ की आत्मा घुस गई हो! इन कांग्रेसियों ने जरा ओवैसी की ‘दुकानदारी और पेट-पानी’ का तो ख्याल रखना चाहिए! इसी ओवैसी की जुबान में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कह डाला कि ‘जितने भी हिंदू आतंकवादी पकड़े गए, वह सब आरएसएस से जुड़े थे.’ इसमें ‘हिंदू आतंकवादी’ शब्द पर बहुतों को ऐतराज है, क्योंकि आतंकवादी का कोई धर्म/मजहब नहीं होता! अगर होता हो, तो कश्मीर में पकड़े जाने वाले सभी आतंकियों को ‘मुस्लिम आतंकवादी’ कहा जाएगा क्या? यह परंपरा ठीक नहीं है. देश को जोड़ने वाली नहीं है.
इन्हीं दिग्गी राजा से जब पत्रकारों ने पूछा कि आपने अपने बयान में ‘हिंदू आतंकवादी’ क्यों कहा? तो उन्होंने फिर विवादास्पद बयान ऑन-कैमरा देते हुए कहा कि ‘हिंदू शब्द है ही नहीं, कहां की बात करते हैं आप…? यहां दिग्विजय से पूछना चाहिए कि ‘अगर आप हिंदू नहीं हैं, तो कौन हैं?’ इन्हीं की तरह कांग्रेसी-उपज तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने भी कहा कि ‘हमारी पार्टी बीजेपी की तरह आतंकी संगठन नहीं है.’ यह बयान भी हद पार करने लायक है. हे बंगाली बाला, अगर बीजेपी आतंकी संगठन है, तो चुनाव आयोग ने उसे अब तक बैन कर देना चाहिए था! देश की जनता ने केंद्र और 20 राज्यों में उसकी सरकारें नहीं बनानी चाहिए थी!
बहरहाल, कश्मीर में अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए भाजपा ने पीडीपी से समर्थन वापस लेकर महबूबा सरकार गिरा दी, तो वहां राज्यपाल शासन लग गया. अब वहां आतंकियों की खैर नहीं है. जहां देखो, वहां मुठभेड़ हो रही है. आतंकियों की शामत आ गयी है. इससे आतंक-प्रेमी कांग्रेस तिलमिला गयी है. तभी तो उसके वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि ‘सरकार चार आतंकियों को मारती है, तो 20 नागरिक भी मारे जाते हैं. सरकार की कार्रवाई आतंकियों से ज्यादा सिविलियंस के खिलाफ रहती है. कश्मीर में बेकसूरों का नरसंहार रुकना चाहिए. ऐसा बयान देकर गुलाम नबी क्या यह कहना चाहते हैं कि कश्मीर में आतंकियों की धर-पकड़ और उनका समूल नाश करना बंद कर देना चाहिए? क्या हमारी सेना ने बंदूक छोड़कर चूड़ियां पहन लेनी चाहिए? क्या उनका बयान हमारे जांबाज सैनिकों का मनोबल तोड़ने जैसा नहीं है? ….है, तभी तो गुलाम नबी के बयान का आतंकी संगठन ‘लश्कर-तोएबा’ ने तुरंत ही समर्थन कर दिया. अर्थ यह कि गुलाम नबी लश्कर के ‘मन की बात’ बोल रहे हैं. धिक्कार है उनकी सोच पर.
अब रही-सही कसर कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सैफुद्दीन सोज ने पूरी कर दी. उन्होंने कहा कि ‘मुशर्रफ कहते थे कि कश्मीरियों की पहली पसंद तो आजादी है, उनका बयान तब भी सही था, आज भी सही है.’ सोज ने यह भी कह दिया कि सरदार पटेल तो कश्मीर को पाकिस्तान को सौंपना चाहते थे, मगर नेहरू ने रोक दिया! अगर सोज की सोच ‘शौच’नीय और मुशर्रफ समर्थक है, तो कांग्रेस ने इस गद्दार नेता के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की? सिर्फ मुस्लिम वोट बैंक को अपनी पार्टी से जोड़े रखने के लिए दिए गए उक्त कांग्रेसियों के तमाम बयान निंदनीय हैं. जबकि देश का सच्चा मुसलमान, भारत की एकता और अखंडता चाहता है. कांग्रेसियों ने कम से कम अब तो देश-हित की वाणी बोलना चाहिए. क्योंकि–
“मेरे मुल्क का मजहब तो दो हथेलियां बताती हैं।
जुड़े तो पूजा और खुले तो दुआ कहलाती है।।