मुंबई. कई लोग अपनी मंजिल तो तय कर लेते है, और उस मंजिल की ओर बढ़ते भी है, लेकिन कई बार जीवन में कुछ ऐसा हो जाता है, या कुछ ऐसी प्रेरणा मिल जाती है कि हम जाते तो उसी मंजिल की ओर ही है, लेकिन पहुंच जाते है दूसरी मंजिल की ओर. आपने फिल्मी सितारों के बारे में सुना होगा. अक्सर फिल्मी दुनिया में सभी लोग एक्टर बनने आते है, लेकिन कुछ लोग डायरेक्टर बन जाते है, कुछ रायटर बन जाते है, तो कुछ एडिटर. इसी तरह खिलाड़ियों के जीवन में भी ऐसी ही घटनाएं होती है. कुछ यहां बेट्समेन बनने आए थे, लेकिन बन गए बॉलर, कुछ बॉलर बनने आए, लेकिन बन गए बेट्समेन, कुछ तेज गेंदबाज बनना चाहते थे, बन गए स्पिनर. यहां हम कुछ ऐसे ही खिलाड़ियों से आपको मिलवा रहे है.
– महेन्द्रसिंह धोनी उर्फ माही
सबसे पहले बात करते है दुनिया के सफलतम विकेट कीपर, दुनिया के बेस्ट फिनिशरों में से एक, दुनिया के सबसे सफलतम कप्तानों में से एक यानी टीम इंडिया के पूर्व कप्तान माही की, यानी महेन्द्रसिंह धोनी की.
एमएस धोनी बनना चाहते थे बैट्समैन लेकिन बन गए विकेट कीपर. धोनी अपने स्कूल टाइम में फुटबॉल खेलते थे. जिसमें वे गोलकीपर बना करते थे. जब उन्होंने क्रिकेट खेलना शुरू किया था तब उनकी इच्छा बैट्समैन बनने की थी. लेकिन उनकी गोलकीपिंग को देख कोच ने उनसे विकेटकीपिंग करने के लिए कहा. आज धोनी दुनिया के सबसे सफल विकेटकीपर्स में से एक हैं. वनडे हिस्ट्री में वे स्टम्पिंग की सेन्चुरी लगाने वाले दुनिया के पहले विकेटकीपर हैं. हालांकि धोनी के बारे में उन पर बनी बायोपिक से दुनिया ने उनके बारे में काफी कुछ जान लिया है, इसलिए उनके बारे में फिर वहीं बाते लिखना उचित नहीं होगा.
– सचिन तेंडुलकर
क्रिकेट की दुनिया के भगवान के नाम से जाने जानेवाले भारतीय टीम के पूर्व कप्तान यानी सचिन तेंडुलकर वैसे तो बनना चाहते थे फास्ट बॉलर, लेकिन उनकी किस्मत में दुनिया का सबसे सफलतम बैट्समैन बनना लिखा था. और किस्मत का फैसला सदैव सही ही होता है. सचिन तेंडुलकर भी करियर के शुरुआती दौर में फास्ट बॉलर बनना चाहते थे. इसके लिए वे साल 1987 में अपने बड़े भाई के साथ चेन्नई स्थित MRF पेस फाउंडेशन भी गए थे. उस वक्त MRF पेस फाउंडेशन के प्रमुख रहे डेनिस लिली ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया था. लिली ने सचिन को बैटिंग पर ही फोकस करने की सलाह दी. लिली की सलाह काम आयी और सचिन दुनिया के लिए प्रेरणा बन गए, भगवान बन गए.
– आर. अश्विन
टीम इंडिया के स्टार ऑलराउंडर आर. अश्विन ने हाल ही में यानी 17 सितंबर को अपना 32वां बर्थडे सेलिब्रेट किया. 17 सितंबर 1986 को चेन्नई में जन्मे अश्विन को बचपन से ही क्रिकेट खेलने का शौक रहा. अश्विन बचपन में अपने पिता की तरह फास्ट बॉलर बनना चाहते थे, लेकिन उनकी मां की एक सलाह के बाद उन्होंने फास्ट बॉलिंग को छोड़ स्पिनर बनने का फैसला ले लिया. अश्विन ने बचपन से ही क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था. एक इंटरव्यू के दौरान अश्विन के पिता ने बताया था कि अश्विन आज जो कुछ भी हैं, अपनी मां की वजह से हैं.’ उनके पिता के मुताबिक, ‘उनकी मां ने ही उन्हें क्रिकेट कोचिंग पर भेजना शुरू किया था. मैं तो केवल अश्विन को ट्रेनिंग दिलाने और मैच खिलाने के लिए ही ले जाता था.’ अश्विन के पिता ने बताया कि शुरुआती दौर में अश्विन पेस बॉलर हुआ करते थे और उनका रनअप काफी लंबा था. जिसके बाद उनकी मां ने उन्हें स्पिनर बनने के लिए कहा. ‘एक दिन अश्विन की मां ने उनसे कहा, लंबा रनअप अच्छा नहीं है और इसमें काफी एनर्जी बर्बाद होती है. इसके बाद चित्रा ने अश्विन से फास्ट बॉलिंग की बजाए स्पिन बॉलिंग करने के लिए कहा. बस तभी से अश्विन ने स्पिन पर ध्यान देना शुरू कर दिया.’ शुरुआती दौर में अश्विन की बैटिंग अच्छी नहीं थी, जिसके बाद एकबार उनकी मां ने परेशान होकर उनसे कहा था, कि उन्हें अपनी बैटिंग क्वालिटी को भी इग्नोर नहीं करना चाहिए. उनके पिता अश्विन की सारी सक्सेस का क्रेडिट उनकी मां को ही देते हैं.
अश्विन अपने टेस्ट करियर में अब तक 52 मैच खेलकर 292 विकेट ले चुके हैं, इसके अलावा 2035 रन भी बना चुके हैं. टेस्ट करियर में वे 4 सेन्चुरी भी लगा चुके हैं. वनडे करियर में उन्होंने 111 मैच खेले हैं, जिनमें 150 विकेट लेने के अलावा वे 675 रन भी बना चुके हैं. अश्विन ने अपना टेस्ट डेब्यू नवंबर 2011 में वेस्ट इंडीज के खिलाफ किया था. जिसमें 9 विकेट लेकर वे नरेंद्र हिरवानी के बाद डेब्यू मैच में सबसे सफल दूसरे इंडियन बॉलर बन गए थे.
– स्टीवन स्मिथ
आस्ट्रेलिया टीम के धुरंदर बल्लेबाज वैसे तो बनना चाहते थे स्पिनर लेकिन बन गए बैट्समैन. ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम के कप्तान और स्टार बैट्समैन स्टीवन स्मिथ ने अपने करियर की शुरुआत बतौर स्पिनर की थी और पहले मैच में वे 8th नंबर पर बैटिंग करने उतरे थे. पांच साल बाद उनकी गिनती ना केवल दुनिया के प्रमुख बैट्समैन में होने लगी बल्कि नंबर वन टेस्ट बैट्समैन भी बन गए.
– शाहिद आफरीदी
पाकिस्तान के ऑलराउंडर खिलाड़ी शाहिद अफरीदी बनने आए थे बॉलर लेकिन बन गए बैट्समैन. पाकिस्तानी ऑलराउंडर शाहिद आफरीदी ने अक्टूबर 1996 में 16 साल की उम्र में अपने वनडे करियर की शुरुआत एक लेग स्पिनर के रूप में की थी. आफरीदी को चोटिल मुश्ताक अहमद की जगह टीम में लिया गया था. लेकिन इसके बाद वे ना केवल सफल बॉलर बने बल्कि उससे कहीं ज्यादा उनकी गिनती दुनिया के सबसे सफल बैट्समैन में होने लगी.
– शोएब मलिक
पाकिस्तान के ही एक दूसरे प्लेहर शोएब मलिक वैसे तो बनना चाहते थे, बॉलर
लेकिन बन गए बैट्समैन. शोएब मलिक ने भी अपना डेब्यू बतौर बॉलर किया था. लेकिन गुजरते वक्त के साथ वे टीम के सबसे भरोसेमंद बैट्समैन बन गए. उन्होंने अपना डेब्यू वनडे मैच अक्टूबर 1999 में वेस्ट इंडीज के खिलाफ स्पिनर के तौर पर किया था. उस मैच में उनकी बैटिंग पोजिशन 9वीं थीं.
– सनथ जयसूर्या
श्रीलंका के पूर्व ऑलराउंडर सनथ जयसुर्या मूल रूप से बैट्समैन है. लेकिन अपनी उत्कृष्ठ बॉलिंग की बदौलत वे दुनिया के सबसे अच्छे ऑलराउंडरों में शुमार हो गए. जयसूर्या ने अपने करियर की शुरुआत बतौर बैट्समैन की थी, जो बाद में जबरदस्त बॉलर भी साबित हुए. आज उनकी गिनती दुनिया के सबसे सफल ऑलराउंडर्स में होती है. सनथ जयसूर्या वनडे क्रिकेट में 12 हजार से ज्यादा रन और 300 से ज्यादा विकेट लेने वाले दुनिया के इकलौते क्रिकेटर है.
– रविंद्र जडेजा
टीम इंडिया के ऑलराउंडर खिलाड़ी रविंद्र जडेजा वैसे तो एक अच्छे बैट्समैन है, लेकिन वे टीम इंडिया में बतौर स्पिनर शामिल किए गए है. रविंद्र जडेजा ने जब अपने करियर की शुरुआत की थी तब वे काफी अच्छे बैट्समैन थे. वे फर्स्ट क्लास क्रिकेट में तीन ट्रिपल सेन्चुरी लगाने वाले भारत के इकलौते क्रिकेटर हैं. पार्ट टाइम बॉलर के रूप में शुरुआत करने के बाद आज जडेजा की गिनती भारत के टॉप स्पिनर्स में होती है.