(तेज़ समाचार इंटरनेशनल डेस्क):पिछले कुछ दिनो से साइबर अटैक के खतरे ने पूरी दुनिया मे हड़कंप मच रखा है।दुनिया के 150 देशों में 3 लाख से भी ज्यादा कंप्यूटर्स को प्रभावित करने वाले रैंसमवेयर वानाक्राइ वायरस के साइबर हमले के पीछे उत्तर कोरिया का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है। दक्षिण कोरिया में साइबर सुरक्षा से जुड़े शोधकर्ताओं को इसके तकनीकी सबूत मिले हैं। उनका कहना है कि आगे इस तरह के और हमले हो सकते हैं।
गूगल में काम करने वाले भारतीय मूल के कर्मचारी नील मेहता ने साक्ष्य पेश कर दावा किया कि रैंसमवेयर साइबर हमला उत्तर कोरियाई हैकरों ने किया है। रूस की एक साइबर सुरक्षा कंपनी ने इसे अब तक का सबसे अहम सुराग बताया है।
पुराने ऑपरेटिंग सिस्टम बन रहे निशाना
गत शुक्रवार से बैंकों, अस्पतालों और सरकारी एजेंसियों के कंप्यूटर पर यह हमला शुरू हुआ था। विशेषज्ञों का कहना है कि हैकर उन कंप्यूटरों को खासतौर से निशाना बना रहे हैं, जिनमें माइक्रोसॉफ्ट के ऑपरेटिंग सिस्टम के पुराने वर्जन का इस्तेमाल हो रहा है। इसमें वर्चुअल करंसी ‘बिटकॉइन’ के रूप में फिरौती मांगी जा रही है।
हैकर्स को साइबर हमलों से 70 हजार डॉलर ही मिले
वॉशिंगटन। व्हाइट हाउस का कहना है कि रैंसमवेयर के साइबर हमलों से हैकर्स को 70 हजार डॉलर से भी कम की धनराशि मिली है। हालांकि इस वायरस ने दुनियाभर के 150 देशों को प्रभावित किया है। व्हाइट हाउस गृह सुरक्षा मामलों के सलाहकार टॉम बोसर्ट ने कहा कि इससे करीब 3 लाख मशीनें प्रभावित हुईं, लेकिन अब इसका संक्रमण धीमा हो गया है।
हमलों का चीन, अमेरिका पर ज्यादा असर नहीं
व्हाइट हाउस ने कहा कि वैश्विक स्तर पर हुए साइबर हमले का असर अमेरिका पर ज्यादा नहीं पड़ा है। प्रशासन इस स्थिति पर करीबी नजर बनाए हुए है और अमेरिकी सरकार इस मुद्दे से उबरने के लिए हर क्षमता को एकजुट कर रही है। इसके लिए निजी क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। चीनी अधिकारियों ने कहा कि साइबर हमले से उनके 66 विश्वविद्यालय प्रभावित हुए, लेकिन उच्चशिक्षा कंप्यूटर प्रणाली में व्यापक नुकसान नहीं हुआ है। चीन के शिक्षा मंत्रालय के तहत संचालित शिक्षा एवं शोध नेटवर्क ने कहा कि ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम को अपडेट नहीं करने के कारण हुआ है।
दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल स्थित इंटरनेट सिक्युरिटी फर्म ‘हॉरी’ के निदेशक सिमोन चोई ने बताया कि हालिया साइबर हमलों में जो कोड इस्तेमाल किया गया है, उसमें उत्तर कोरिया के शामिल होने की आशंका है। उन्होंने कहा कि ये कोड और पिछले जिन हमलों में उत्तर कोरिया को दोषी बताया गया है, दोनों में काफी समानताएं देखी गई हैं।
उत्तर कोरिया का हैकिंग ऑपरेशन है ‘लैजरस’
साइबर सुरक्षा से जुड़ी सिमेंटेक और कैस्परस्काई लैब ने सोमवार को बताया कि वानाक्राइ सॉफ्टवेयर के एक पूर्व वर्जन में जो कोडिंग इस्तेमाल की गई थी, उसके कुछ कोड्स को लैजरस ग्रुप ने अपने प्रोग्राम में भी इस्तेमाल किया था। साइबर विशेषज्ञों का मानना है कि लैजरस असल में उत्तर कोरिया का हैकिंग ऑपरेशन है। कैस्परस्काई के एक शोधकर्ता ने कहा कि वानाक्राइ कहां से आया और किसने इसे बनाया, इससे जुड़ा यह सबसे अहम सबूत है। सिमेंटेक और केस्परस्काई लैब ने कहा है कि उन्हें वानाक्राइ की कोडिंग को पढ़ने के लिए अभी और समय चाहिए। इस बीच, वॉशिंगटन में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के होमलैंड सुरक्षा सलाहकार ने कहा कि इस वानाक्राइ हमले के पीछे विदेशी ताकतों से लेकर साइबर अपराधियों तक का हाथ हो सकता है।