जामनेर (नरेंद्र इंगले). बावड़ी मे नहाने के कारण 10 जून को मातंग समाज के 2 नाबालिग बच्चों को गांव के धनी दबंगों द्वारा निर्वस्त्र कर पीटने का मामला जब से प्रकाश मे आया है, तब से पूरे देशभर में फिर से असहिष्णूता का मुद्दा एक बार फिर जोर पकड़ने लगा है. राजनीतिक दबाव के विपरीत मीडिया द्वारा की गई सटिक रिपोर्टिंग के बाद पुलिस ने बावड़ियों का किया पंचनामा अब भी विवाद का मुद्दा बना है.
इसी बीच पीड़ित बच्चों के माता-पिता को दबंगों से अपने बेटे और परिवारजनों की सुरक्षा का खतरा सता रहा है. पीड़ित परिवारों से मिलने वाले नेताओं की सूचि में आज सुबे के सामाजिक न्याय मंत्री दिलीप कांबले का नाम दर्ज किया गया. गांव में बौद्ध समाज के बगलवाली बस्ती में मातंग समाज के कुछेक 15 परिवार है. अनूसूचित जाति में आनेवाले इन दोनों समुदायों के सभी परिवार दूसरों के खेतों में मजदूरी के साथ भेड़-बकरियां पालकर अपना जीवनयापन करते हैं. साक्षरता ना के बराबर है.
– सरकारी योजनाओं से वंचित
बीते 20 सालों से किसी भी परिवार को सरकारी घरकुल योजना का लाभ नहीं मिला है. कई लोगों के पास आज तक राशन कार्ड तक नहीं है. गांव के सैकड़ों एकड़ जमीन के मालिक में से एक बलवंत जोशी (जो घुमंतू जनजाति से आते है) इन की खेतीहर जमीनों को यही मजदूर अपना पसीना बहाकर सिंचते है. क्षेत्र में जोशी बंधुओं के गिनेचुने परिवार बीते कई सालों से निवासी है. कहने को किसानी करने वाले इन लोगों का मुख्य व्यवसाय हायप्रोफ़ाईल ‘ज्योतिषी’ का बताया जा रहा है. जिसने इन्हें अपार शोहरत और दौलत दिलायी. इसी रसुख के चलते घमंड की मानसिकता ने खेत मालिक ईश्वर जोशी को नाबालिग बच्चों की निर्वस्त्र पिटायी कर अपनी इस दिलेरी का वीडियो प्रसारित करने की हरकत को अंजाम देने के लिए प्रेरित किया होगा. सीधे तौर पर जोशी परिवार कभी किसी राजनीतिक दल का हिस्सा नहीं बना हो, लेकिन वह संदिग्ध रूप से नेताओं के डोनर के रूप में पहचाने जाते रहे हैं. और शायद यही वह कुछ लोग थे, जो जोशी के छद्म समर्थन मे उतरकर गांव की कथित बदनामी को मुद्दा बनाकर घटनास्थल पर मामले को कवर करते न्यूज चैनल्स, मीडिया को कोसते हुए प्रभावित करने में अग्रणी थे. पर असफल रहे. सोशल मीडिया पर वायरल बच्चों की पिटायी के उस वीडियो ने कथित सामंतवाद और राजनीति के अनूठे सौंदर्य को दुनिया के सामने नंगा कर दिया है.
– जोशी बंधुओं की दबंगई
बीते दशक मे जोशी बंधुओ के दबंगई के कई किस्से जो रसूख के चलते दबा दिए गए थे, उनकी दास्तां सुनायी पडने लगी है. समिक्षकों के मुताबिक केवल मातंग नाबालिगों की पिटायी से यह मामला सीधे सीधे जातिगत द्वेश की नजर से देखना जहां उचित होगा, वहीं उसका दूसरा पहलू बिल्कुल साफ़ है कि ऐसी दबंगयी को जन्म देने की मानसिकता के पीछे छिपा है दौलत का वह घमंड जिसे कहीं न कहीं नेताओं का संरक्षण प्राप्त है. आखिर वह तबका जो दो वक्त की रोजीरोटी की जुगाड़ में खप रहा है, वह कब तक इस पीड़ा में पिसता रहेगा. यह सवाल बुद्धिजीवियों को इस घटना के बाद लगातार सता रहा है.