पिंपरी (तेज समाचार डेस्क). 90 प्रतिशत अपंग होने के बाद भी अपने इस अपंगत्व पर मात करते हुए दापोडी के 21 वर्षीय युवक साहिल सैयद ने ऐथलेटिक, पॉवरलिफ्टिंग और क्रिकेट में अपना कमाल दिखाया है. इन तीनों ही खेलों में साहिल ने गोल्ड मेडल, सिल्वर मेडल, मैन ऑफ द मैच का सम्मान प्राप्त किया. फिलहाल वह महाराष्ट्र क्रिकेट संघ की ओर से खेल रहा है. सिर्फ जुनून और विलक्षण इच्छाशक्ति के बल पर साहिल ने अपना मार्ग प्रशस्त किया है. साहिल की सरकार से गुजारिश है कि सर्वसामान्य क्रिकेट की तरह ही अपंगों के क्रिकेट को भी मान्यता दी जाए, अपंग खिलाड़ियों को भी स्थायी रूप से सरकार नौकरी मिलनी चाहिए.
– फौजी पिता ने हर संभव इलाज कराया, मां ने भी कभी नहीं मानी हार
साहिल जन्मत: की अपंग है. बचपन में डॉक्टरों ने साहिल को लेकर उम्मीद छोड़ दी थी. उन्हें साहिल के जिन्दा रहने को लेकर गहरी चिंता थी. लेकिन भारतीय सेना में तैनात साहिल के पिता सलीम दादाभाई सैयद ने हार न मानते हुए साहिल का हर संभव इलाज करवाया. साहिल के पिता सेना में आक्रमक 11 मराठा बटालियन में थे. उन्होंने 20 वर्ष तक भारत माता की सेवा की. सलीम सैयद के अथक प्रयासों से साहिल पूरी तरह से ठीक हो गया था. सलीम सैयद के इन प्रयासों में उनकी पत्नी यानी साहिल की मां शबनम ने उनका पूरा साथ दिया. साहिल के पिता जब सेना में थे, तब साहिल को संभालने की पूरी उसकी मां पर थी. शबनम ने भी पूरी शिद्दत के साथ साहिल की हर इच्छा-आकाक्षाओं को पूर्ण करने का प्रयास किया. साहिल के दिन की शुरुआत ही मां की मदद से होती थी. साहिल को स्कूल लाना-ले जाना, उसे खेलने के लिए ले जाना, अस्पताल आदि सभी जिम्मेदारियां शबनम ने पूरी जिम्मेदारी के साथ निभाई.
– पूत के पांव पालने में
‘पूत के पांव पालने में ही दिख जाते है.’, साहिल सर्वसामान्य बच्चों की तरह नहीं था, लेकिन अन्य बच्चों की तरह ही उसकी पसंद-नापसंद, महत्वाकांक्षाएं थी. बचपन सेही उसे खेलने का शौक था. विशेषत: क्रिकेट उसे पसंद था. लेकिन साहिल के पिता को लगता था कि उनका बेटा क्रिकेट कैसे खेल सकता है? लेकिन साहिल अपने मित्रों के साथ क्रिकेट खेलने लगा. साहिल की ललक देख कर साहिल के पिता ने उसे क्रिकेट का सारा सामान ला कर दिया. 10 वर्ष की उम्र में ही साहिल अच्छा क्रिकेट खेलने लगा. साहिल की क्रिकेट देख कर उसे जिला स्तर पर खेलने का मौका मिला. इसके बाद महाराष्ट्र क्रिकेट संघ में साहिल का चयन हुआ. यहां भी उसने बेहतर खेल का प्रदर्शन किया.इस वर्ष के जनवरी माह में मेरठ में इंडियन व्हीलचेयर क्रिकेट लीग का आयोजन किया गया था. इस प्रतियोगिता में महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश ये तीन टीमें शामिल हुई थी. महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश के बीच हुए मुकाबले में साहिल को ‘मैन ऑफ द मैच’ चुना गया. 3 दिसंबर 2018 को व्हीलचेयर क्रिकेट एसोसिएशन महाराष्ट्र की ओर से विश्व अपंग दिन के निमित्त महाराष्ट्र और गुजरात की टीमों के बीच ट्वेंटी ट्वेंटी (20-20) का आयोजन किया गया है. इस प्रतियोगिता के लिए महाराष्ट्र की टीम में साहिल का चयन किया गया है. आगामी जनवरी-2019 में होनेवाले इंडियन व्हीलचेयर क्रिकेट लीग के लिए खिलाड़ियों की बोली लगनेवाली है. साहिल को पूरी उम्मीद है कि इसमें निश्चित ही उसका चयन किया जाएगा.
– ऐथलेटिक-पॉवर लिफ्टिंग का भी है शौक
साहिल को क्रिकेट के अलावा ऐथलेटिक (गोला फेक), पॉवरलिफ्टिंग का भी शौक है. इन खेलों में भी साहिल ने निपुणता हासिल की है. ऐथलेटिक में उसे स्वर्ण पदक और पॉवरलिफ्टिंग में सिल्वर मेडल हासिल किया. बांग्लादेश क्रिकेट दौरे के लिए साहिल को टीम में चुना गया था, लेकिन व्यक्तिगत कारणों से वह इस दौरे पर नहीं जा सका था. लेकिन अपने जुनून के दम पर साहिल लगातार अपनी मंजिल की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है.
– छावा मराठा संगठन के राम जाधव का महत्वपूर्ण सहयोग
साहिल पूरी आत्मविश्वास के साथ बताता है कि अपने अपंगत्व की ओर वह कभी भी नहीं देखता. अपंगत्व न होता तो शायद मैं कभी कुछ नहीं कर सकता था, लेकिन आज इसी अपंगत्व के कारण मुझमें कुछ करने का जज्बा उमड़ा, और मैं यहां तक पहुंचा हूं. मेरे यहां तक के इस सफर में मेरे माता-पिता की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही. यदि उनका सहयोग और प्रोत्साहन नहीं मिलता, तो आज मैं यहां तक नहीं पहुंच सकता था. मेरी मां मेरे लिए भगवान से भी बढ़ कर है. मुझे विभिन्न स्पर्धाओं के निमित्त बाहर गांव जाना पड़ता है. इस समय छावा मराठा संगठन के जिलाध्यक्ष राम जाधव मेरे साथ होते है. इसके अलावा रोजमर्रा के जीवन में भी यदि कोई समस्या आती है, तब भी राम जाधव हमारी मदद के लिए दौड़े चले आते है. प्रहार अपंग आंदोलन संगठन की सातारा अध्यक्ष सुरेखा सूर्यवंशी का भी महत्वपूर्ण मार्गदर्शन मुझे मिलता है.