• ABOUT US
  • DISCLAIMER
  • PRIVACY POLICY
  • TERMS & CONDITION
  • CONTACT US
  • ADVERTISE WITH US
  • तेज़ समाचार मराठी
Tezsamachar
  • Home
  • देश
  • दुनिया
  • प्रदेश
  • खेल
  • मनोरंजन
  • लाईफस्टाईल
  • विविधा
No Result
View All Result
  • Home
  • देश
  • दुनिया
  • प्रदेश
  • खेल
  • मनोरंजन
  • लाईफस्टाईल
  • विविधा
No Result
View All Result
Tezsamachar
No Result
View All Result

सोइ जानइ जेहि देहु जनाई

बाबा नीबकरौरी जी महाराज की जयंती पर विशेष

Tez Samachar by Tez Samachar
November 30, 2021
in Featured, विविधा
0
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई

बाबा नीबकरौरी जी महाराज
जन्म -30 नवंबर, 1900
निर्वाण -11 सितंबर 1973

 

 

 

 

 

यूं तो भारत में अनेक सिद्ध संत-महात्मा हुए हैं किंतु बाबा नीबकरौरी स्वयं में सर्वथा अनूठे और निराले थे। राजा हो चाहे रंक, उनके अंत:करण में सबके लिये समान स्थान था। वह ऐसे संत थे जिन्होंने व्यक्ति को स्वावलंबी बनाने के साथ ही उसका स्वाभिमान भी जागृत किया।


लाला रामकिशन (हल्द्वानी) की माली हालत खराब थी। बड़े भाई की दुकान पर कर्मचारी की हैसियत से काम करते। एक बार कैंची धाम गए। बाबा ने रामकिशन से कहा-मैं तुझसे जो मागंूगा, लाएगा? जवाब दिया कि हिम्मत हुई तो जरूर लाऊंगा। तब बाबा ने कहा, देख सवा मन देसी घी के लड्डू अपने हाथ से बनाकर लाना हनुमान जी के लिए। रामकिशन मन ही मन बोल उठे-अरे ये क्या कह दिया आपने, मेरे पास तो सवा किलो आटा भी अपना नहीं। फिर भी उनके मुंह से निकल गया-अच्छा महाराजजी और वापस हल्द्वानी आ गए। दो तीन हफ्तों में उन्होंने सवा मन लड्डू अपने हाथ से तैयार किए और उन्हे लेकर बाबाजी के पास गए। बाबाजी ने लड्डू का भोग लगवाकर रामकिशन से ही सबको प्रसाद पवाया। कुछ दिनों बाद वह एक बार फिर कैंचीधाम गए। वहां भंडारा चल रहा था। सेवा की इच्छा व्यक्त की तो बाबाजी बोले, यहां नहीं तू दुकान खोल। रामकिशन बोले- बाबा मैं तो पागल हूं, दुकान कैसे करूंगा। बाबा बोले-देख, एक तू पागल और एक मैं पागल। जा अपना काम शुरू कर। अब उनके पास एक बड़ी दुकान है। एक दिन था कि वह खुद कर्मचारी थे और अब उस हैसियत के दस कर्मचारी उनकी दुकान पर काम करते हैं। ऐसा था बाबाजी का भक्तों को आत्मनिर्भर बनाने का तरीका।


बाबा नीबकरौरी कहते थे कि हृदय सम्मान का आश्रय स्थल है। जब तक किसी के लिए आपके हृदय में सम्मान नहीं है तब तक उसके प्रति प्रेम, प्रेम नहीं एक छल है। फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर गांव में जन्में बाबा नीबकरौरी का वास्तविक नाम था लक्ष्मी नारायण शर्मा। महज दस वर्ष की वय में उनका मन मोहमाया से उचट गया और घर त्याग कर निकल पड़े। गुजरात में मोरवी के करीब बाबनिया जा पहुंचे। यहां अपना आध्यात्मिक विकास पूरा किया। हनुमानजी का छोटा सा मंदिर बनाया। तब लोग उन्हें तलैया बाबा के नाम से पुकारते थे। यहां भी मन उचटा तो महिला संत रमाबाई को मंदिर सौंपकर फर्रुखाबाद आ गए। यहां उनका नीबकरौरी गांव में डेरा पड़ा। तब तक उनके ईश्वरीय चमत्कारों की गूंज यहां तक आ पहुंची थी। गांव में उन्हें श्री श्री 1008 परमहंस बाबा लक्ष्मण दास की पदवी दी गई। यहां भी उन्होंने हनुमान जी का मंदिर बनाया। सन्् 1935 में उन्होंने गांव छोडऩे का निश्चय किया और नैनीताल की ओर प्रस्थान किया और हनुमानगढ़ में हनुमान जी की विधिवत प्राण प्रतिष्ठा की। शिव और दुर्गा का उपासक पर्वतीय समाज अब हनुमान जी की भक्ति में रमने लगा।

बाबा अत्यंत सामान्य वेशभूषा में रहते थे, किंतु मुखमंडल अति तेजमय था। बारीक चिंतन साधु की तरह रहन-सहन किंतु राजाओं सरीखा आभामंडल। उन्होंने कभी भाषण या प्रवचन नहीं दिया। आग्रह करने पर यह कहकर टाल देते कि हम पढ़े-लिखे नहीं हैं। लेकिन, देश ही नहीं विदेश के भी अनेक विद्वानों द्वारा बाबाजी के आध्यात्मिक चिंतन और चमत्कारों पर केंद्रित हजारों की संख्या में पुस्तकें उपलब्ध हैं। उनका आचरण एवं व्यवहार शिक्षाप्रद ही नहीं वरन जन साधारण के अनुकरण करने योग्य है।

बाबाजी ने हर भक्त, हर शरणागत के साथ तथा उन भक्तों के साथ, जो उनके व्यक्तित्व व सामथ्र्य से अनभिज्ञ थे, जिन्होंने कभी महाराज जी के दर्शन भी नहीं किए थे, उसके प्रारब्ध कर्म, मनेच्छा के अनुकूल अलग-अलग प्रकार की कल्याण रूपी कृपा की। उन कृपापात्रों की बाबाजी के प्रति अलग-अलग अनुभूतियां व भावनाएं रही हैं। महाराज जी के भक्त देश-दुनिया के हर कोने में फैले हुए हैं। यद्यपि बाबा महाराज ने इसके लिये किसी संस्था, संस्थान अथवा किसी विशेष नाम युक्त सत्संग स्थल आदि की स्थापना कभी नहीं की। एकदम रमता जोगी आज यहां तो कल वहां। महाराज जी ने मंदिरों एवं आश्रमों में अपना नाम भी कही नहीं आने दिया तथा इन मंदिरों एवं आश्रमों को हनुमान जी के नाम पर ट्रस्ट बनाकर ट्रस्ट को सौंपते चले गए। बाबाजी के महाप्रयाण के बाद भक्तों ने मंदिरों एवं आश्रमों में उनका नाम जोड़ दिया।

बाबा नीबकरौरी के परलोकगमन के बाद फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकेरबर्ग कैंची आश्रम (उत्तराखंड) में आए थे और दो दिन रुके भी थे। उन्होंने यह बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात में भी बताई थी। एप्पल के संस्थापक स्टीव जाब्स भी बाबा के परलोकगमन के बाद उनके आश्रम आए थे। मार्क जुकेरबर्ग और स्टीव जाब्स तब वहां आए थे, जब उनके जीवन के सर्वाधिक बुरे दिन चल रहे थे। ऐसे ही एक अमेरिकी भक्त थे रिचर्ड अल्बर्ट (1931-2019)। वह बाबा के संग बहुत समय रहे। बाद में उनका नाम राम दास हो गया था। उन्होंने राम दास नाम से बाबा पर अंग्रेजी में पुस्तक लिखी-द मिरकेल आफ लव। इसका हिंदी अनुवाद भी हुआ।

स्वामी करपात्री जी महाराज ने बाबा नीबकरौरी के लिए कहा था कि इस कलयुग में कई विद्वान संतों ने जन्म लिया, लेकिन उनमें कोई भी बाबा नीबकरौरी के जितना प्रबुद्ध एवं संपूर्ण नहीं था। उनके किसी भी कार्य का कोई भी वर्णन नहीं हो सकता। वे वर्णनातीत हैं। बाबाजी हर बात पर एक ही उत्‍तर दिया करते थे- सोइ जानइ जेहि देहु जनाई तात्विक अभिप्राय यह कि वही सब जानता है, जिसने इस देह को बनाया है।

बाबाजी का तिलिस्मी व्यक्तित्व
बाबा नीबकरौरी महाराज से पहली मुलाकात 1957 में हुई। उस रोज मैं स्कूल से घर आया तो मां घर पर नहीं थीं, पिताजी थे। आफिस के समय उनको देख चौंका। उन्होनें बताया कि बाबा नीबकरौरी मेरे मौसा अम्बा दत्त पांडे के घर बंदरिया बाग, लखनऊ में आये हैं और मुझे वहां चलना है। मैं नहीं जानता था कि वो कौन हैं।

उनके घर पर बैठक में बहुत से लोग थे। एक सज्जन सिर्फ सफेद चादर लपेटे तखत पर बैठे थे। जो आता उनको श्रद्धापूर्वक प्रणाम करता और बैठ जाता। मैं एक कोने में खड़ा था। बाबा ने मुझे मुस्कुराते हुए अपने पास बुलाया। बाबा बड़े प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरते जाते और एक शैतानी भरी मुस्कुराहट से मुझे देखते जाते। अचानक मेरे पिताजी को निकट बुलाया और कहा, इसकी एक जज और एक कमिश्नर के बेटे से दोस्ती है। वो दोनों इसे बरबाद कर देंगे। बात सोलह आने सच थी। फिर मेरे कान में बोले, छोड़ दे दोस्ती, सिर्फ विद्या से दोस्ती कर।

समय बीता मैं बाबा से समय-समय पर कैंची मंदिर (तब बन रहा था) में मिलता रहा। 1967 में मैं बनारस में पोस्टेड था। वहां से छुट्टी में घर आया। पिताजी तब कमिश्नर बार्डर डिवीजन थे। दौरे पर जा रहे थे। हम सब साथ गये। वो सरकारी गाड़ी में और हम लोग उनकी कार में। कुमाऊं से लौटते पिताजी साथ आ गये और बोले, कैंची में रुकेंगे। मंदिर के पास पहुंचे तो एक व्यक्ति लाल कपड़ा हिलाकर कार को रुकने का इशारा कर रहा था। हम तो रुकने ही जा रहे थे। वो हमें नदी पार मंदिर प्रांगण में एक अंधेरी कोठरी में ले गया। रास्ते में बताया कि बाबा ने कहा, वो लोग आ रहे हैं, उनको रोक कर यहां ले आओ।
कोठरी में घुप अंधेरा था। 10-12 लोग बैठे थे। बाबा एक तखत पर बैठे थे, उनकी केवल आकृति दिख रही थी। हम भी बैठ गये। उस आदमी ने हमें सबसे आगे बैठा दिया था। मैं ठीक बाबा के सामने था। वो बोले, क्या करता है आजकल? मैं तब भारत सरकार के नलकूप विभाग में था। मैंने कहा, बाबा कुंए खोदता हूं, पानी पिलाता हूं लोगों को। बाबा दहाड़े, नहीं पिलायेगा पानी, तू पहाड़ चढ़ेगा, वो ऊंचे, ऊंचे पहाड़, सुन्ना ढूंढेगा, चांदी ढूंढेगा। (सुन्ना शब्द का प्रयोग उन्होने ही किया था-मिस टाइप नहीं है) मैंने उनसे बहस की कि पानी पिलाना नेक काम है तो डपट कर बोले, मैंने कह दिया नहीं पिलायेगा, तो नहीं पिलायेगा। मैंने 1966 में जीएसआइ का इम्तिहान दिया था और तब जून 1967 तक परिणाम नहीं आया था। नवंबर में उनकी भविष्यवाणी सच साबित हो गई।

 

 

 

 

 

 

 

 

राजू मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार व दैनिक जागरण लखनऊ के संपादक हैं।

Previous Post

कंगना पर दर्ज हो देशद्रोह का मामला : श्रीमती वंदना चौधरी

Next Post

बीड़ : अपनी ही सगी बहन को भाई ने कर दिया गर्भवती

Next Post
बीड़ : अपनी ही सगी बहन को भाई ने कर दिया गर्भवती

बीड़ : अपनी ही सगी बहन को भाई ने कर दिया गर्भवती

  • Disclaimer
  • Privacy
  • Advertisement
  • Contact Us

© 2025 JNews - Premium WordPress news & magazine theme by Jegtheme.

No Result
View All Result
  • Home
  • देश
  • दुनिया
  • प्रदेश
  • खेल
  • मनोरंजन
  • लाईफस्टाईल
  • विविधा

© 2025 JNews - Premium WordPress news & magazine theme by Jegtheme.