पवन तिवारी की नयी कृति “त्यागमूर्ति हिडिम्बा” इन दिनों चर्चा में है।इससे पहले इस पर नरेंद्र कोहली लिख चुके हैं। उन्होंने हिडिम्बा को एक राक्षसी के रूप ही निरूपित किया है। मेरे ध्यान में यही एक कृति है। किंतु युवा कथाकार पवन तिवारी के इस उपन्यास का नाम हिडिम्बा नहीं बल्कि “त्यागमूर्ति हिडिम्बा” है। यह जो त्यागमूर्ति का विशेषण लगा है। यही उसे अलग और महत्त्वपूर्ण बनाता है।यह महाभारत पर आधारित कृति है। किंतु महाभारत से एक अलग और प्रेरित करने वाली कथा..एक नए दृष्टि से हिडिंबा के जीवन चरित्र की पड़ताल करने वाली पुस्तक है।
यह एक साधारण राक्षसी से देवी बनने तक की यात्रा का सजीव यात्रा वृत्त है। एक महान, विदुषी और सती स्त्री हिडिम्बा की महान गाथा के रूप ने बेहद ही सरल और तार्किक तरीके से लेखक ने रखा है। जिसे अभी तक भारतीय समाज ने न तो ठीक से देखने, न ही समझने की कोशिश की। जिस स्त्री को लोगो ने हेय और राक्षसी समझा! वह वास्तव में एक सती व महान स्त्री थी। पवन तिवारी की यह पुस्तक हिडिम्बा के बारे में एक नयी दृष्टि से सोचने और देखने का विचार देती है। जैसे मैथलीशरण गुप्त ने साकेत के माध्यम से लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के उपेक्षित चरित्र को उभारा, उसी तरह पवन तिवारी ने अपने इस उपन्यास के माध्यम से उभारा है। इस पुस्तक में लेखक ने एक टैग लाइन दी है।
“महाभारत का युद्ध यदि द्रौपदी के कारण हुआ तो हिडिम्बा के कारण पांडव महाभारत का युद्ध जीत सके”। यह पंक्ति हिडिम्बा के महत्त्व को बखूबी रेखांकित करती है। भीम ने अकेले कीचक, बकासुर, दुर्योधन सहित उसके निन्यानबे भाइयों और जरासन्ध का भी वध किया, जिससे युद्ध करते हुए कृष्ण को रण छोड़ना पड़ा, इसी कारण उनका एक नाम रण छोड़दास भी पड़ा। भीम धृतराष्ट्र के छल से भी बच गये।इसके पीछे हिडिम्बा का सतीत्व था। पुस्तक में तार्किक तरीके से लेखक ने इस प्रकार हिडिम्बा के अनेक पक्षों को उभारा है। हिडिम्बा को टेलीविजन धारावाहिकों में कुरूप और असभ्य दिखाया जाता रहा है। लेखक ने इसका भी तर्कपूर्ण ढंग से खंडन किया है।
किसी चक्रवर्ती राजा का पुत्र और जो पवन देव का औरस पुत्र हो, क्या किसी कुरूप और असभ्य स्त्री से न केवल विवाह करेगा अपितु, संतान भी पैदा करेगा। इससे यह सिद्ध होता है कि हिडिम्बा सभ्य और रूपवान भी थी। पुस्तक में अनेक तथ्यपूर्ण और रोचक प्रसंग मिलेंगे।यह पुस्तक हिडिम्बा पर विमर्श के नये द्वार खोलती है। इस पुस्तक को पढ़ने पर पता चलता है कि लेखक का दर्शन और चिंतन भारतीय संस्कृति और साहित्य को लेकर बेहद सकारात्मक है। यह पुस्तक महाभारत को एक नए दृष्टि से देखने के लिए प्रेरित करती है। पुस्तक वर्तमान संदर्भ को लेकर महाभारत से जोड़ती है। भारतीय आध्यात्म, संस्कृति और नए संदर्भो में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए यह एक शानदार पुस्तक है। इसकी भाषा शैली, शिल्प और कथ्य भी शानदार है। एक लंबे समय बाद हिंदी जगह में ऐसी पुस्तक आयी है। एक खास बात इस पुस्तक की भूमिका भी है। जिसमें पवन तिवारी ने हिंदी साहित्कारों के संघर्ष का वास्तविक चित्र दिखाया है। इस कथा संग्रह में एक कविता भी है, “वक्त से सम्वाद” शीर्षक से ! यह कविता भी बेहद महत्त्वपूर्ण है। इसे हर संघर्षशील रचनाकार को पढ़ना चाहिये। यह कविता हर काल में महत्त्वपूर्ण रहेगी।
38 वर्ष की उम्र में जिस परिपक्वता एवं तार्किकता के साथ पवन तिवारी ने यह उपन्यास लिखा है, वह भी प्रशंसनीय है। वैसे भी इससे पहले उनके पहले उपन्यास अठन्नी वाले बाबूजी के लिए महाराष्ट्र साहित्य अकादमी का जैनेन्द्र पुरस्कार दिया जाना उनकी लेखनी की धार को प्रमाणित कर चुका है।आशा है हिंदी जगत इस “त्यागमूर्ति हिडिम्बा” का भी स्वागत करेगा।
पुस्तक – त्यागमूर्ति हिडिम्बा (उपन्यास)
प्रकाशक – नमन प्रकाशन, दिल्ली
लेखक – पवन तिवारी
मूल्य – 200/-