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चक्रव्यूह – ‘पोटोबा’, विठोबा …या ‘वोटोबा?’

Tez Samachar by Tez Samachar
October 20, 2019
in Featured, विविधा
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चक्रव्यूह – ‘पोटोबा’, विठोबा …या ‘वोटोबा?’


कौन कहता है कि हम ‘विश्व की तीसरी सबसे बड़ी महाशक्ति’ बनने जा रहे हैं? फेक न्यूज़ है ये! पूरी की पूरी गलत खबर! क्योंकि हम तो भुखमरी वाले देश के नागरिक हैं. आश्चर्य की बात यह कि कृषि-प्रधान देश होते हुए भी हम (भारत) भूखों की वैश्विक सूची (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में विश्व के 117 देशों में 102 वें स्थान पर फिसल चुके हैं. हमसे अच्छी स्थिति में वो पाकिस्तान है, जिसे हम अब तक ‘भुखमरा’ कहते और समझते थे. वह 94वें नंबर पर है. जबकि 2015 में हम 93वें क्रमांक पर थे. सवाल है कि हमारे पास जब खाद्यान्न का भरपूर स्टॉक है. फिर भी भारत देश भूखा क्यों है? क्योंकि हमारे देश के 10 फीसदी बच्चों को ही पौष्टिक भोजन मिलता है. देश के 20 से 25 करोड़ लोगों को रोज भरपेट भोजन नहीं मिलता और कम से कम सिर्फ 10 करोड़ लोग आज भी गरीबी के कारण एक ही टाइम भोजन करके अपने दिन गुजार रहे हैं.

यूनिसेफ की रिपोर्ट कहती है कि भारत में 5 साल से कम उम्र के 69 फीसदी बच्चों की मौत कुपोषण के कारण हो जाती है. भारत में सिर्फ 42 फ़ीसदी बच्चों को ही समय पर खाना मिल पाता है. लेकिन विडंबना देखिए कि भूखों के इस देश की चिंता वे सफेदपोश करते हैं, जिनका पेट जरूरत से ज्यादा भरा हुआ है. उनके पेट की पेटी (तोंद) निकल आई है. फिर भी वे भूखे नजर आते हैं. उन्हें पैसों की भूख है. सत्ता की भूख है. पॉवर की भूख है. तभी तो ‘भूखों के देश में भरे पेट वाले चुनाव लड़ रहे हैं …और खाली पेट वाले उन्हें वोट देकर उन्हीं का पेट भर रहे हैं!’ मुझे समझ में यह नहीं आता कि भरे पेट से देश का चिंतन करने वाले ये सफेदपोश, खाली पेट वालों के बारे में कब सोचेंगे? और यह भी समझ में नहीं आता कि खाली पेट वाले भूखे लोग अपने ‘पोटोबा’ (पेट-पूजा) के लिए ‘विठोबा’ (भगवान) और ‘वोटोबा’ (नेताओं) के भरोसे क्यों रहते हैं?

एक तरफ महाराष्ट्र में चुनाव चल रहे हैं. कल ‘वोटोबा’ (मतदान) का दिन है. लेकिन दूसरी तरफ ‘पोटोबा’ (पेट) नहीं भरने से नागपुर जिले में मां-बेटी की दर्दनाक मौत की खबर ने दिल दहला दिया है. जलालखेड़ा के पास पेठमुक्तापुर नामक गांव की मां-बेटी, 45 वर्षीया पदमा वसंत ढोणे और उसकी 27 वर्षीया बेटी दीपिका ढोणे की मौत भोजन और पानी के बिना हो गई. दीपिका दिव्यांग थी, पोलियोग्रस्त थी. दोनों के शव सड़ी-गली अवस्था में घर में ही पड़े थे. वसंत ढोणे की मौत 7 वर्ष पहले हो चुकी थी. मां पदमा भीख मांग कर अपना और बेटी दीपिका का पेट किसी तरह भर रही थी. इन दिनों पदमा बीमार थी और घर से बाहर नहीं निकल पा रही थी. उसी तरह अकोला जिले की चिखली तहसील के धाड़ नामक गांव में चुनाव प्रचार कार्य में लगे एक 21 वर्षीय गरीब श्रमिक सतीश गोविंद मोरे ने कांग्रेस पार्टी का ‘टी-शर्ट’ पहन कर पेड़ से फांसी लगाकर अपनी जान दे दी. उस पर छपा था- ‘मी राहुलभाऊ समर्थक’ …इससे पहले रविवार को शेगांव तहसील के खातखेड़ में 35 वर्षीय राजू ज्ञानदेव तलवारे ने भाजपा की ‘टी-शर्ट’ पहन कर आत्महत्या की थी. उस ‘टी-शर्ट’ पर छपा था- ‘पुन्हा आणू या आपले सरकार’ ….इस तरह पश्चिम विदर्भ में दो प्रमुख राजदलों के ‘टी-शर्ट’ पहन कर दो कथित कार्यकर्ताओं ने आत्महत्या की है.

सवाल है कि चुनाव प्रचार के दौरान भी अगर भूख से कोई मौत होती है अथवा कोई कार्यकर्ता या श्रमिक, रोजगार के अभाव में आत्महत्या करता है, तो क्या इसके लिए हम उन सफेदपोश राजनेताओं को दोषी नहीं ठहरा सकते, जो वोट मांगने घर-घर जाते हैं? जो जनता की समस्याएं सुलझाने का वादा करते हैं! जो आम जनता के सुख-दुख में साथ देने की गारंटी देते हैं! चलते चुनाव के दौरान ही जब ये वोट मांगने वाले अपने-अपने क्षेत्र के नागरिकों (या वोटरों) का ध्यान नहीं रख सकते, तो जीत कर आने के बाद (या हार जाने के बाद) इनसे 5 साल तक मदद की क्या उम्मीद रखी जाए! यहां यह भी सवाल उठता है कि शासन की ‘सरकारी सस्ते अनाज’ की योजना आखिर किसके लिए है? बड़े लोग चुनाव लड़ते हैं, मध्यमवर्ग उनके झंडे उठाता है, …और गरीब लोग भूख से मरते हैं! आखिर भूखों के इस देश में ऐसा कब तक चलता रहेगा? दिवाली सामने है. क्या भरपूर मिठाई खाने-बांटने वाले बड़े लोग, इन भूखों के बारे में कुछ सोचेंगे?

(सुदर्शन चक्रधर – संपर्क : 96899 26102)

Tags: Articalassemble election 2019Sudarshan chakradharvoting
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