“तारीख 7 दिसंबर 1984 । घर की लैंडलाइन पर मुख्यमंत्री जी (उस वक्त कांग्रेसी अर्जुन सिंह थे) का फोन आया। मुझे तत्काल सीएम हाउस बुलाया गया। कुछ देर बाद वहां पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी । भी आ गए। यहां हमें बताया गया कि एंडरसन, केशव महिंद्रा (यूनियन कार्बाइड इंडिया के अध्यक्ष) और विजय गोखले (कंपनी के प्रबंध निदेशक) सर्विस फ्लाइट से भोपाल आ रहे हैं। इन्हें गिरफ्तार करना है।”
“आदेश मिलते ही हम भोपाल हवाई अड्डे के लिए रवाना हो गए । सुबह करीब दस बजे हवाई अड़डे पर विमान उतरा। और एयरोड्रम ऑफिसर खन्ना की मदद से हम विमान के कॉकपिट वाले रास्ते की सीढ़ी से एंडरसन, महिंद्रा और गोखले को उतारकर नीचे ले आए। मेरा इशारा पाते ही एसपी मेरी कार को तुरंत हवाई जहाज के पास ले आए और हम तीनों को उसमें बिठाकर यूनियन कार्बाइड के गेस्ट हाउस की तरफ चल पड़े। हमने हवाई अड्डे से निकलने के लिए टर्मिनल बिल्डिंग के सामने से निकलने के बजाय दूसरा रास्ता चुना, ताकि कोई कैमरामेन हमारी फोटो न ले सके। “
“गेस्ट हाउस पहुंचकर मैंने एंडरसन को उनकी गिरफ्तारी के बारे में बताया। जरूरी इंतजाम करने के बाद जब हम बाहर निकल रहे थे, तो गेस्ट हाउस के गेट पर मीडिया का जमावड़ा हो चुका था। उस वक्त भी कार से उतरकर मैंने ही मीडिया को एंडरसन की गिरफ्तारी की सूचना दी।इसके बाद बाकी सवालों से बचते हुए हम वहां से निकल गए ।”
“उसी दिन दोपहर ढाई बजे मुख्य सचिव ब्रह्म स्वरूप के बुलावे पर मैं एसपी के साथ उनसे मिलने सचिवालय स्थित उनके चेंबर में गया। वहां उन्होंने बताया कि दिल्ली में PMO से मुख्यमंत्री के पास फोन आया है। बैरागढ़ हवाई अड्डे पर स्टेट प्लेन तैयार खड़ा है। एंडरसन को उसी प्लेन से तत्काल दिल्ली भेजना है। ये निर्देश मिलने के बाद हम सीधे यूनियन कार्बाइड गेस्ट हाउस की तरफ रवाना हो गए। वहां कुछ देर चर्चा के बाद एंडरसन ने जमानत के कागजात पर दस्तखत किए। इसके बाद हम उन्हें कार में बिठाकर चुपके से रीजनल कॉलेज की तरफ से नए बनाए गए ऊबड़-खाबड़ रास्ते से निकल गए।जिस रास्ते से हम हवाई अड्डे पर पहुंचे, उसका किसी को पता ही नहीं चला। हवाई अड्डे पर पहले से स्टेट प्लेन तैयार खड़ा था। हमने उसमें एंडरसन को बिठाया और दिल्ली भेज दिया । केशव महिंद्रा और विजय गोखले को पुलिस ने अदालत में पेश कर उनकी रिमांड ले ली थी।”
उपरोक्त अंश पुस्तक किताब ‘भोपाल गैस त्रासदी का सच’ से लिये गए है । जिसे लिखा है आईएएस मोती सिंह ने । 1984 में जब भोपाल गैस दुर्घटना हुई, तब ये भोपाल के कलेक्टर थे। बाद में यह मध्य प्रदेश शासन में सचिव/आयुक्त जैसे शीर्ष पदों पर रहते हुए सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद भी सरकार इनकी ‘उत्कृष्ट सेवाओं’ के लिए समय-समय पर इन्हें लाभ के पद से नवाज़ती रही ।
फिलहाल मोती सिंह 80 साल के हो चुके हैं और भोपाल की एक पॉश रिहाइश में स्थित अपने निजी बंगले में रहते हैं।
मोती सिंह स्वंय स्वीकार करते है कि इन्हीं की सरकारी कार को खुद चलाते हुए SP स्वराज पुरी वॉरेन एंडरसन को हवाई अड्डे तक छोड़ने गए थे। उस कार में एंडरसन के साथ मोती सिंह भी थे। इस तरह से कहा जा सकता है कि ये एंडरसन की गिरफ्तारी, जमानत और फिर उसे भागने का रास्ता सुलभ कराने की पूरी योजना में बराबर के साझीदार थे।
इस किताब में इतनी साफगोई से किए गए इकरार के बाद 2010 में भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के प्रमुख अब्दुल जब्बार और वकील शाहनवाज खान ने 20 जून 2010 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) की अदालत में निजी इस्तगाशा पेश किया। इस मामले में अदालत ने अपने एक आदेश में साफ कहा है कि मोती सिंह की पुस्तक से पता चलता है कि एंडरसन को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। उसके बाद उसे विशेष विमान मुहैया कराकर भागने में मदद की गई, जबकि वह कोर्ट की इजाजत के बगैर जमानत पर छोड़े जाने का पात्र नहीं था।
आज 3 दिसम्बर है। आज भोपाल गैस त्रासदी के 24 वर्ष पूरे हो गए । यह विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना मानी जाती है। इसमे 23,000लोग मारे गए थे । इतनी भयानक दुर्घटना के बावजूद तय स्क्रिप्ट के तहत मुख्य आरोपी को भारत बुलाया जा कर उसी दिन गैर कानूनी रूप से भगा दिया जाता है । तत्कालीन प्रधामंत्री राजीव गांधी से लेकर मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह तक इस मामले में संदिग्ध भूमिका में नजर आते है ।कलेक्टर खुले आम किताब लिखकर स्वीकारोक्ति करता है। इसके बावजूद इतनी भीषण दुर्घटना के आरोपियों को सजा न मिलना दर्द पैदा करता है। यह भी एक त्रासदी नहीं तो क्या है!
– सुधांशु टाक