कलकत्ता…. गुरुवार. १४ अगस्त… सुबह की ठण्डी हवा भले ही खुशनुमा और प्रसन्न करने वाली हो, परन्तु बेलियाघाट इलाके में ऐसा बिलकुल नहीं है. चारों तरफ फैले कीचड़ के कारण यहां निरंतर एक विशिष्ट प्रकार की बदबू वातावरण में भरी पड़ी है. गांधीजी प्रातःभ्रमण के लिए बाहर निकले हैं. बिलकुल पड़ोस में ही उन्हें टूटी –फूटी और जली हुई अवस्था में कुछ मकान दिखाई देते हैं. साथ चल रहे कार्यकर्ता उन्हें बताते हैं कि परसों हुए दंगों में मुस्लिम गुण्डों ने इन हिंदुओं के मकान जला दिए हैं. गांधीजी ठिठकते हैं, विषण्ण निगाहों से उन मकानों की तरफ देखते हैं और पुनः चलने लगते हैं. आज सुबह की सैर में शहीद सुहरावर्दी उनके साथ नहीं हैं, क्योंकि उस हैदरी मंज़िल में रात को सोने की उसकी हिम्मत ही नहीं हुई. आज सुबह ११ बजे वह आने वाला है. एक कार्यकर्ता उन्हें सूचित करता है कि ‘गांधीजी द्वारा आव्हान किए जाने की वजह से पूरे कलकत्ता शहर में हिंदुओं और मुसलमानों की संयुक्त रैलियाँ निकल रही हैं. कल दिन भर से कलकता में दंगों की एक भी खबर नहीं आई है.’
कराची. सुबह के नौ बजे हैं…
साधारण से दिखाई देने वाले, परन्तु फिर भी भव्य ‘असेम्बली हॉल’ में काफी अफरातफरी मची हुई है. कुछ ही पलों में आधिकारिक रूप से पाकिस्तान अस्तित्त्व में आने जा रहा है. शंख की आकृति वाले इस सभागृह में विभिन्न प्रकार के लोग बैठे हैं. ये सभी लोग अपने-अपने क्षेत्रों के नेता हैं. इनमें पठान हैं, अफरीदी हैं, वजीर हैं, महसूद हैं, पंजाबी भी हैं, बलूच हैं, सिंधी और बंगाली भी हैं. डेढ़ हजार मील दूर रहने वाले ये बंगाली अन्य लोगों से थोड़े अलग दिखाई दे रहे हैं.
लॉर्ड माउंटबेटन अपनी नौसेना अधिकारी वाली पूर्ण यूनिफॉर्म में मौजूद हैं. पहला भाषण उन्हीं को करना है. उनका भाषण लिखने वाले सज्जन हैं, जॉन क्रिस्टी. एक-एक शब्द के उच्चारण पर जोर देते हुए माउंटबेटन ने बोलना शुरू किया, “पाकिस्तान का उदय यह एक ऐतिहासिक घटना है. प्रत्येक इतिहास कभी किसी हिमखण्ड की तरह धीमी गति से तो कभी पानी के जोरदार प्रवाह की तरह तेजी से आगे बढ़ता है. हमें केवल इतिहास के प्रवाह की अड़चनें दूर करते हुए इन घटनाओं के प्रवाह में स्वयं को झोंक देना चाहिए. अब हमें पीछे नहीं देखना है, हमें केवल आगे भविष्य की ओर देखना चाहिए.”
भावशून्य एवं कठोर चेहरे वाले जिन्ना की तरफ देखते हुए माउंटबेटनआगे कहते हैं” कि इस अवसर पर मुझे मिस्टर जिन्ना को धन्यवाद ज्ञापन करना है. हम दोनों के बीच मित्रता और आत्मीयता है, इस कारण आगे भविष्य में भी हमारे सम्बन्ध अच्छे बने रहेंगे, इसका मुझे पूरा विश्वास है.”
आज जिन्ना को कुछ खास नहीं बोलना हैं. वे अपने संक्षिप्त भाषण के लिए खड़े हुए. चमकदार और शानदार शेरवानी. गले तक बटन बन्द की हुई. एक ही आंख पर लगाया जाने वाला चश्मा और वह भी नाक के आधार पर टिका हुआ. जिन्ना ने बोलना आरम्भ किया… “ब्रिटेन और उनके द्वारा निर्माण किए गए उपनिवेश आज भले ही इनका सम्बन्ध विच्छेद हो रहा है, परन्तु हमारा परस्पर स्नेहभाव आज भी जागृत है. पिछले तेरह सौ वर्षों से अस्तित्त्व में रहे हमारे पवित्र इस्लाम की तरफ से मैं आपको वचन देता हूं कि पाकिस्तान में अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता का पालन किया जाएगा. हमारे पड़ोसी राष्ट्रों एवं दुनिया के अन्य सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध निर्माण करने की दिशा में पाकिस्तान कभी भी पीछे नहीं रहेगा….!”
इस छोटे से भाषण के पश्चात, पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल के रूप में उन्हें शपथ ग्रहण करनी थी, वह उन्होंने ली…. और इसी के साथ आधिकारिक रूप से पाकिस्तान नामक एक राष्ट्र का उदय हुआ…!
अब इस कड़ी में अगला चरण था, जुलूस का. एक सजीधजी, काले रंग की और खुले छत वाली, रोल्स रॉयस कार में यह जुलूस निकलने वाला था. असेम्बली हॉल से गवर्नर हाउस तक, अर्थात जिन्ना के वर्तमान निवास स्थान तक. केवल तीन मील की दूरी थी. दोनों तरफ जनता खड़ी थी. गाड़ी की पिछली सीट पर जिन्ना और लॉर्ड माउंटबेटन बैठे हुए थे. इक्कीस तोपों की सलामी दी गई और गाड़ी धीरे-धीरे आगे सरकने लगी. कुछ दूर चलने के बाद कार हलके से वेग के साथ चलने लगी थी.
जिन्ना और माउंटबेटन दोनों को ही ऐसा प्रतीत हो रहा था की कहीं इस भीड़ में से कोई उन पर बम न फेंक दे, क्योंकि रास्ते पर कार के दोनों तरफ काफी भीड़ थी. हजारों लोग जिन्ना और पाकिस्तान की जयजयकार कर रहे थे. थोड़ी-थोड़ी दूरी पर पुलिस वाले और सैनिक खड़े थे. तीन मील की यह दूरी लगभग पौने घंटे में पूर्ण हुई. गवर्नर हाउस के मुख्य द्वार पर कारों के रुकने के पश्चात, सदैव कठोर चेहरा रखने वाले जिन्ना ने हल्की सी मुस्कान के साथ अपना हड्डियों के ढ़ांचे जैसा हाथ माउंटबेटन के घुटने पर रखा और बोले… “इंशाअल्लाह… मैं आपको जीवित वापस ला सका…!”
माउंटबेटन, जिन्ना की तरफ देखते ही रह गए है. वे मन ही मन विचार करने लगे कि कौन, किसको जीवित लाया है?? ‘अरे बदमाश… मेरे कारण ही तू यहां तक जीवित वापस आया है…!’
श्रीनगर… सुबह के दस बजे हैं..
शहर का मुख्य पोस्ट ऑफिस. (जी.पी.ओ.) पोस्ट के अधिकारी पाकिस्तान का झण्डा कार्यालय पर लगा रहे हैं. वहीं पर खड़े संघ के दो स्वयंसेवक यह देख कर तत्काल पोस्ट मास्टर से जवाब-तलब करते हैं, कि ‘आप पाकिस्तान का झण्डा यहां कैसे लगा सकते हैं..? अभी महाराज हरिसिंह ने कश्मीर का विलय पाकिस्तान में नहीं किया है.’ इस पर उस मुस्लिम पोस्ट मास्टर ने शान्ति से जवाब दिया कि ‘अभी श्रीनगर पोस्ट ऑफिस, सियालकोट सर्कल के अंतर्गत आता है. और अब चूंकि सियालकोट पाकिस्तान का हिस्सा बन चुका है, इसलिए इस पोस्ट ऑफिस पर हमने पाकिस्तान का झण्डा लगा दिया.’
दोनों स्वयंसेवकों ने, जम्मू-कश्मीर के प्रांत संघचालक प्रेमनाथ डोगरा को यह सूचना दी. डोगरा जी ने तत्काल महाराज हरिसिंह के कार्यालय में जिम्मेदार अधिकारियों तक यह बात पहुंचा दी… और दस-पन्द्रह स्वयंसेवकों को मुख्य पोस्ट ऑफिस की तरफ भेजा. इन स्वयंसेवकों ने उस पोस्ट मास्टर को समझाया, और अगले आधे घंटे में पाकिस्तान का झण्डा उतार लिया गया.
कराची…. दोपहर के दो बजे हैं…
सुबह वाले समारोह के ‘दरबारी’ कपड़े बदलने के बाद, लॉर्ड माउंटबेटन और लेडी माउंटबेटन दोनों ही दिल्ली जाने के लिए निकले हैं. दोनों ही प्रसन्नचित्त दिखाई दे रहे हैं. उन्हें आज रात को भारत के राज्यारोहण समारोह में उपस्थित रहना है. कायदे आज़म जिन्ना और उनकी बहन फातिमा ने इस अंग्रेज दम्पति को विदाई दी. इस प्रकार नवनिर्मित पाकिस्तान के पहले राजनैतिक, अतिथि के रूप में भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड और लेडी माउंटबेटन, जिन्ना को अलविदा कह रहे थे.
कलकत्ता हवाई अड्डा… दोपहर के तीन बज रहे हैं….
विभाजित बंगाल, अर्थात ‘पश्चिम बंगाल’ के गवर्नर नियुक्त किए गए चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का विशेष विमान आज दिल्ली से आने वाले है. आज रात को ही राजाजी का शपथग्रहण समारोह होने वाला है. हवाईअड्डे पर काँग्रेस के कुछ कार्यकर्ता एकत्रित हैं. परन्तु उनमें कोई उत्साह नहीं दिखाई दे रहा है. क्योंकि बंगाल में राजाजी का विरोध जारी है. राजगोपालाचारी को बंगाल की जनता पर लादने के विरोध में सुभाषचन्द्र बोस के भाई और बंगाल काँग्रेस के वरिष्ठ नेता शरतचंद्र बोस ने अपना इस्तीफा पहले ही दे दिया है. अंततः गवर्नर हाउस के कुछ अधिकारी और कर्मचारी, हवाईअड्डे से राजाजी को उनकी खास ‘गवर्नर वाली कार’ में लेकर सीधे गवर्नर हाउस पहुंचे.
सिंगापुर….
सिंगापुर की ‘इन्डियन इंडिपेंडेंस डे सेलिब्रेशन कमेटी” ने मलय एयरवेज के साथ कल का दिवस उत्साह के साथ मनाए जाने की विशेष योजना बनाई थी. मलय एयरवेज का एक विशेष विमान, पडांग के वाटरलू स्ट्रीट के उपर से उड़ान भरने वाला था. यह उड़ान ठीक उसी समय होने वाली थी जिस समय वहां पर तिरंगा फहराए जाने का समारोह होने वाला था. इस विमान में सुभाषचंद्र बोस की ‘आज़ाद हिन्द सेना’ के सिपाही और अधिकारी… ‘रानी झांसी रेजिमेंट’ की महिला सैनिक और बाल सेना के कुछ कार्यकर्ता सफर करने वाले थे. ये सभी लोग तिरंगा ध्वजारोहण के अवसर पर विमान से पुष्पवर्षा करने वाले थे.
परन्तु ‘आज़ाद हिन्द सेना’ का नाम सामने आते ही, सिंगापुर के सिविल एविएशन विभाग ने इस विशेष कार्यक्रम पर आपत्ति उठाई और इस उड़ान को दी गई अनुमति रद्द कर दी…! अब ‘इन्डियन इंडिपेंडेंस डे सेलिब्रेशन कमेटी” कल अलग पद्धति से स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाने की योजना बनाने में लगी हुई है.
कराची…. दोपहर के चार बज रहे हैं.
कराची की एक बड़ी सी हवेली. संघ से सम्बन्धित एक परिवार का घर हैं.घर की दो महिलाएं ‘राष्ट्र सेविका समिति’ की सक्रिय सेविकाएं हैं. इस हवेली की छत पर सेविकाओं का एकत्रीकरण कार्यक्रम रखा गया है. कराची शहर की हिन्दू बहुल बस्तियों से सेविकाओं का आगमन जारी है. सुबह, कायदे आज़म जिन्ना और लॉर्ड माउंटबेटन की शोभायात्रा काफी पहले ही सम्पन्न हो चुकी है. इस कारण अब रास्तों पर अधिक भीड़ नहीं है. आज गुरूवार होने के बावजूद पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में स्कूल, कॉलेज सभी बन्द हैं.
हवेली की छत काफी बड़ी है. लगभग सात-आठ सौ सेविकाएं उपस्थित होंगी. उन्हें बैठने के लिए स्थान की कमी पड़ रही है. कुछ सेविकाएं नीचे भी खड़ी हैं. वातावरण भले ही गंभीर हो, परन्तु उत्साही भी है. शाखा लगाई जाती है. ध्वज लगाया जाता है. सेविकाओं के मन में उम्मीद जगाने और आत्मविश्वास का संचार करने वाला गीत होता है. इसके पश्चात लक्ष्मीबाई केलकर यानी मौसीजी अपनी धीरगंभीर आवाज़ में प्रतिज्ञा का उच्चारण करती हैं. उसी दृढ़ता और गंभीरता के साथ सभी सेविकाएं उनके साथ प्रतिज्ञा का उच्चारण करती हैं. यह प्रतिज्ञा मन की संकल्प शक्ति का आव्हान करने संबंधी है. कुछ समय प्रश्नोत्तर के लिए भी रखा गया है. एक नौजवान सेविका पूछती है, कि “पाकिस्तान में हमारी इज्जत खतरे में है. हमें क्या करना चाहिए..? हम कहां जाएं..?”
मौसीजी उन्हें अपने आश्वासक स्वरों में बताती हैं कि, “जैसे भी संभव हो हिन्दुस्तान आ जाओ. यहां से निकलकर हिन्दुस्तान कैसे पहुंचा जाए, केवल इस बात पर विचार करें. मुम्बई और अन्य शहरों में संघ ने आपके लिए व्यवस्था की हुई है, चिंता न करें. हम सभी एक ही परिवार हैं. यह कठिन समय आपस में मिलजुलकर किसी तरह निकाल ही लेंगे.”
समारोह के अंत में अपने संक्षिप्त भाषण में मौसीजी ने कहा… “बहनें धैर्यशाली बनें, धीरज रखें… अपनी इज्जत बचाएं… अपने संगठन पर पूरा भरोसा करें. इस कठिन समय में भी अपनी मातृभूमि की सेवा का व्रत निरंतर जारी रखें. संगठन की ताकत द्वारा, हम इस संकट से सुरक्षित रूप से निकल जाएंगे.” मौसीजी के मुंह से ऐसे आश्वासक शब्द सुनकर सिंध की उन सेविकाओं के मन में निश्चित रूप से एक आत्मविश्वास का निर्माण हुआ है…!
एक बार फिर कराची…
कराची में जिन्ना-माउंटबेटन की शोभायात्रा और समारोह में हुए जयजयकार को यदि छोड़ दिया जाए, तो पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस का कोई खास उत्साह दिखाई नहीं दे रहा है. चाँद-तारे वाला पाकिस्तान का हरा झण्डा अनेक स्थानों पर दिखाई तो दे रहा है, परन्तु केवल पश्चिम पाकिस्तान में ही. पूर्वी पाकिस्तान में चाँद-तारे वाला झण्डा लगभग नहीं के बराबर हैं. संभवतः ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि रमज़ान के अंतिम दिन चल रहे हैं. परन्तु एक बात तो निश्चित है, कि पाकिस्तान का उदय होने के कारण, इस्लामी राष्ट्रों के बीच एक सशक्त नेतृत्व करने वाला एक देश उत्पन्न हुआ है, ऐसा सभी को लग रहा है.
कलकत्ता. बेलियाघाट.
गांधीजी की सायंकालीन प्रार्थना का समय हो चुका है. आज गुलाम भारत की उनकी यह अंतिम प्रार्थना होगी. आज तक हमेशा ही गांधीजी ने ऐसी अनेक सायंकालीन प्रार्थनाओं में अनेक विषयों पर बात की है. उनके पसंदीदा विषय सूत-कताई से लेकर अणुबम के खतरों, शरीर में स्थित आंतों की संरचना, शौच स्वच्छता, ब्रह्मचर्य व्रत पालन के फायदे, भगवदगीता की शिक्षा, अहिंसा आदि अनेक विषयों पर वे बोलते रहे हैं.
स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर, ‘गांधीजी का आज क्या बोलते हैं’, इस बारे में सभी के मन में कौतूहल है… और इसीलिए आज शाम की प्रार्थना बेलियाघाट के सार्वजनिक बगीचे में होने जा रही है. सामने खड़े लगभग दस हजार लोगों की भीड़ के सामने गांधीजी शांत स्वर में बोलने लगे, “सबसे पहले आप सभी लोगों का मैं अभिनन्दन करता हूं कि आप लोगों ने कलकत्ता में हिन्दू-मुसलमान का विवाद मिटा दिया है. यह बहुत ही अच्छा हुआ, क्योंकि मैं ऐसी आशा करता हूं कि यह तात्कालिक समाधान नहीं, बल्कि आप दोनों सदैव आगे भी बंधुभाव के साथ ही रहेंगे.”
“कल से हम ब्रिटिश गुलामी से मुक्त होने जा रहे हैं. परन्तु इसी के साथ आज रात से हमारा यह देश भी विभाजित होने जा रहा है. इसलिए कल का दिन जैसे एक तरफ आनन्ददायक है, तो दूसरी तरफ दुखदायी भी है. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हम सभी लोगों की जिम्मेदारी काफी बढ़ जाएगी. यदि कलकत्ता शहर की बुद्धि और बंधुभाव साबुत रहा, तो संभवतः हमारा देश एक बड़े संकट से बच निकलेगा. परन्तु यदि जातीय-धार्मिक वैमनस्यता की ज्वालाओं ने इस देश को घेर लिया, तो नई-नई मिली हुई हमारी स्वतंत्रता क्या अधिक समय तक टिक सकेगी…?” “मुझे आपको यह बताते हुए बहुत कष्ट हो रहा है कि व्यक्तिगत रूप से मैं कल का स्वतंत्रता दिवस, आनंद से नहीं मनाऊंगा. अपने अनुयायियों से भी मैं यही आग्रह करूंगा कि कल चौबीस घंटे का उपवास रखें, प्रार्थनाओं में अपना समय बिताएं और चरखे पर सूत-कताई करें. इससे हमारा देश बचा रहेगा.”
दिल्ली…. काँग्रेस मुख्यालय में शाम के छः बज रहे हैं. बारिश लगातार जारी है.
काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का प्रेस वक्तव्य प्रकाशन के लिए निकलने वाला है. इसमें अध्यक्ष आचार्य जे.बी. कृपलानी ने लिखा है कि, “आज का दिवस हमारे लिए दुःख का दिन है. हमारी प्रिय मातृभूमि का विभाजन होने जा रहा है. लेकिन हम इससे भी उबरेंगे और एक नए भारत का निर्माण करेंगे….!
दिल्ली. शाम के छः बज रहे हैं.
डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद का बंगला. नेहरू को छोड़कर उनके मंत्रिमंडल के अधिकांश मंत्री यहां उपस्थित हैं. रक्षा मंत्री बलदेव सिंह पंजाब के दौरे पर हैं, इसलिए वे अभी तक नहीं पहुंचे हैं. लेकिन जल्दी ही पहुंचने वाले हैं. इस बंगले के परिसर में, आने वाले स्वतन्त्र भारत के उज्जवल भविष्य हेतु यज्ञ जारी है. वेदविद्या में पारंगत आचार्यों द्वारा यज्ञ करवाया जा रहा है. शुद्ध संस्कृत में, स्पष्ट और उंची आवाज़ में मंत्रोच्चारण जारी है. बाहर धीमी बारिश हो रही है. समूचा वातावरण एक प्रसन्न और पवित्र भावना से भर गया है. इस यज्ञ की पूर्णाहुति के पश्चात स्वल्पाहार ग्रहण करके सभी मंत्रियों को स्टेट कौंसिल बिल्डिंग में राज्यारोहण समारोह के लिए जाना है.
दिल्ली…. रात के दस बजने वाले हैं… बाहर अभी भी बारिश जारी है. स्टेट कौंसिल बिल्डिंग में संविधान सभा के सभी सदस्य, मंत्री, वरिष्ठ अधिकारी धीरे-धीरे एकत्रित होते जा रहे हैं. गोलाकार सभागृह के बाहर हजारों लोग बारिश और भीगने की परवाह किए बिना अपने स्थान पर जमे हुए हैं.
सरदार पटेल, आज़ाद, डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, डॉक्टर आंबेडकर, बलदेव सिंह, नेहरू, राजकुमारी अमृत कौर . . . सारे मंत्री एक के बाद लगातार आ रहे हैं और वहां उपस्थित जनता का उत्साह चरम पर पहुंचने लगा है. एक-एक मंत्री के आगमन पर उनके नाम से जयजयकार हो रहा है. लोग नारे लगा रहे हैं, ‘वन्देमातरम’, ‘महात्मा गांधी की जय’. सभागृह में सर्वोच्च आसन पर इस सभागृह के अध्यक्ष यानी डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद बैठे हैं. उनकी बांई तरफ, थोड़ा नीचे लॉर्ड माउंटबेटन अपने पूर्ण सैन्य पोशाक में मौजूद हैं. नेहरू ने भी सफ़ेद झक चूड़ीदार पाजामा, नई सिलवाई हुई अचकन (अर्थात बन्द गले का कोट) और उस कोट पर एक शानदार जैकेट तथा उस जैकेट में एक गुलाब… ऐसा शानदार पोशाख किया हैं.
डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने सभा का आरंभ किया. उन्होंने सभी ज्ञात-अज्ञात सैनिकों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को स्मरण किया. उन्हें भी स्मरण किया, जिन्होंने इस देश की स्वतंत्रता के लिए अत्यधिक कष्ट सहे और मृत्यु का वरण भी किया. अपने भाषण के अंत में उन्होंने महात्मा गांधी का विशेष उल्लेख किया और बताया कि “हम सभी के गुरु और हम सभी को दिशा दिखाने वाले दीपस्तंभ जैसे हमारे गांधीजी, आज हमसे हजार मील दूर, शान्ति स्थापित करने के काम में लगातार मगन हैं…!”
इसके बाद नेहरू बोलने के लिए खड़े हुए. उनके सूती जैकेट के बटन होल में लगा हुआ गुलाब का फूल, मध्य रात्रि के इस प्रहर में भी एकदम तरोताज़ा दिखाई दे रहा हैं. शांत और गंभीर आवाज़ में नेहरू ने बोलना शुरू किया… “अनेक वर्षों पूर्व हमने नियति से एक संधि की थी. आज उसकी पूर्ती, पूरी तरह से तो नहीं, लेकिन काफी हद तक करने जा रहे हैं. ठीक मध्यरात्रि बारह बजते ही, जब समूची दुनिया शान्ति के साथ नींद में होगी, तब भारत की स्वतंत्रता का एक नए युग में… नए जन्म में प्रवेश होगा…!” नेहरू एक से बढ़कर एक सरस शब्दों से अपने भाषण की सजावट किए हुए हैं. ऐसा भाषण तैयार करने के लिए उन्होंने अनेक रातें खर्च की हैं…!
रात के ठीक बारह बजे उस सभागृह में बैठे हुए, गांधी टोपी पहने एक सदस्य ने अपने साथ लाया हुआ शंख फूंका. उस शंखध्वनी से वहां उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति का रोम-रोम रोमांचित हो उठा. एक नया इतिहास रचा जा रहा था… एक नए युग का आरम्भ होने जा रहा था. स्वर्ग में उपस्थित अनेक क्रांतिकारियों की आत्मा यह दृश्य देखकर तृप्त हो रही थी, शांत हो रही थी…. भारत अब स्वतंत्र हो चुका था.
दिल्ली. मध्यरात्रि…
बहुत तेज़ बारिश लगातार जारी है. पुरानी दिल्ली के दरियागंज, मिंटो ब्रिज जैसे इलाकों में पानी भरना शुरू हो गया है. ऐसी भीषण बारिश में भी ई-४२, कमला नगर स्थित संघ के छोटे से कार्यालय में, कुछ प्रचारक और दिल्ली के संघ के कुछ प्रमुख कार्यकर्ता एकत्रित हैं. उनके समक्ष अनेक मुद्दे हैं. पंजाब और सिंध से अनेक निर्वासित दिल्ली आ रहे हैं. उनकी निवास और भोजन की व्यवस्था करनी है. कल के दिन, स्वतंत्रता दिवस समारोह में मुसलमानों के कुछ समूह गडबडी कर सकते हैं ऐसी भी सूचना उनके पास है. उस तरफ भी इन्हें ध्यान देना है.
अनेक स्वयंसेवक पिछली कई रातों से सोए नहीं हैं… अगली कुछ रातें भी इनके सामने ऐसी ही अनेक चुनौतियां पेश करने वाली हैं.
कलकत्ता. गवर्नर हाउस. आधी रात के एक बजे… उधर दूर दिल्ली में सत्ता हस्तांतरण का कार्यक्रम सम्पन्न हो गया है, और इधर अंग्रेजों की इस पुरानी राजधानी में एक नया अध्याय लिखा जा रहा है. गवर्नर हाउस में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को गवर्नर के रूप में शपथ ग्रहण करवाने का कार्यक्रम शुरू होने जा रहा है. बेहद संक्षिप्त सा कार्यक्रम. निवृतमान गवर्नर सर फ्रेडरिक बरोज़ राजगोपालाचारी को अपना कार्यभार सौंपते हैं. केवल दस-पन्द्रह मिनट के इस कार्यक्रम में राजाजी ने अंग्रेजी में शपथ ग्रहण की, परन्तु नवनियुक्त मुख्यमंत्री डॉक्टर प्रफुल्लचंद्र घोष एवं अन्य सभी मंत्रियों ने बांगला भाषा में शपथ ली.
इस कार्यक्रम को देखने के लिए भारी भीड़ जमा हुई है. आज की रात वैसे भी स्वतंत्रता की रात है. इसीलिए गवर्नर हाउस आज आम जनता के लिए खोला गया है. अतः मध्यरात्रि के इस प्रहर में भी खासी जनता जुटी हुई है. लोग बड़े उत्साह से नारेबाजी कर रहे हैं, ‘जय हिन्द’, ‘वन्देमातरम’ ‘गांधीजी जिंदाबाद’… आज तक जो गवर्नर हाउस सारे भारतीयों को, और खासकर क्रांतिकारियों को, पूरी तरह से नष्ट करने में लगा हुआ था, उसी गवर्नर हाउस में जोरशोर से ‘वंदेमातरम’ के नारे लगाने में सभी को एक विशेष आनंद, विशेष उत्साह महसूस हो रहा हैं.
राजाजी द्वारा गवर्नर पद का कार्यभार ग्रहण करते ही, यह भारी भीड़ बेकाबू हो गई. उन्हें लग रहा था कि गवर्नर हाउस में क्या करें, क्या न करें. इसी आवेश और अति-उत्साह में यह भीड़ गवर्नर हाउस में मौजूद कीमती वस्तुएं, चांदी की कटलरी वगैरह साथ में लेकर ‘महात्मा गांधी जिंदाबाद’ के नारे लगाते हुए बाहर की ओर निकलने लगी…! स्वतंत्र भारत का पहला सूर्य अभी निकला भी नहीं था, कि स्वतंत्र देश के पहले सार्वजनिक समारोह का अंत इस प्रकार से हुआ…!