हिन्दू धर्म के अलावा अन्य धर्मों में प्रभु श्री राम को श्रेष्ठ स्थान दिया जाता है. मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाने वाले प्रभु श्री राम न केवल आराध्य हैं बल्कि आदर्श व् गौरव सम्मान भी हैं. विगत 9 नवम्बर 2019 को देश के सर्वोच्च न्यायालय ने राम मंदिर पर ऐतिहासिक निर्णय देते हुए उसमें सिख पंथ के प्रथम गुरु श्री नानकदेव जी का उल्लेख किया.
सर्वोच्च न्यायालय ने हिन्दू पक्ष के वकीलों द्वारा प्रस्तुत किये गए सिख पंथ की जन्मसाखी धार्मिक पुस्तक के हवाले से ईसवी सन 1510 – 11 के बीच गुरुनानक देव जी महाराज के अयोध्या जाने के प्रमाण का उल्लेख किया है. सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय के पृष्ठ क्रमांक 62 के बिंदु क्रमांक 69 में सिख पंथ की विभिन्न धार्मिक ग्रन्थ, पुरातन पुस्तकों का हवाला देते हुए कहा गया कि गुरु नानक देव ने राम जन्मभूमि का दर्शन करने के लिए सन 1510-11 में अयोध्या की यात्रा की थी .
इससे पहले राम जन्मभूमि मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट में भी इस मामले की सुनवाई के दौरान वाद नंबर चार के एक गवाह ने सिख धर्मग्रंथों का उल्लेख करते हुए कहा था कि गुरु नानक देव जी राम जन्मभूमि का दर्शन करने के लिए अयोध्या में गए थे. उसने भी उनके अयोध्या जाने के समय को सन 1510-11 ही बताया था . उक्त गवाह ने अपने बयान के समर्थन में विभिन्न पुरातन जन्म साखियों में मौजूद तथ्यों को भी अदालत में प्रस्तुत किया था, जिनमें गुरु नानक देव जी के अयोध्या जाने का उल्लेख था . सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में गुरु नानक देव जी के अयोध्या में राम जी दर्शन करने के साक्षों में पुरातन जन्मसाखी के अलावा पोथी जन्म्साखी , ज्ञान रत्नावली , सचखंड पोथी, गुरुनानक वंश प्रकाश, श्री गुरु तीरथ संग्रही, आदि सिख ग्रंथों में उल्लेखित बिन्दुओं को अपने रिकार्ड में प्रमुखता से स्थान दिया.
इतिहासकार व् उक्त उल्लेखित ग्रंथों की माने तो गुरु नानक देव जी जब अपनी धर्म यात्राओं के क्रम में नानकमत्ता, गोला होते हुए जल मार्ग से अयोध्या पहुंचे थे, उस समय उन्होंने अपने साथ चल रहे भाई मरदाना जी का अयोध्या से परिचय श्रीराम चंद्र जी की नगरी के रूप में कराया था. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद गुरु नानक साहिब का वह वचन सिद्ध हुआ है . प्रमाण हैं कि गुरु नानक देव जी अयोध्या में कई दिनों तक रुके थे और यहां संतों से धर्म चर्चा करते हुए कहा था कि अयोध्या में वास करने वाले लोग प्रभु श्रीराम चंद्र जी के साथ स्वर्ग इसलिए गए क्योंकि उन्हें श्रीराम चंद्र जी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ था. यह तथ्य प्रमाणित जन्म साखी में अंकित है. सिख परम्परा का प्रभु राम के साथ नाता रहा है. गुरु नानक देव जी के अलावा गुरु तेग बहादुर और उनके बेटे गुरु गोविंद सिंह ने भी अयोध्या में दर्शन किए थे.
भगवान राम की महिमा सिख परंपरा में भी बखूबी विवेचित है. सिखों के पवित्र ग्रन्थ गुरुग्रंथ साहब में दो हजार पांच सौ तेंतीस बार भगवान राम के नाम का उल्लेख मिलता है. राम, रामा और राम राजे के रूप में इन नामों का उल्लेख किया गया है , इसकेअलावा हरी के रूप में भी प्रभु राम को स्मरण किया गया है. दशम गुरु गोविद सिंह ने तो दशमग्रंथ में रामावतार के नाम से एक परिपूर्ण सर्ग की ही रचना कर रखी है . सिख परंपरा में भगवान राम से जुड़ी विरासत अयोध्या रामनगरी में ही स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड में पूरी शिद्दत से प्रवाहमान है. सिख पंथ में प्रभु राम जी के प्रति आस्था का प्रमाण इस बात से मिलता है कि गुरुवाणी क प्रारंभ में नानकदेव जी के वचनो के रूप में कहा जाता है.
‘हरि अमृत भिन्ने लोइिणां मनु प्रेम रतन्ना राम राजे।। मन रामि कसवटी लाएआ कंचनु सोविंना’ अर्थात मेरी आंखें अमृत से भरी हुई हैं और मन राम नाम यानि परमात्मा के प्रेम से भरा है. मैंने अपने नाम को राम यानि प्रभु की कसौटी पर परख लिया है और मेरा मन कंचन भाव सोने का हो गया है . सिखों के पंचम गुरु गुरु अर्जुन देव जी गुरुनानक देव जी की राम भक्ति की परम्परा को आगे बढाते हुए वचन फरमाते हैं कि ‘जित्थे जाए बहै मेरा सतिगुरु सो थानु सुहावा राम राजे’‘राम गोविंद जपेंदेयां होवा मुख पवित्तर’. चतुर्थ गुरु चौथे गुरु श्री गुरु राम दास जी ने भी राम नाम परम्परा को जारी रखते हुए राग वसंत में लिखा है ‘राम नाम की पैज वडेरी मेरे ठाकुरि आप रखाई।।
गुरु तेगबहादुर जी पृष्ठ-632 श्री गुरु ग्रंथ साहिब में फरमाते हैं , मन रे कउनु कुमति तै लीनी ॥ पर दारा निंदिआ रस रचिओ राम भगति नहि कीनी ॥ राम की महिमा अवर्णनीय है. सही बात यह है कि ‘राम’ शब्द के सुमिरन मात्र से ही संसारिक बंधनों से छुटकारा मिल जाता है .
यह एक विवाद का विषय बनता जा रहा है कि पुरातन में हिन्दू धर्म का रूप सिख पंथ को अलग धर्म की संज्ञा देकर इनके अनुयायियों के बीच दीवार खड़ी की जा रही है. गुरुनानकदेव जी के जन्म इतिहास को देखा जाए तो उन्होंने ईश्वरीय भक्ति के अलग मार्ग चुने जिन्हें सिख पंथ का आकार दिया. पंथ परम्परा का निर्वाह करते हुए सिख पंथ के दस गुरु हुए. जिनमें दशमेश गुरु गोविन्द जी ने खालसा पंथ की स्थापना की. वह हिंदुयों के रक्षण के लिए युद्ध लड़ते रहे. अलगाववादी व् विघटनकारी ताकतें सिखों को बरगलाने का प्रयास करती रहीं हैं, लेकिन हिंदुयों के बीच केशधारी हिंडून की पहचान रखने वाले प्रभु राम अनुयायी गुरुनानक के वचनों पर चलने वाले पंथ प्रेमियीं को वंश परम्परा में प्रभु राम का अनुसरण करते हुए गुरु तेगबहादुर जी के इन वचनों का स्मरण करना होगा…
जा मै भजनु राम को नाही, तिह नर जनमु अकारथु खोइआ यह राखहु मन माही ॥
इति श्री !