भारतीय संस्कृति एवं संस्कार को परिभाषित करता है पंडित जी का सादा जीवन। 230 वर्षों के विश्वविद्यालय के इतिहास मैं अप्रतिम योगदान देने वाले मनीषियों की कर्म स्थली है संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय इस विश्वविद्यालय की श्री वृद्धि में पंडित कमलापति त्रिपाठी का अतुलनीय योगदान रहा है विश्वविद्यालय की पुरातन परंपराओं को संजोते हुए प्रगति के पथ पर अग्रसर करने का समुचित प्रयास किया जा रहा है जो परिलक्षित भी हो रहा है।
उक्त विचार संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में पण्डित कमलापति त्रिपाठी जयन्ती समारोह में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने व्यक्त किए।
इस विश्वविद्यालय के लिये बहुत गौरव की बात है कि भारत देश के निर्माता इस संस्था के निर्माता रहे हैं।काशी में तीन विश्वविद्यालय हैं तीनो तीन कोने पर होने से त्रिकोड़ बनाते हैं।पण्डित जी एक ऐसे व्यक्तित्व थे जो कि स्वंय मे संस्था थे।उनके अनेकों योगदान को सदैव यह देश याद रखेगा।संस्कृत भाषा जो भारत का दर्शन है,यहां के संस्कृति का दर्शन है उसे जन जन तक पहुँचता है।संस्कृत विश्व की ऐसी भाषा है जिसमे कोई अपवाद नही है।हमे संस्कृत का प्रसार गति से करने की जरूरत है,यह कर्मकांड की भाषा नही है मानवता का अटूट ज्ञान राशि इसमे छिपी है।
उक्त विचार आज अपरांह 2:00बजे सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के पाणिनि भवन सभागार में आयोजित पं श्री कमलापति त्रिपाठी जयंती-वृक्षारोपण-महोत्सव में महात्मा गाँधी काशीविद्यापीठ,वाराणसी के कुलपति प्रो आनन्द के•त्यागी ने बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किया ।
कुलपति प्रो त्यागी ने कहा किसंस्कृत के बिना भारतीयता की कल्पना नही की जा सकती,काशी की हवा मे श्लोक बहते हैं।इस महान विभूति का जयंती हम लोग मना रहे हैं जो कि यहां पर स्थापित काशी विद्यापीठ एवं संस्कृत विश्वविद्यालय दोनों संस्थाओं के जनक के रुप मे देखा जायेगा।वे काम में आराम के विचारक थे सदैव इसी पर कार्य करते हुये आगे बढते गये। राजनैतिक क्षेत्र मे शिखर पर स्थापित रहने वाले, वाराणसी के रेल स्टेशन को एक धार्मिक स्थापत्य के रुप मे स्थापित कर सभी के लिये एक माडल स्वरुप मे माने जाते हैं।
कुलपति प्रो त्यागी ने कहा कि वे पत्रकार, प्रकांड पण्डित एवं कुशल राजनेता के रुप में पूरे देश के मे स्थापित हैं। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,प्रयागराज (गंगानाथ झाँ परिसर) के निदेशक प्रो ललित कुमार त्रिपाठी ने बतौर मुख्यवक्ता ने कहा कि पण्डित जी का जीवन अत्यंत साधना से युक्त कमलापति त्रिपाठी का जन्म 3 सितंबर , 1905 को हुआ थ। उनके पिता का नाम पंडित नारायणपति त्रिपाठी था। वे मूल रूप से पंडी के त्रिपाठी परिवार के थे, यह विश्वविद्यालय ऋषियों-मुनियों,तपस्वियों एवं आचार्यों के कठोर साधना का स्थल है इसके एक-एक धूल के कण स्पर्श करने और मस्तक मे लगाने से जीवन धन्य कर देता है,यहां का दिव्य इतिहास को समेटे हुये एक तपोभूमि के रुप स्थापित है।पण्डित जी के जीवन को महाकाव्याबद्ध पुण्यश्लोक के रुप मे करने की आवश्यकता है।
सन 1791 मे स्थापित इस संस्था को पण्डित जी ने विश्वविद्यालय के रूप मे स्थापित करने मे महत्वपूर्ण योगदान दिया।पण्डित जी कई बार सांसद,मुख्यमंत्री,शिक्षामंत्री और रेलमंत्री के रूप मे एक ऐतिहासिक और अमर पल है।संस्कृत और हिन्दी भाषा के विशिष्ट ज्ञानराशि को समेटे हुये पण्डित जी थे।संस्कृत की सेवा,संस्कृति की सेवा,संस्कृति की सेवा राष्ट्र की सेवा है।
अध्यक्षता कुलपति हरेराम त्रिपाठी ने करते हुये कहा कि पण्डित जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को जन-जन तक एवं युवा वर्ग तक को बताने के लिये ऐसे ही जयंतीयो के माध्यम से पान कराया जा सकता है,वे सदैव सभी वर्गों के लोगों के लिये प्रेरणाश्रोत थे।उनके जीवन के कर्मों को आत्मसात करने से जीवन का पथ सरल हो जायेगा।
कुलपति प्रो त्रिपाठी ने कहा कि पण्डित जी का सादाजीवन भारतीय संस्कृति और संस्कार को परिभाषित करता है,वे इस संस्था के संस्थापकों मे से एक थे यहां की संस्कृति एवं संस्कार से हम सदैव सम्पूर्ण विश्व मे स्थापित हैं,ऐसे मे इस विश्वविद्यालय का कार्य और महत्वपूर्ण हो जाता है भारतीय संस्कृति को परिवर्तन करना है तो संस्कृत को आगे कर इसे बढ़ाना होगा।हमारी बैदिक परम्परा आज भी अविछिन्न रुप मे आगे बढ रहा है।
संयोजकत्व करते हुये प्रकाशन संस्थान के निदेशक डॉ पद्माकर मिश्र ने कहा कि पण्डित जी के जीवन मूल्यों को आगे बढाने के लिये सदैव हम सभी तत्पर हैं।
समारोह का संचालन करते हुये डॉ दिनेश कुमार गर्ग ने पण्डित जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुये सभी जनों का स्वागत और अभिनंदन किया।स्वागत भाषण प्रो रामपूजन पान्डेय,पुस्तकों का परिचय प्रो सदानंद शुक्ल ने किया।
उक्त जयंती कार्यक्रम के प्रारम्भ में शिक्षण-शोध एवं प्रकाशन संस्थान में पूर्व में स्थापित पण्डित कमला पति त्रिपाठी जी के मूर्ति पर कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी के साथ सभी अतिथियों के द्वारा माल्यार्पण तथा परिसर में “रुद्राक्ष” पौधे का वृक्षारोपण भी किया गया। समारोह के प्रारम्भ में मंचस्थ अतिथियों के द्वारा माँ सरस्वती,पं कमलापति त्रिपाठी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन किया गया।
उक्त जयंती समारोह में विश्वविद्यालय प्रकाशन संस्थान से प्रकाशित क्रमश: पाँच पुस्तकों/ग्रन्थों
- ‘ विश्वविद्यालय वार्ता ‘ वार्ता के प्रधान सम्पादक कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी जी हैं । सम्पदाक डॉ पद्माकर मिश्र ।।
- ‘ वेदान्तसूत्रमुक्तावलिः ‘ चन्द्रिका – टीका प्रो रामकिशोर
- ‘ शोधनिबन्धावली ‘ इस महनीय ग्रन्थ के लेखक प्रो ० जानकी प्रसाद द्विवेदी जी हैं । इस ग्रन्थ के सह सम्पादक डॉ ० शरच्चन्द्र द्विवेदी हैं ।
- महाभाष्ये नवाह्निकस्थ प्रदीपोद्द्योत शब्दकौस्तुभानां समीक्षात्मकमध्ययनम् व्याकरण का यह ग्रन्थ डॉ ० दिनेश कुमार गर्ग जी द्वारा प्रणीत है ।
- भास्करी ( भाग -3 ) जिसके समीक्षक डॉ ० के ० सी ० पाण्डेय जी हैं । प्रकाशनों) का मंचस्थ अतिथियों के द्वारा लोकार्पित किया गया।
सम्पूर्ण ग्रन्थों का परिचय प्रो सदानंद शुक्ल ने दिया। जयंती समारोह में मंचस्थ अतिथियों का माला,चन्दन,नारिकेल,अँगवस्त्रम एवं स्मृति चिन्ह देकर स्वागत और अभिनंदन किया गया।
वैदिक मंगलाचरण एवं- पौराणिक मंगलाचरण के द्वारा किया गया। धन्यवाद ज्ञापन प्रो रमेश प्रसाद ने किया। उस दौरान मुख्य रुप सेप्रो हेतराम, प्रो रामपूजन पान्डेय,प्रो रमेश प्रसाद,प्रो सुधाकर मिश्र,प्रो महेंद्र पान्डेय,प्रो जितेन्द्र कुमार,प्रो कमलकांत त्रिपाठी,प्रो विधु द्विवेदी,डॉ लालजी मिश्र,डॉ विजय पान्डेय,डॉ विद्या चंद्रा , डॉ राजा पाठक,डॉ मधुसूदन मिश्र,सहायक कुलसचिव लेखा श्री सुनिल कुमार यादव,श्री विजय मणि आदि उपस्थित थे। आदि उपस्थित थे।
काशी की हवा मे श्लोक बहते हैं-कुलपतिप प्रो आनन्द के त्यागी
संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति का दर्शन है–कुलपति प्रो त्यागी
संस्कृत की सेवा संस्कृति और राष्ट्र की सेवा है—निदेशक प्रो ललित कुमार त्रिपाठी
भारतीय संस्कृति को परिवर्तन करना है तो संस्कृत भाषा को बढावा देना होगा–कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी