अनुमानित अक्टूबर 2001 में वैश्विक आर्थिक मंदी के चलते सहयोगियों , कर्मियों के बीच सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण करने के लिए जैन उद्योग समूह के संस्थापक डॉ भवरलाल जैन “बड़े भाऊ” ने अनमोल मार्गदर्शन किया था. आज कोविड -19 महामारी के बाद से फिर से उद्योग जगत, व्यापार, रोजमर्रा जिंदगी, विभिन्न संस्थानों, व्यक्तिगत लोगों के बीच निराशा, उदासीनता, भय, भविष्य चिंता छाई हुई है . “बड़े भाऊ” डॉ भवरलाल जैन के उस समय के विचार व मार्गदर्शन आज की स्थिति के लिए सटीक जान पढते हैं. जैन उद्योग समूह की गृहपत्रिका “भूमिपुत्र” के आठवें वर्ष के दुसरे अंक में प्रकाशित यह विचार कोविड -19 महामारी के दौरान की स्थिति के लिए प्रेरणादायी हैं… संपादक
वैश्विक आर्थिक मंदी की पार्श्वभूमि पर बदलते हुए औद्योगिक संबंधों पर ध्यान आकर्षित करने वाले अपने बड़े भाऊ के यह विचार निश्चित ही सटीक एवं स्पष्ट हैं. विशेषज्ञ लोगों को इससे निश्चित ही ज्ञान प्राप्त होगा.
काम के संदर्भ में आपकी प्रतिक्रिया हमेशा ही आगे ले जाने वाली स्पष्ट रखनी चाहिए अर्थात आत्मविश्वास पूर्वक कहना होगा आई कैन डू इट और इतना ही नहीं सिर्फ काम हो गया, नहीं हुआ तो घबराओ नहीं, बताया हुआ काम समय पर नहीं हुआ, इसलिए नौकरी से निकाल दिया गया ऐसा आज तक कुछ हुआ नहीं है. किंतु अब इससे आगे ऐसा हो सकता है. यह भय सिर्फ मन में जरूर होना चाहिए .उसका कारण ऐसा है कि यह मुझे अब असहनीय लगने लगा है. इसलिए अब सभी ने एक साथ रहना चाहिए, सभी ने एक दूसरे की सहायता करनी चाहिए और एक दूसरे को कहना चाहिए कि आई विल सी इट इज डन. एक दूसरे के विश्वास में से जो विश्वास निर्माण होता है उसके लिए वह उसी भाषा का प्रयोग करता है. अब इस प्रकार के आपसी भाईचारे की आवश्यकता है
हम में से प्रत्येक व्यक्ति असंभव से संभव करने का सामर्थ्य रखता है. जिसके-उसके कार्य क्षेत्र में वह व्यक्ति इस प्रकार से कर सकता है. इसके लिए आपको ज्ञान ही होना चाहिए, उपयुक्तता ही चाहिए या जानकारी होनी चाहिए ऐसा नहीं है. यह सभी चीजें आवश्यक हैं. लेकिन उससे पहले मनुष्य में दूसरे के लिए कुछ करने की चाहत व समर्पण की भावना होनी चाहिए. उस घटना या कार्य में खुद को झोंक देना चाहिए. यदि उस कार्य में खुद को झोंकने की तैयारी होगी तो यह कार्य सफल होगा. क्यों नहीं सफल होगा, इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए. कंपनी में आदर सम्मान आपको कमाना चाहिए. उसे कमाने के लिए आपको कुछ समय प्रदान करते हुए प्रतीक्षा करनी चाहिए. आपको अपनी उपयोगिता सिद्ध करनी चाहिए. और यह सब अपने कार्य से सिद्ध किया जा सकता है. आपके दूसरों के प्रति कुछ करने की भावना, आपका कार्य, आपका समय दूसरों से अधिक महत्वपूर्ण है, आपका मन दूसरों के प्रति समर्पित व अधिक अपनत्व भरा है, आपका कौशल्य विकसित है, मात्र पद से आप बड़े नहीं हैं, इसीलिए सम्मान के लिए आपको थोड़ी प्रतीक्षा करना क्रमशः है.
आप दूसरों के प्रति किस प्रकार से चिंतन करते हैं. आप किस प्रकार से अनुसरण करें कि कंपनी ने जिससे उच्च पद पर आरूढ़ किया है ,अर्थात वह उतना ही अच्छा होना चाहिए. कहने का तात्पर्य है कि उच्च पद पर आरूढ़ व्यक्ति अपने से भी अधिक अच्छा है, ऐसा मान लेने में कोई हरकत नहीं है. उसे हृदय से सहयोग दिया जाना चाहिए, सम्मान दिया जाना चाहिए . मतलब वह सहयोग व सम्मान आपको अपने आप ही प्राप्त होगा. सभी जगह सकारात्मक वातावरण निर्माण करो. इन सब बातों से स्वयं को अलग मत होने दो. सभी के साथ स्पष्टता रखने पर किसी भी प्रकार की शंकाएं उपस्थित नहीं होंगी. मनभेद भी दूर होंगे. कार्य क्षमता के साथ साथ हमें थोड़ा बहुत आत्मीयता से भी आचरण करते आना चाहिए. यह सब समय की आवश्यकता है. अपने सहकर्मियों को हमें साथ लेते हुए संभालना भी आना चाहिए. आपकी बुद्धि व कुशलता का उनके साथ लेनदेन करने से आप में परिपक्वता आएगी. बुद्धिमत्ता कम नहीं होगी. ज्ञान इस प्रकार की बात है कि जो बांटने से और अधिक बढ़ता है. आपकी कंपनी की, आपकी खुद की, एक इस प्रकार की संस्कृति व शैली निर्मित होनी चाहिए.
आधिकारिक रूप या गैर आधिकारिक रूप से कार्यों से दूर रहना, छुट्टियों लेना यह कितना समर्थन उचित है. इसका विचार विनिमय हमें करना चाहिए. दूसरे महायुद्ध के पहले तक रविवार अवकाश का दिन नहीं था. औद्योगिक क्रांति के पहले कोई भी दिन अवकाश का नहीं था. आगे चलकर हम सब यह बढ़ाते रहें. अर्थात कैजुअल लीव, पेड लीव, प्रिविलेज लीव, मेडिकल लीव, सिक लीव, मेटरनिटी लीव, यह अवकाश- वह अवकाश अर्थात सभी तरफ से अवकाश ही अवकाश ! यह शैली क्रियान्वित होने लगी. लेकिन अब यह सब भूलने का समय आ गया है. अपने पास बहुत सारे कार्य होते हुए भी हमें छुट्टी मांगना, छुट्टी मंजूर ना करते हुए खुद ही अवकाश ले लेना या फिर बिना किसी कारण के यां कारण दिखाते हुए छुट्टी लेते हुए अधिक वेतन वाले या कम वेतन वाले किसी भी प्रकार के व्यक्तियों का घर पर रुकना योग्य है क्या ?? कोई भी कार्य हो, लेकिन कार्य के लिए ही हम समर्पित हों, यानी कार्य में बह जाने की प्रवृत्ति हो. अपने कार्य में बह जाने का अर्थ ऐसा है कि कम से कम समय घर पर रहना चाहिए. अपने कार्य से आत्मीयता निर्माण करते हुए हमें अपने कार्य के प्रति ही समर्पित होना चाहिए. स्वयं की आत्मा को अपने कार्य में समाविष्ट करते हुए वह कार्य करो. हमें प्रारंभ में जो वैभव प्राप्त हुआ है या फिर सुख के समय व्यतीत हुए हैं, उससे अधिक सुख के दिन, सम्मान के दिन, और वैभवशाली दिन लाए जा सकते हैं. तभी इन सब बातों का फायदा होगा. जिसका जो श्रेय है, वह हम सब को यथासंभव मिलना ही है. अपने जीवन में अब तक के किये गए कार्य, आगे भी इसी प्रकार से यह कार्य संभव सफल होते रहें यह संदेश ही आपको देना था. – डॉ भवरलाल जैन “बड़े भाऊ”
मराठी से हिंदी अनुवाद –