नई दिल्ली (तेज समाचार डेस्क): हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली में हुए दंगें से जुड़े तीन कथित आरोपियों को जमानत दे दी है। दिल्ली हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया है। दरअसल, दिल्ली पुलिस ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत दिल्ली दंगें के एक मामले में आसिफ इकबाल तन्हा, देवांगना कलिता और नताशा नरवाल को जमानत देने के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी अपील में, दिल्ली पुलिस ने कहा है कि “दिल्ली उच्च न्यायालय ने पूर्व-कल्पित और भ्रमित होकर इस मामले पर फैसला सुनाया है, क्योंकि यह छात्रों द्वारा विरोध प्रदर्शन जैसा कोई साधारण मामला नहीं है।”
दिल्ली पुलिस ने अपनी याचिका में लिखा है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने सबूतों और बयानों पर पूरी तरह से ध्यान नहीं दिया, जबकि स्पष्ट रूप से तीनों आरोपियों द्वारा अन्य सह-साजिशकर्ताओं के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर दंगों की एक भयावह साजिश रची गई थी।
बता दें कि दिल्ली पुलिस ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि, एकत्रित और विस्तृत सबूतों की तुलना में सोशल मीडिया की कहानी पर अधिक जोर दिया गया है।
दिल्ली पुलिस ने अपनी अपील में एक अहम मुद्दा उठाया है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपनी जमानत के आदेश में, UAPA के प्रावधानों, विशेष रूप से अधिनियम की धारा 15 को पढ़ा, जो आतंकवाद को परिभाषित करता है। इस पर दिल्ली पुलिस का कहना है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा जांच किए जा रहे अन्य मामलों में भी दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दी गई UAPA की इस परिभाषा का हवाला दिया जाएगा। जिससे “दूरगामी परिणाम” हो सकते हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय का मानना है कि प्रथम दृष्टय के हिसाब से UAPA की धारा 15, 17 या 18 के तहत तीनों के खिलाफ वर्तमान मामले में रिकॉर्ड की गई सामग्री के आधार पर कोई अपराध नहीं बनाता है।
वहीं दूसरी ओर दिल्ली पुलिस के अनुसार, तीनों आरोपियों ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में अभूतपूर्व पैमाने पर अराजकता फैलाई और कानून-व्यवस्था को तहस-नहस किया।