नई दिल्ली (तेज समाचार डेस्क): वैश्विक महामारी कोरोनावायरस के संक्रमण को रोकने के लिए सरकार यथोचित निर्देश जारी कर रही है। जहां एक तरफ कोरोना की दूसरी लहर खत्म हो रही है, वहीं 2 राज्यों के आंकड़ों ने स्थिति चिंताजनक बना दी है। 2020 की पहली लहर हो चाहे 2021 की दूसरी लहर इन दोनों राज्यों में मचे कोरोना के कोहराम से कोई अनभिज्ञ नहीं है ।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो जिस हिसाब से अभी भी प्रतिदिन 50 हज़ार केस आ रहें है स्थितियां सामान्य बिलकुल भी नहीं हैं विशेषकर केरल ओर महाराष्ट्र में हालत जस के तस बने दिख रहे हैं। हालिया आंकड़ों में संक्रमितों की संख्या में भले ही कमी दिख रही हो परंतु जो आंकड़ें सामने आ रहे हैं उनमें निरंतर वृद्धि दर्ज़ की गयी है। अब मौजूदा परिस्थिति में जिन नीतिगत फैसलों से अब तक कोई सकारात्मक परिणाम नहीं दिखे हैं उससे यही बेहतर रास्ता होगा कि रणनीतियों पर पुनर्विचार करके अन्य राज्यों से उनके सकारात्मक पहलुओं को अपने राज्यों में स्थिति को अनुकूल बनाने के लिए अपनाया जाये ।
अब आंकड़ों को लेकर भी राजनीति शुरू हो गयी है, इन दोनों राज्यों में तबसे स्थिति डांवाडोल है जबसे अन्य राज्यों में कोरोना मरीजों के संक्रमित दरों में अच्छी-ख़ासी गिरावट देखने को मिली। दूसरी लहर में मृतकों की संख्या में बड़ा उछाल आया जिससे पूरा देश सहम उठा। प्रतिदिन शवदाह-गृहों में 48 से लेकर 72 घंटों तक की प्रतीक्षा कतारें लगी दिखीं, उस दौरान उत्तर प्रदेश राज्य की योगी सरकार को खूब आलोचनाओं का सामना करना पड़ा और पूरी राज्य सरकार टीवी चैनलों और अखबारों के जरिये कोरोना नियंत्रण में फ़ेल करार कर दी गयी , पर अब गैर भाजपा-शासित राज्यों जिनमें केरल और महाराष्ट्र शामिल हैं- दोनों से पूरे देश के विभिन्न राज्यों की तुलना में सर्वाधिक मामले आ रहें हैं परंतु न ही इसके साक्ष्यों को लेकर खबर चल रही है और न ही अखबारों में उसके बड़े-बड़े लेख और टीवी पर अस्पतालों और शवदाह-गृहों के बाहर के त्राहिमाम को दिखाया जा रहा है ।
इससे एक बात तो साफ हो रही है कि आज समाज को सिर्फ एक तरफा जानकारी देते हुए वास्तविकता से अनभिज्ञ रखने की कोशिश चरम पर है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को भेजी गई दोनों राज्यों की रिपोर्ट के मुताबिक केरल में जहां पर मंगलवार को 14,373 नए संक्रमित मरीज सामने आए, वहीं महाराष्ट्र में 8,418 संक्रमित मरीज मिले। दोनों राज्यों में संक्रमित मरीजों की संख्या का आंकड़ा बीते कुछ समय से तकरीबन इतना ही बना हुआ है। अब कैसे इन दरों में कमी दर्ज़ की जाएगी वो विषय राज्य सरकारों के अंतर्गत आता है, परंतु सत्य को चीख-चीख कर न सही पर मुंह से बोलने ज़रूरत है क्योंकि आंकड़ों का राजनीतिकरण भयावह स्थिति बना सकता है ।