( संजय आनंद ) देश विदेश में मौजूद वैष्णव पूज्य स्थानों में पंजाब के दरबार श्री ध्यानपुर धाम का विशेष स्थान है. श्री ध्यानपुर धाम के अनुयायियों में हिंदुओं के अलावा अफगानिस्तान के मुसलमान पठानों का भी समावेश है. भले ही अंग्रेज शासकों की कूटनीति के कारण देश के बंटवारे के परिणामस्वरूप आज हिंदू और मुसलमान आपस में उलझ रहे हों लेकिन धाम के बावा लाल दयाल जी के प्रभाव से अभी भी यह दूरी पटी हुई है .
वैष्वनाचार्य योगिराज १००८ सतगुरु श्री वैष्वनाचार्य योगिराजजी महाराज ही अकेले ऐसे हिन्दू संत थे जिन्होंने मुग़ल बादशाह शाहजहां के बड़े बेटे दारा शिकोह की आत्मज्ञान की प्यास बुझाई थी. दारा शिकोह उन्हीं से ज्ञान प्राप्त कर उन्हीं का दास हो गया था. दारा शिकोह ने अपनी पुस्तक हसनत-उल-आरिफिन में लिखा है कि बावा लाल जी एक महान योगी हैं. इनके समान प्रभावशाली और उच्च कोटि का कोई महात्मा हिंदुओं में मैंने नहीं देखा है. इस दौरान दारा शिकोह, सतगुरु बावा लाल जी से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उनके साथ सात आध्यात्मिक बैठकें व सत्संग किये, जिन्हें दारा शिकोह के लेखकों ने कागजों में लिपिबद्ध किया . आज भी श्री ध्यानपुर दरबार से छपी पुस्तक प्रश्नोत्तर प्रकाश में वह सभी प्रश्न और उत्तर व्याख्या के साथ मौजूद हैं. यह प्रश्नोत्तर प्रकाश एक सामान्य व्यक्ति को भी आध्यात्म जगत का तत्व ज्ञान करा सकती है .
1008 सतगुरु बावा लाल दयाल महाराज जी का जन्म 1412 विक्रम संवत लाहौर स्थित कसूर कस्बे में पटवारी भोलामल जी व माता कृष्णादेवी के घर हुआ था. बचपन से ही बावा लाल जी महाराज जी के चेहरे पर अलौकिक तेज था. बालक लाल दयाल जी को आध्यात्मिकता के गुण अपनी माता कृष्णा देवी जी से प्राप्त हुए. बचपन में ही बालक लाल दयाल जी ने विभिन्न भाषाओं के ज्ञान के अलावा वेद, उपनिषद और रामायण इत्यादि ग्रंथ कंठस्थ कर लिए थे.
एक दिन बावालाल जी जंगल में गाय चराने गए और वहीँ जंगल में ही सो गए. उसी समय वहां से सिद्ध साधुओं की टोली के साथ चैतन्य स्वामी जा रहे थे. उन्होंने देखा कि तपती हुई धुप में सो रहे एक छोटे से बालक के ऊपर धूप नहीं आ रही और उस के ऊपर शेषनाग अपनी छाया कर रखी है. अपनी अलौकिक शक्ति से उन्होंने दिव्य बालक के बारे में जान लिया और उनसे मुलाकात कर बालक लाल दयाल जी को आशीर्वाद दिया. उन्होंने बावा लाल को कहा कि बेटा हरिओम तत्सत ब्रह्म सच्चिदानंद कहो और भक्ति में हर समय मग्न रहो . इसी दौरान स्वामी चैतन्य जी के एक शिष्य ने कहा कि सबको बहुत भूख लगी है. इस पर स्वामी चैतन्य जी ने कुछ चावल लेकर मिट्टी के बर्तन में डाले और अपने पांवों का चूल्हा बनाकर योग अग्नि से उन्हें पकाया. पल भर में चावल बन गए और सबने खाए. थोड़े से चावल बालक बावा लाल दयाल को भी दिए, जिससे उनकी अंतदृष्टि खुल गई. घर आकर वह माता-पिता से स्वामी चैतन्य जी को अपना गुरु बनाने की अनुमति लेकर उनकी मंडली में शामिल हो गए.
मात्र 10 वर्ष की उम्र में ही बावा लाल जी ने अपना घर परिवार छोड़कर तीर्थ स्थान भ्रमण शुरू किया. कुछ समय उन्हें अपने साथ रखने के बाद स्वामी चैतन्य जी ने बावा लाल जी को स्वतंत्र रूप से भ्रमण की आज्ञा दे दी. उन्होंने धर्म प्रचार जोर-शोर से शुरू कर दिया, जिससे दिल्ली, नेपाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब में आपके प्रति लोगों का श्रद्धा भाव बढ़ा. बावा लाल जी ने तप करके योग द्वारा बहुत सारी शक्तियाँ अर्जित की. इसी लिए उन्हें योगिराज कहते हैं. भारत के आलावा अफगानिस्तान काबुल के बहुत से पठानों ने भी उन्हें अपना गुरु माना है. पाकिस्तान सिध में भी बहुत से मुसलमानों ने उन्हें अपना पीर माना है और उन्होंने उनकी कब्र भी बना रखी है. अफगानिस्तान और पाकिस्तान में बावा लाल दयाल महाराज को लाल पीर के नाम से जाना जाता है. बावा लाल जी घूमते घूमते लाहौर से हरिद्वार पहुंचे. गंगा किनारे हिमालय में कई वर्षो तक रहकर तपस्या करने के पश्चात वह सहारनपुर आ गए और उन्होंने गांव के उत्तर की ओर एक गुफा में तप करना प्रारंभ कर दिया. सहारनपुर में उनकी सिद्धियों व् चमत्कारों की खबर आग की तरह फैलने लग गई. इनके आश्रम में हिंदू और मुसलमान आकर अपनी मनोकामनाएं पूरी करने लगे.
बावा लाल दयाल के विरोधियों ने सहारनपुर के सूबेदार खिजर खां के कान भरे कि एक काफिर जादू टोने करके लोगों को गुमराह कर रहा है. भारी तादाद में मुसलमान भी उनके शिष्य बन गए हैं . एक दिन खुद खिजर खां बावा लाल से मिलने पहुंच गया. तब बावा लाल जी ने कहा लाल हिंदू दावा वेद का तुर्क किताबे कुरान. बावा लाल दयाल ने अपने तेजस्वी प्रभाव से सूबेदार खिजर खां का घमंड चकनाचूर कर दिया. प्रभावित हो कर खिजर खां भी बावा लाल का शिष्य बन गया. बावा लाल दयाल के एक प्रमुख मुसलमान शिष्य फकीर हाजी कमल शाह का मकबरा आज भी आश्रम में ही है.
बावा लाल दयाल के बढ़ते प्रभाव से स्थानीय लोगों ने लंगर सेवा के लिए 100 बीघा जमीन आश्रम के नाम कर दी. दूसरे खर्चो के लिए आठ गांवों का राजस्व भी लगा दिया. सहारनपुर में बावा लाल जी 100 वर्ष तक रहने के बाद 1552 में कलानौर (पंजाब) में आ गए और वहां की किरण नदी के जल में स्थित होकर तपस्या करने लगे. बताते हैं कि बावा लाल दयाल जी बार बार बालक रूप धारण कर लेते थे. कलानोर में भी उन्होंने कायाकल्प करके 16 वर्ष की आयू धारण कर ली, और अपने शिष्य ध्यान दास द्वारा एक ऊंचे टीले पर निर्मित कुटिया में रहने लगे. बाद में इसी जगह का नाम ध्यानपुर पड़ गया.
कहते हैं औरंगजेब हमेशा श्री बावा लाल जी का अपमान करना चाहता था और तरह-तरह के रास्ते खोजता रहता था. लेकिन वह हमेशा असफल रहा. औरंगजेब के बार-बार बुलाने पर श्री बावा लाल जी उसके पास नहीं गए. औरंगजेब के निमंत्रण को अस्वीकार करने के कारण औरंगजेब श्री बावा लाल जी से क्रोधित हो गया और अपने कुछ परिचारकों के साथ ध्यानपुर में श्री बावा लाल जी से मिलने पहुँच गया. जैसे ही औरंगजेब ने ध्यानपुर के प्रवेश द्वार पर कदम रखा, वह सभी अंधे हो गए लेकिन जब वह सभी पीछे मुड़कर देखते थे तो उन्हें दिखाई पड़ता था. औरंगजेब के बार-बार प्रयास करने पर ऐसा कई बार हुआ. औरंगजेब अपने सभी सेवकों के साथ डर गया और अपनी गलती के लिए माफी मांगी.
बावा लाल जी ने अपने 22 चेलों को साथ लेकर देश-विदेश में अपनी 22 गद्दियों की स्थापना की. बावा लाल जी ने योग बल से 300 वर्ष तक जीवित रह कर धर्म प्रचार किया. अंत में ध्यानपुर में यह कह कर कि देह तो नश्वर है कार्तिक शुक्ल दशमी विक्रम सम्वत 1712 को वह ब्रह्मलीन हो गए. वर्तमान में श्री बावा लाल दयाल जी के देश- विदेश में लाखों भक्त हैं, जो गद्दी बावा लाल दयाल जी श्री ध्यानपुर धाम आकर नतमस्तक होते हैं. पंजाब के जिला गुरदासपुर के शहर बटाला से पिछले 20 वर्षो से हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु पैदल यात्रा कर श्री ध्यानपुर धाम श्री बावा लाल दयाल जी का जन्मोत्सव मनाने बड़ी श्रद्धा से पहुंचते हैं. प्रति वर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को श्री बावा लाल दयाल जी का जन्मोत्सव श्री ध्यानपुर धाम में मनाया जाता है.
इन दिनों ध्यानपुर में महंत राम सुंदर दास जी, अमृतसर में महंत अनंत दास जी तथा दातारपुर में महंत रमेश दास जी गद्दीनशीन हैं. वैसे आजकल देश भर में सैकड़ों मंदिर बावा लाल दयाल जी के बन चुके हैं. हर साल हजारों भक्त पहुंचते हैं . कानपुर के गोविंदनगर में भी गद्दिपति महंत राम सुंदर दास जी महाराज के निर्देश में सतगुरु श्री बावा लाल दयाल जी महाराज के भव्य मंदिर का निर्माण कार्य जोरों से चल रहा है.
देश विदेश में भ्रमण करते हुए सतगुरु बावा लाल जी ने 22 गद्दियों की स्थापना की. उन्होंने अपने 22 शिष्यों को निर्देश दिया कि वह इन गद्दियों को अच्छी तरह से बनाए रखें और उन्हें सनातन धर्म की विचारधारा के प्रचार के लिए चलाएं. उन्होंने अपने 22 शिष्यों को निम्नलिखित 22 गद्दियों में प्रथम महंत नियुक्त किया.
- श्री महंत गुरमुख दास जी श्री ध्यानपुर साहिब पंजाब (दरबार श्री बावा लाल जी, ध्यानपुर (बटाला) जिला गुरदासपुर, पंजाब)
- श्री महंत ताप दास जी दातारपुर पंजाब (ठाकुरद्वारा बावा लाल जी दातारपुर-रामपुर, हलेर जिला होशियारपुर, पंजाब)
- श्री महंत राम दास जी अमृतसर पंजाब (गद्दी बावा लाल जी, संतोखसर, अमृतसर, पंजाब)
- महामंडलेश्वर महंत 108 श्री श्याम सुंदर दास जी अब शाहाबाद मारकंडा, हरियाणा में स्थानांतरित हो गए हैं
- श्री महंत कृपा राम जी हाफिजाबाद पंजाब (गद्दी बावा लाल जी – हाफिजाबाद, जिला गुजरांवाला, पाकिस्तान, अब निसार चौक, पानीपत, हरियाणा में स्थानांतरित)
- श्री महंत सेवा राम जी कलानौर टाउन पंजाब (गद्दी बावा लाल जी – कलानौर, तह. डेरा बाबा नानक, जिला. गुरदासपुर, पंजाब)
- श्री महंत जय राम दास जी लाहौर पंजाब (गद्दी बावा लाल जी-लाहौर, पाकिस्तान)
- श्री महंत परहलाद जी भीखी (अमृतसर) पंजाब (गद्दी बावा लाल जी – भीखी जिला अमृतसर, पंजाब)
- श्री महंत बाल्मीक जी मुल्तान पंजाब (गद्दी बावा लाल जी – मुल्तान, पाकिस्तान))
- श्री महंत परमानंद जी चन्यूट (झांग) पंजाब (गद्दी बावा लाल जी – चान्यूट, जिला झंग, पाकिस्तान)
- श्री महंत प्रेमनेम जी सांखत्रा (गुजरात) पंजाब (गद्दी बावा लाल जी – सांखतरा, जिला गुजरात, पाकिस्तान)
- श्री महंत कुशल कल्याण जी चोमुख (मुल्तान) पंजाब (गद्दी बावा लाल जी – चोमुख, जिला मुल्तान, पाकिस्तान)
- श्री महंत भगत मुखी जी डोमेली (दिल्ली के पास) दिल्ली (गद्दी बावा लाल जी – डोमेली, दिल्ली के पास)
- श्री महंत सुरथा नंद जी डेल्ही डेल्ही (गद्दी बावा लाल जी – दिल्ली)
- श्री महंत कांशी राम जी पिशावर पंजाब (गद्दी बावा लाल जी-पिशावर, पाकिस्तान)
- श्री महंत मुरारी दास जी गिरि गिरनार जूनागढ़ गुजरात के पास (गद्दी बावा लाल जी – गिरि गिरनार जिला जूनागढ़, गुजरात भारत )
- श्री महंत जीवन दास जी सूरत गुजरात (गद्दी बावा लाल जी – सूरत, गुजरात, भारत)
- श्री महंत बिठल दास जी अयोध्या ऊपर (गद्दी बावा लाल जी – अयोध्या, उ. प्र.)
- श्री महंत रंगी राम जी काशी उ.प्र. (गद्दी बावा लाल जी – असी घाट, बनारस – उ. प्र.)
- श्री महंत जगदीश दास जी उज्जैन मध्य प्रदेश्री (गद्दी बावा लाल जी – उज्जैन, मध्य प्रदेश) 21. श्री महंत यादो राम जी गजनी अफगानिस्तान (गद्दी बावा लाल जी- गजनी, अफगानिस्तान को लाल पीर के नाम से जाना जाता है)
- श्री महंत मलूक दास जी काबुल अफगानिस्तान (गद्दी बावा लाल जी – काबुल, अफगानिस्तान को लाल पीर के नाम से जाना जाता है)